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19 May
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मक्का की आधुनिक खेती (modern cultivation of maize)


मक्का एक प्रमुख खाद्य फसल है। यह भारत में मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाती है, और इसे बलुई दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी तरह उगाया जा सकता है। मक्का मुख्य रूप से खरीफ फसल है, पर उचित सिंचाई की सुविधा होने पर इसे रबी और जायद में भी उगाया जा सकता है। मक्का कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्रोत है और इसका उपयोग चपाती, भुट्टे, कॉर्नफ्लेक्स, पॉपकॉर्न, और बायोफ्यूल में होता है।

कैसे करें मक्के की आधुनिक खेती ? (How to do modern farming of maize?)

उपयुक्त जलवायु : मक्के की उन्नत खेती विभिन्न जलवायु में की जा सकती है, इसके लिए उष्ण एवं आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम होता है। सिंचाई के लिए बेहतर प्रबंध होने पर इसकी खेती रबी में भी कर सकते हैं।

बुवाई का समय : मक्के की बुवाई रबी और खरीफ दोनों ही मौसम में होती है अगर आप खरीफ में इसकी खेती करना चाहते हैं तो जून से जुलाई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है और अगर आप रबी में मक्के की खेती करते हैं तो अक्टूबर से नवम्बर के बीच बुवाई कर सकते हैं। इसके अलावा जायद में यानि फरवरी से मार्च के महीनें, में भी मक्के की बुवाई की जा सकती है।

बीज की मात्रा :

  • छोटे दाने वाली किस्में: प्रति एकड़ 6.4 से 7.2 किलोग्राम बीज
  • संकर किस्में: प्रति एकड़ 8 से 8.8 किलोग्राम बीज
  • संकुल किस्में: प्रति एकड़ 7.2 से 8 किलोग्राम बीज

बुवाई के लिए दूरी :

  • कतारों के बीच दूरी: 60 सेंटीमीटर
  • अगेती किस्मों के लिए: पौधों के बीच 20 सेंटीमीटर
  • देर से पकने वाली किस्मों के लिए: पौधों के बीच 25 सेंटीमीटर
  • बुवाई की गहराई: 3 से 4 सेंटीमीटर
  • बीज उपचार : बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम मक्के की बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाज़िम से उपचारित करें। प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम कैप्टान से भी उपचारित किया जा सकता है।  पौधों को कई रोगों से बचाने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम थीरम से भी उपचारित कर सकते हैं। जैविक विधि से मक्के की बीज को उपचारित करने के लिए बीजामृत का प्रयोग करें।

उन्नत किस्में :

  • आजाद उत्तम: यह किस्म रबी मौसम के लिए उपयुक्त है। इसके पौधे 7 फीट तक ऊँचे होते हैं। भुट्टे पौधों के मध्य भाग से निकलते हैं। बुवाई के 75-80 दिनों बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ 16 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है।
  • देहात जंबो 55 - 9181 : इसकी खेती बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम के साथ नेपाल में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। यह अधिक पैदावार देने वाली हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म रबी मौसम में खेती के लिए उपयुक्त है। प्रति एकड़ खेत के लिए 8-9 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • पी 3401 (पायनियर): यह एक हाइब्रिड किस्म है। इस किस्म के दाने नारंगी रंग के होते हैं, जो इसे खास बनाता है। पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं, जिससे वे तेज हवा में भी स्थिर रहते हैं और गिरने का खतरा कम होता है। प्रति एकड़ जमीन से लगभग 30 से 35 क्विंटल तक की फसल प्राप्त होती है।
  • एन के 6240 (सिंजेंटा): यह एक संकर किस्म है। इस किस्म की खेती रबी और खरीफ दोनों मौसमों में की जा सकती है। प्रति एकड़ जमीन में खेती के लिए 3 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • एन के 7720 (सिंजेंटा): यह किस्म रबी और खरीफ दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त है। इस किस्म में रोग कम लगते हैं। पौधों की लंबाई कम होने के कारण पौधों के गिरने की समस्या भी कम होती है।
  • अफ्रीकन जायंट : अफ्रीकन जायंट अफ़्रीकी लम्बे का एक चयन है। अफ्रीकन जायंट स्थिर उच्च बायोमास उपज देने वाला मक्का है, किसी भी समय हरे चारे के लिए उपयुक्त है। मजबूत विकास और उत्कृष्ट अनुकूलनशीलता और इसके सेवन से पशु स्वस्थ और डेयरी फार्म में अच्छा लाभ मिलता है। बीज: 18-20 किग्रा/एकड़ बीज दर है।

खेत की तैयारी : खेत तैयार करते समय सबसे पहले मिट्टी पलटने वाली हल या डिस्क हैरो से 1-2 बार गहरी जुताई करें। इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर से 2 बार हल्की जुताई करें। बेहतर फसल प्राप्त करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 3-4 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं, क्योंकि कच्ची गोबर के उपयोग से दीमक के पनपने की संभावना बढ़ जाती है। प्रति एकड़ खेत में 48 किलोग्राम नाइट्रोजन, 24 किलोग्राम फास्फोरस और 16 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। जुताई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा (24 किलोग्राम) और फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा मिलाएं। बची हुई आधी नाइट्रोजन का छिड़काव खड़ी फसल में करें। जुताई के बाद मिट्टी को भुरभुरी और समतल बनाने के लिए पाटा अवश्य लगाएं। बीज की बुवाई के लिए 60 सेंटीमीटर की दूरी पर क्यारियां तैयार करें।

खरपतवार प्रबंधंन : मक्के की फसल में खरपतवार की अधिकता से उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। मक्के में मुख्य रूप से चौड़ी पत्ती और सकरी पत्ती वाले खरपतवार पाए जाते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में सावा, दूब, नरकुल, मोथा, वाइपर घास, चौलाई, जंगली जूट, मकोई, कुंदा घास, हजारदाना आदि खरपतवार होते हैं। इन खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए इन विधियों को अपनाएं:

  • निराई-गुड़ाई: खेत में कम से कम 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करें। 4-5 सेंटीमीटर से अधिक गहराई में निराई-गुड़ाई न करें ताकि मक्के की जड़ों को नुकसान न पहुंचे।
  • खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग: हल्की मिट्टी में: प्रति एकड़ 500 ग्राम एट्राजीन का छिड़काव करें। भारी मिट्टी में: प्रति एकड़ 800 ग्राम एट्राजीन को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। दवाओं के प्रयोग के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। बुवाई के 48 घंटों के अंदर 400 लीटर पानी में 2 से 2.5 लीटर एलाक्लोर 50 प्रतिशत ई.सी मिलाकर छिड़काव करें। बुवाई के 30 से 60 दिनों बाद लॉडिस (टेम्बोट्रेयॉन 42% एस.सी) का छिड़काव करें।

क्या आप मक्का की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ' कृषि ज्ञान ' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: 1 एकड़ में कितना मक्का बीज लगता है?

A: भारत में एक एकड़ भूमि के लिए आवश्यक मक्का के बीज की मात्रा विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि मक्का की किस्म, पौधों के बीच की दूरी और बुवाई की विधि। औसतन, 60 सेमी x 20 सेमी की दूरी के लिए, एक एकड़ भूमि के लिए लगभग 20-25 किलोग्राम मक्का के बीज की आवश्यकता होती है।

Q: मक्के की उन्नत किस्म कौन सी है ?

A: भारत में, मक्का की कई उन्नत किस्में हैं जिन्हें विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित किया गया है। इनमें से कुछ किस्में है - एचएम-4, गंगा -5, शक्तिमान -1, किसान, एन के 7720 (सिंजेंटा), कॉर्नेटो 7332, विजय (सिगनेट 22), प्रो 311 इत्यादि।

Q: मक्के की खेती कितने दिन में होती है?

A: मक्के की फसल की अवधि किस्म और उस स्थान पर निर्भर करती है। आम तौर पर, मक्के की बुवाई से परिपक्व होने में मध्यम अवधि वाली किस्मों को लगभग 90 से 120 दिन, मक्के की जल्दी पकने वाली किस्में 70 से 80 दिन और देर से पकने वाली किस्मों को 150 दिन लगते हैं परिपक्व होने में।

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