पोस्ट विवरण
वर्षा के मौसम में फसलों में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Major Pests Affecting Crops During the Rainy Season
वर्षा का मौसम जहां एक तरफ कुछ फसलों के लिए वरदान माना जाता है, वहीं दूसरी तरफ इस मौसम में फसलों पर कीटों का हमला भी बढ़ जाता है। वातावरण में अधिक नमी और उमस के कारण कीटों का प्रजनन तेजी से होता है, जिससे फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है। इन कीटों का समय पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह फसलों की उपज और गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है। इसलिए, वर्षा के मौसम में फसलों में लगने वाले प्रमुख कीटों की पहचान और उनके नियंत्रण के उपायों को जानना हर किसान के लिए आवश्यक है। इस पोस्ट में हम कुछ ऐसे प्रमुख कीटों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, जो वर्षा ऋतु में फसलों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं।
वर्षा के मौसम में फसलों में लगने वाले कीटों से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण | Damage Caused by Pests During Rainy Season and Their Control
तना छेदक कीट से होने वाले नुकसान: तना छेदक कीट को स्टेम बोरर कीट के नाम से भी जाना जाता है। इस कीट का लार्वा पौधे के तने में छेद करता है। जिससे प्रभावित पौधे मुरझाने लगते हैं। समय रहते इस कीट पर नियंत्रण नहीं किया गया तो पौधे नष्ट हो सकते हैं। इस कीट के कारण होने वाली क्षति गंभीर हो सकती है। कुछ मामलों में इस कीट के कारण फसलों की उपज में 50 प्रतिशत तक कमी देखी जा सकती है।
तना छेदक कीट पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 50 - 80 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6 + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड.सी. (देहात एंटोकिल) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 4 किलोग्राम फिप्रोनिल 0.6% जीआर (देहात स्लेमाइट अल्ट्रा) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 120 ग्राम फ्लूबेंडियामाइड 20% डब्ल्यूजी (टाटा रैलिस ताकुमी, पीआई फ्लूटन, स्वाल काबुकी) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 मिलीलीटर क्विनलफॉस 25% ईसी (धानुका धानुलक्स, सिन्जेंटा एकालक्स, हाईफील्ड डिफेंडर, सुमिटोमो कैमलॉक्स) का प्रयोग करें।
माहु से होने वाले नुकसान: माहु यानी एफिड्स आकार में बहुत छोटे होते हैं और ये कीट पत्तियों एवं पौधों के अन्य कोमल हिस्सों का रस चूसते हैं। जिससे पौधों की पत्तियां मुड़ने लगती हैं और पौधों के विकास में बाधा आती है। समूह में रहने वाले ये कीट कम समय में फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये कीट हनीड्यू नामक चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन भी करते हैं। इस चिचिपे पदार्थ के कारण पौधों में फफूंद जनित रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है। इस कीट के कारण फसलों की पैदावार में भारी कमी देखी जा सकती है।
माहु पर नियंत्रण के तरीके:
- इन कीटों पर नियंत्रण के नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 100 ग्राम इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस जी (देहात इल्लीगो) मिला कर छिड़काव करें।
- 200 लीटर पानी में 80 मिलीलीटर क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% w/w एससी (एफएमसी कोराजन) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
सफेद मक्खी से होने वाले नुकसान: सफेद मक्खी पौधे की पत्तियों, कोमल शाखाओं, फूल एवं फलियों का रस चूसती हैं। इस कारण पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है। इस कीट का प्रकोप होने पर फसलों की उपज कम हो जाती है। इसके साथ ही गुणवत्ता में भी कमी होती है। ये कीट वायरस जनित रोगों को अन्य पौधों में फैलाने का काम करते हैं।
सफेद मक्खी पर नियंत्रण के तरीके:
- 300 मिलीलीटर क्लोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (देहात सी-स्क्वायर ) को 150-200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 1200 लीटर पानी में 300 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (यूपीएल लांसर गोल्ड) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 80 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा रैलिस माणिक) का प्रयोग करें।
थ्रिप्स से होने वाले नुकसान: थ्रिप्स कीट पत्तियों के साथ पौधों की कोमल शाखाओं एवं फूलों का रस चूसते हैं। जिससे पत्तियां धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं। कई बार पत्तीयां नीचे की तरफ मुड़ने लगती हैं। कुछ समय बाद पौधे कमजोर हो कर मुरझाने लगते हैं। इस तरह के रस चूसक कीट वायरस जनित रोगों को तेजी से फैला सकते हैं।
थ्रिप्स पर नियंत्रण के तरीके:
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 80 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा रैलिस माणिक) का प्रयोग करें।
- 80 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एंटोकिल) 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर क्लोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (देहात सी-स्क्वायर) का घोल बना कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
वर्षा के मौसम में आपकी फसल में किस कीट का प्रकोप अधिक होता है और उस पर नियंत्रण के लिए आप क्या तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: फसल प्रणाली में कीट प्रबंधन क्या है?
A: फसल प्रणाली में कीट प्रबंधन कीटों को नियंत्रित करने और फसलों को उनके नुकसान को कम करने के लिए विभिन्न तकनीकों और रणनीतियों के उपयोग को संदर्भित करता है। इसमें कीट आबादी को रोकने, निगरानी और नियंत्रित करने के लिए जैविक, सांस्कृतिक और रासायनिक तरीकों का उपयोग शामिल है।
Q: फसल को कीटों से कैसे बचाएं?
A: भारत में फसलों को कीटों से बचाने के कई तरीके हैं। इनमें प्रतिरोधी फसल किस्मों का उपयोग करना, फसल चक्र अपनाना, मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखना, जैविक एवं रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करना शामिल है। एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) एक व्यापक दृष्टिकोण है जो कीटनाशकों के उपयोग को कम करते हुए कीट आबादी को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मददगार है।
Q: लाभदायक कीट कौन कौन से हैं?
A: भारत में लाभकारी कीड़ों के उदाहरणों में लेडीबग्स, मधुमक्खी, ततैया और शिकारी घुन शामिल हैं। रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता को कम करने के लिए इनमें से कुछ कीटों का उपयोग एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) रणनीति के हिस्से के रूप में किया जा सकता है। वहीं मधुमक्खी जैसे कीट फसलों के उत्पादन को बढ़ाने में सहायक है।
जारी रखने के लिए कृपया लॉगिन करें
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ