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किसान डॉक्टर
7 Oct
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मटर के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन (Major diseases of pea and their management)


मटर की फसल (matar ki kheti) को कई प्रकार के फफूंद, बैक्टीरिया, और वायरस जनित रोगों का सामना करना पड़ता है, जो पौधों के विभिन्न हिस्सों जैसे पत्तियां, तने, जड़ें और फलियों को प्रभावित करते हैं। इन रोगों के कारण पौधों की वृद्धि रुक जाती है और उत्पादन में कमी आ जाती है। सही समय पर रोगों की पहचान और उचित प्रबंधन से फसल की गुणवत्ता और पैदावार को बेहतर बनाया जा सकता है।

कैसे करें मटर में रोग प्रबंधन (How to control disease in pea)

चूर्णिल आसिता रोग (Powdery Mildew Disease):

  • पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफेद-धूसर धब्बे, जो धीरे-धीरे सफेद पाउडर में बदल जाते हैं।
  • रोग बढ़ने पर धब्बे निचली सतह तक फैल जाते हैं।
  • पौधे का विकास रुक जाता है और प्रकाश संश्लेषण बाधित हो जाता है।
  • गंभीर अवस्था में पत्तियां पीली पड़ कर सूख जाती हैं और समय से पहले गिरने लगती हैं।

नियंत्रण:

  1. फसल चक्र अपनाएं और खेत की सफाई पर ध्यान दें।
  2. रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को नष्ट करें।
  3. ज्यादा सिंचाई से बचें और संभव हो तो ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें।
  4. पौधों के बीच पर्याप्त दूरी बनाए रखें ताकि हवा का अच्छा आवागमन हो सके और फसल को भीगने से बचें।
  5. कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साफ, सिक्सर, साबू) दवा को 15 लीटर पानी में 30 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।
  6. एज़ोक्सी स्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एससी (एजीटॉप, कस्टोडिया) दवा को 300 एम.एल. प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  7. कैप्टन 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% WP (टाटा ताकत): प्रति एकड़ 300 ग्राम की मात्रा का उपयोग करें। यह मिश्रण फफूंदों को नियंत्रित करने में मदद करता है और पत्तियों को स्वस्थ बनाए रखता है।
  8. मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45): प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें। यह दवा व्यापक फफूंद रोगों के खिलाफ प्रभावी है।
  9. सल्फर 85% DP: प्रति एकड़ 6-8 किलोग्राम की मात्रा में उपयोग करें। सल्फर पत्तियों और तनों पर जंग के धब्बों को नियंत्रित करता है और फसल की सुरक्षा में सहायक होता है।
  10. एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डिफेनोकोनाज़ोल 11.4% SC (सिजेंटा एमिस्टार टॉप, देहात सिन पैक्ट, एज़ोस्टार टॉप): प्रति एकड़ 150-200 मिलीलीटर की मात्रा में स्प्रे करें। यह दवा पत्तियों पर धब्बे और जंग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करती है।
  11. टेबुकोनाज़ोल 6.7% + कैप्टन 26.9% एस.सी. (यूपीएल ग्लोएड, अदामा शमीर): प्रति एकड़ 400 मिलीलीटर की मात्रा का छिड़काव करें। यह संयोजन पत्तियों पर रस्ट रोग के लक्षणों को कम करता है और फसल की स्वास्थ्य को बनाए रखता है।
  12. कार्बेन्डाजिम 50% WP (क्रिस्टल बाविस्टिन, धानुस्टिन) दवा को 100 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  13. मेप्टील्डिनोकैप 35.7% ईसी (कराथेन गोल्ड) दवा का 120-130 मिली लीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।

उकठा रोग (Fusarium Wilt):

  • उकठा रोग मटर की फसल में गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।
  • इस रोग की शुरुआत पत्तियों के पीले पड़ने और मुरझाने से होती है।
  • तने के निचले हिस्से और जोड़ों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
  • पौधे धीरे-धीरे सूखने लगते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
  • यह रोग फ्यूजेरियम नामक कवक के कारण होता है, जो लंबे समय तक मिट्टी में जीवित रह सकता है।
  • संक्रमित बीज का उपयोग करने से रोग फैल सकता है, और तने पीले पड़कर फटने लगते हैं, जिससे पौधे गिर सकते हैं।

नियंत्रण:

  • मटर की फसल (फसल चक्र) के साथ अन्य फसलों जैसे गेहूं, मक्का आदि की खेती करें ताकि रोग के प्रसार को रोका जा सके।
  • खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था रखें ताकि मिट्टी में अतिरिक्त नमी न रहे।
  • स्वस्थ और रोग मुक्त बीज का चयन करें, क्योंकि संक्रमित बीज रोग को फैलाने में सहायक हो सकते हैं।
  • खरपतवार और फसल अवशेषों को नष्ट करना जरूरी है क्योंकि ये रोगजनक के रहने स्थान बन सकते हैं। रोगग्रस्त अवशेषों को जलाने या गहरी जुताई करने से रोग का प्रकोप कम होता है।
  • कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यू.पी. (कोनिका, रेफॉल) दवा को 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में छिड़काव करें।
  • कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साफ, सिक्सर, साबू) दवा को 15 लीटर पानी में 30 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।
  • कार्बेन्डाजिम 50% WP (धानुस्टिन, बाविस्टिन) दवा को 200 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • मेटालैक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% WP (एक्सोटिक गोल्ड, मेटलमैन, टाटा मास्टर) दवा को 800 से 1250 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डब्ल्यू एस दवा को 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करें।
  • प्रोक्लोराज़ 5.7% + टेबुकोनाज़ोल 1.4% डब्ल्यू/डब्ल्यू ई एस दवा को 1 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करें।
  • टेबुकोनाज़ोल 15% + जिनेब 57% डब्ल्यूडीजी (गैंगो, तेजिंग) दवा को 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को बीज ड्रेसर के रूप में उपयोग करें।

गलन रोग (Damping Off):

  • गलन रोग, जिसे damping off कहा जाता है, मिट्टी में लंबे समय तक नमी बनी रहने के कारण उत्पन्न होता है।
  • इस स्थिति में कई प्रकार के फफूंद पनपने लगते हैं जो पौधों की जड़ों और तनों को गला देते हैं।
  • ठंड के मौसम में वातावरण में बढ़ती नमी इस रोग को तेजी से फैलने में सहायक होती है।
  • रोग के शुरुआती चरण में, पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं।
  • जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, भूमि की सतह से सटे हुए तने गलने लगते हैं, और कुछ समय बाद पौधे पूरी तरह से गल कर सूख जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं।

नियंत्रण:

  • बुवाई के लिए स्वस्थ और रोग मुक्त बीज का चयन करें।
  • मटर की बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।
  • खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें ताकि नमी अधिक समय तक न रहे।
  • पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें ताकि हवा का संचरण अच्छा हो और नमी कम हो सके।
  • मेटालैक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% WP (एक्सोटिक गोल्ड, मेटलमैन, टाटा मास्टर) दवा को 800 से 1250 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साफ, सिक्सर, साबू) दवा को 15 लीटर पानी में 30 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।
  • थायोफिनेट मिथाइल 70% WP (रोको, बुलटोन): 15 लीटर पानी में 50 ग्राम मिलाकर छिड़काव करें।
  • कैप्टान 75% WP (इंडोफिल-कैप्ट्रा) दवा को 1 किलोग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।

मटर की फसल में रोग से हैं परेशान? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: मटर में कौन-कौन से रोग लगते हैं?

A: मटर की फसल में कई रोग लगते हैं, जैसे चूर्णिल आसिता, रस्ट, उकठा, डैम्पिंग ऑफ, मोज़ेक वायरस और जड़ सड़न। ये रोग पत्तियों, तने और जड़ों को प्रभावित कर फसल की वृद्धि और उत्पादन में कमी लाते हैं। समय पर पहचान और सही प्रबंधन से इन रोगों से बचाव किया जा सकता है।

Q: मटर में कौन कौन से कीट लगते हैं?

A: मटर की फसल को कई प्रकार के कीटों का खतरा रहता है, जिनमें मटर एफिड, कटवर्म, मटर का पत्ता, मटर घुन, और थ्रिप्स प्रमुख हैं। ये कीट पौधे के विभिन्न हिस्सों पर हमला करते हैं, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और पैदावार में कमी आती है। मटर के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन करना अति आवश्यक होता है।

Q: मटर का मुख्य खरपतवार कौन सा है?

A: मटर की फसल में मुख्य खरपतवार फलारिस माइनर है। यह शीतकालीन घास मटर की पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित करता है।इसको नियंत्रित करने के लिए उचित हर्बिसाइड का उपयोग करें और सांस्कृतिक प्रथाएं, जैसे फसल रोटेशन और समय पर रोपण, इस खरपतवार को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं।

Q: मटर बोने का सही समय क्या है?

A: मटर की उन्नत खेती करने के लिए इसकी बुवाई का सही समय क्षेत्र और जलवायु पर निर्भर करता है। उत्तरी भारत में इसे अक्टूबर से दिसंबर के बीच और दक्षिणी भारत में नवंबर से फरवरी के बीच बोया जाता है। मटर के अंकुरण के लिए 10-25°C तापमान और अच्छी नमी वाली सूखी मिट्टी आदर्श होती है। मानसून के बाद बुवाई करने से मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है, जिससे मटर की वृद्धि और उपज बेहतर होती है।

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