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मटर के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन (Major pests of pea and their management)
मटर की खेती (matar ki kheti) में कई तरह के कीटों का प्रकोप होता है, जो फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन कीटों का सही समय पर पहचान और उचित प्रबंधन करना आवश्यक है, ताकि फसल की पैदावार और गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके। इस लेख में हम मटर के प्रमुख कीटों के प्रकोप के लक्षण और उनके नियंत्रण के बारे में बताएंगे।
कैसे करें मटर में कीट प्रबंधन (How to control pests in pea)
फली छेदक कीट:
- फली छेदक कीट मटर की फली में छेद करके फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है।
- ये कीट फलियों में घुसकर अंदर के दानों को खा जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार में 30 से 40 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।
- प्रभावित फलियों में छेद दिखाई देते हैं और अंदर के दाने खाली हो जाते हैं।
- इस कीट के ज्यादा संक्रमण से फल गिरने लगते हैं।
नियंत्रण:
- नीम के तेल या नीम के अर्क का छिड़काव करने से फली छेदक कीट पर नियंत्रण किया जा सकता है।
- फल छेदक कीट को नियंत्रित करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 8 से 10 फेरोमोन ट्रैप लगाएं।
- खेतों में उचित साफ़ सफाई रखें, शुरुआती अवस्था में पौधे पर जहाँ कीट दिखाई दें उन्हें काट कर नष्ट कर दें।
- (DeHaat Illigo, EM-1, इवोक, कमांडर) ईमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस.जी. दवा का छिड़काव 55-60 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- ज्यादा संक्रमण होने पर (DeHaat Ataque, कोराजिन, कवर) क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% SC दवा को 60 मि.ली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
तना मक्खी (Stem Fly):
- इस कीट की मैगट तने के अंदर रहकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे तना फूल जाता है।
- ज्यादा प्रकोप होने पर पूरा पौधा पीला होकर सूख जाता है।
- संक्रमण ज्यादा होने पर पौधों मर जाता है।
- पौधों का विकास रुक जाता है।
नियंत्रण:
- फसल चक्र अपनाएं।
- स्टेम फ्लाई प्रतिरोधी मटर की किस्मों का उपयोग करें।
- इस कीट को नियंत्रित करने के लिए गर्मी में खेतों की अच्छी गहरी जुताई करें और सही समय पर मटर की बुवाई करें।
- खेत की नियमित निगरानी करें और संक्रमित हिस्से को नष्ट कर दें।
- एक एकड़ खेत में 8 से 10 फेरोमोन ट्रैप लगाएं, इससे नर कीट आकर्षित होकर इसमें फस जाएंगे और मर जाते हैं।
- थियामेथोक्साम 25% WG (देहात एसियर, अरेवा, एक्टारा) को 40-50 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- (एंटोकिल, अलिका, इरुका) थियामेथोक्सम 12.6 + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC कीटनाशक को 50 से 80 एम.एल. प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- (DeHaat Ataque, कोराजिन, कवर) क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% SC दवा को 60 मि.ली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
माहू (Aphid):
- मटर की फसल में माहू (Aphid) कीट का प्रकोप गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।
- ये कीट पौधों के कोमल हिस्सों से रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देते हैं।
- पत्तियों पर काले-काले धब्बे बन जाते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है।
- रस चूसने के कारण पत्तियों का रंग पीला हो जाता है, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है।
- मटर की फलियां काली पड़ने लगती हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
- माहू के अधिक प्रकोप से पौधों में फफूंद रोग और मोजेक रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है।
नियंत्रण:
- माहू से प्रभावित पौधों के हिस्सों को काटकर तुरंत नष्ट कर दें, ताकि संक्रमण न फैले।
- माहू कीटों को आकर्षित करने और उनकी संख्या कम करने के लिए खेतों में 4 से 6 लाइट ट्रैप (प्रकाश प्रपंच) लगाएं।
- नीम का तेल 500-600 मिलीलीटर 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ मटर की फसल पर छिड़काव करें इससे कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
- इमिडाक्लोप्रिड 70% WG (कन्ट्रोपेस्ट, प्रोन्टो या एडमायर) कीटनाशक को 12 से 14 ग्राम प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करें।
- थियामेथोक्साम 25% WG (देहात एसियर, अरेवा, एक्टारा) को 40-50 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा माणिक, धनप्रीत या पिरामिड) कीटनाशक को 40 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
मटर में पत्ती सुरंग कीट (Leaf Miner):
- यह कीट मटर के पौधों की पत्तियों में टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाकर हरे भागों को खा जाता है, जिससे पत्तियां सफेद हो जाती हैं।
- प्रभावित पत्तियां पीली या भूरी रंग की हो जाती हैं और आखिर में मर जाती हैं।
- पौधों की बढ़वार की अवस्था में इस कीट का प्रकोप सबसे ज्यादा नुकसान करता है।
- संक्रमण के कारण पौधे की वृद्धि रुक सकती है और उपज में कमी आ सकती है।
नियंत्रण:
- फसल चक्र अपनाएं।
- मटर की कीट प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें।
- मटर के पौधे पर पत्ती सुरंग कीट को नियंत्रित करने के लिए गर्मी में खेतों की अच्छी गहरी जुताई करें और सही समय पर मटर की बुवाई करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल (मीडिया, कॉन्फिडोर) 40-50 मिली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 08.80% + थायमेथोक्सम 17.50% एससी दवा को 80 से 100 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- सायंट्रानिलिप्रोल 10.26% (एफएमसी बेनेविया) दवा को 240 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।
- डेल्टामेथ्रिन 2.8% डब्लू/डब्लू ईसी (बायर डेसिस) दवा को 200 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मटर की फसल में कीटों से हैं परेशान? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: मटर में कौन कौन से कीट लगते हैं?
A: मटर की फसल को कई प्रकार के कीटों का खतरा रहता है, जिनमें मटर एफिड, कटवर्म, मटर का पत्ता, मटर घुन, और थ्रिप्स प्रमुख हैं। ये कीट पौधे के विभिन्न हिस्सों पर हमला करते हैं, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और पैदावार में कमी आती है। मटर के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन करना अति आवश्यक होता है।
Q: मटर का मुख्य खरपतवार कौन सा है?
A: मटर की फसल में मुख्य खरपतवार फलारिस माइनर है। यह शीतकालीन घास मटर की पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित करता है।इसको नियंत्रित करने के लिए उचित हर्बिसाइड का उपयोग करें और सांस्कृतिक प्रथाएं, जैसे फसल रोटेशन और समय पर रोपण, इस खरपतवार को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं।
Q: मटर बोने का सही समय क्या है?
A: मटर की उन्नत खेती करने के लिए इसकी बुवाई का सही समय क्षेत्र और जलवायु पर निर्भर करता है। उत्तरी भारत में इसे अक्टूबर से दिसंबर के बीच और दक्षिणी भारत में नवंबर से फरवरी के बीच बोया जाता है। मटर के अंकुरण के लिए 10-25°C तापमान और अच्छी नमी वाली सूखी मिट्टी आदर्श होती है। मानसून के बाद बुवाई करने से मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है, जिससे मटर की वृद्धि और उपज बेहतर होती है।
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