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14 May
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धान की आधुनिक खेती (Modern Cultivation of Paddy)

भारत में धान की आधुनिक खेती में उच्च उपज क्षमता वाली उन्नत किस्में जो रोग और कीटों के प्रतिसहनशील बीजों का चयन, मशीनीकृत कृषि तकनीक जैसे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और थ्रेशर का उपयोग और ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी उन्नत सिंचाई प्रणालियों का उपयोग जल संरक्षण और फसल की पैदावार में सुधार के लिए किया जा रहा है। आधुनिक खेती के तरीकों ने भारतीय किसानों को उनकी उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने में मदद की है, जबकि उनकी फसलों की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।

कैसे करें धान की आधुनिक खेती? (How to do modern cultivation of paddy?)

जलवायु : धान गर्म और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है, और 25-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान इसकी वृद्धि के लिए आदर्श माना जाता है। धान मुख्य रूप से मानसून में उगाया जाता है क्योंकि फसल को उच्च आर्द्रता और प्रचुर मात्रा में वर्षा के साथ लंबे, गर्म बढ़ते मौसम की आवश्यकता होती है।

मिटटी : धान की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिटटी की आवश्यकता होती है, जिसकी जल और पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता अच्छी हो। भारत में धान की खेती के लिए जलोढ़ मिट्टी सबसे अच्छी मानी गयी है इसके अलावा काली मिट्टी, चिकनी, मटियार, मटियार-दोमट, लाल मिट्टी और लेटराइट मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। मिटटी का पी.एच. 5.5 6.5 के बीच अच्छा माना जाता है।

बीजदर : धान की रोपाई के लिए 12 से 20 कि.ग्रा. प्रति एकड़ बीजों की आवश्यकता होती है वहीं अगर सीधी बुवाई करनी है तो उसके लिए 30 से 40 कि.ग्रा. प्रतिएकड़ बीज की जरूरत होती है, और छिड़काव के माध्यम से बिजाई करने के लिए लगभग 40 से 50 किग्रा. प्रति एकड़ बीज लगता है।

किस्में :

  • पूसा बासमती 1121: यह बासमती चावल की एक लोकप्रिय किस्म है जो अपने लंबे अनाज, सुगंध और स्वाद के लिए जानी जाती है। यह एक उच्च उपज देने वाली किस्म है जो प्रति हेक्टेयर 5-6 टन तक उत्पादन कर सकती है।
  • आईआर 64: यह धान की एक गैर-बासमती किस्म है जो अपनी उच्च उपज और अच्छी गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। 20-25 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार। उत्पादन कर सकता है। यह किस्म 125-130 दिन में तैयार हो जाती है।
  • पूसा सुगंध 3: यह सुगंधित बासमती धान है जो 130-135 दिन में तैयार होती है इसकी पैदावार लगभग 30-35 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।  यह किस्म पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर के लिए अनुकूल है।
  • देहात डीपीएस समृद्धि: यह किस्म लगभग 120 से 125 दिन में पक जाती है इसके दानें लम्बे होते हैं।  साथ ही यह किस्म कीट और रोगों के प्रति मध्यम सहनशील है।  समृद्धि किस्म मध्यम तनाव के प्रति मध्यम सहनशील है और अच्छी गुणवत्ता से भरपूर है।  इसके पौधे की ऊँचाई 110-120 सेमी होती है साथ ही दानें की लम्बाई 10-12 इंच होती है।  इसकी बिजाई के लिए बीज की मात्रा 6 किलो प्रति एकड़ है।
  • देहात डीपीएस विराट: यह 120-125 दिन में तैयार होती है और इसके दानें लम्बे और पतले होते हैं।  यह किस्म  बीएलबी (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट) और ब्लास्ट रोग के लिए प्रतिरोधी किस्म है।  इसके पौधों की ऊंचाई 85-90 सेमी होती है और इसको बुवाई के लिए प्रति एकड़ के हिसाब से 6 किलो बीज की आवश्यकता होती है।
  • देहात डीपीएस डबल गोल्ड: यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (बीएलबी) के लिए प्रतिरोधी है।  और यह लोकप्रिय किस्मों की तुलना में लगभग 25-30%ज्यादा उपज देती है।  और यह 135-140 दिन में पककर तैयार होती है। यह धान की सीधी बिजाई (डीएसआर) के लिए उपयुक्त किस्म है और इसका बीज दर डीएसआर के लिए 10 किलो प्रति एकड़, और अन्य में 6 किलो प्रति एकड़ है।

नर्सरी की तैयारी :

  • धान की नर्सरी का सबसे अच्छा समय जून का होता है। जल्दी पकने वाली किस्मों को जून के दूसरे-तीसरे सप्ताह  और माध्यम और देर से पकने वाली किस्मों को जून के दूसरे सप्ताह तक बुवाई कर देना चाहिए।
  • नर्सरी में पहली परत में 1 इंच गोबर की खाद, उसके ऊपर 1.5 इंच भुरभुरी मिट्टी, फिर से 1 इंच सड़ी हुई गोबर की खाद और आखिर में 2.5 इंच भुरभुरी मिट्टी डालें।
  • इसके बाद नर्सरी में क्यारियाँ बनाएं और ऊपर के हिस्सों में बीज लगाएं। बीजों को सड़ी गोबर खाद और भुरभुरी मिट्टी से ढक दें या फिर पुआल भी उपयोग कर सकते हैं।
  • फिर नर्सरी की सिंचाई फल्चरा विधि या नालियों में पानी भरकर करें।
  • पौधों को उखाड़ने से 5-6 दिन पहले प्रति 100 वर्ग मीटर में 1 किलोग्राम नाइट्रोजन का छिड़काव करें।
  • बीज लगाने के 3-4 सप्ताह बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार। नर्सरी से निकालने के बाद पौधों को जल्द ही खेत में लगाएं।

बुवाई के पहले खेत की तैयारी :

  • उचित जल निकास वाली चिकनी दोमट मिट्टी का चुनाव करें। जिसमें कार्बनिक खाद की उपयुक्त मात्रा उपलब्ध हो।
  • रोपाई से 3 सप्ताह पहले सुखी जुताई करें, 2 सप्ताह पहले गोबर की खाद डालकर जुताई करें और जैविक खाद या हरा खाद मिलाकर खेत को समतल करें। फिर रोपाई से 3 दिन पहले 5-10 सेमी पानी भरकर खेत को जलमग्न करें।
  • पौधों को एक कतार में लगाएं, ध्यान रखें एक स्थान पर 1-2 पौधे ही लगाएं और रोपाई के बाद खेत से पानी निकाल दें।

सिंचाई प्रबंधन :

  • नर्सरी में जल प्रबंधन : धान की नर्सरी में पानी की कमी होने से बीज अंकुरित होने में कठिनाई होती है। इसलिए नर्सरी में फव्वारा विधि से सिंचाई करें या फिर क्यारियों के बीच में नाली बना कर उसमें पानी चला कर भी सिंचाई कर सकते हैं।
  • खेत में जल प्रबंधन : धान की रोपाई के समय से लेकर रोपाई के करीब 1 सप्ताह बाद तक खेत में 2 से 3 सेंटीमीटर पानी होना बेहद जरूरी है। खेत में ज्यादा पानी न रहने दें। अधिक पानी होने से छोटे पौधों के सड़ सकते हैं। धान की बालियां बनते समय, फूल निकलते समय और दाने बनते समय खेत में 5 - 7 सेंटीमीटर तक पानी होना चाहिए। ऐसे क्षेत्र जहां हमेशा पानी लगा रहता है वहां जल निकास की उचित व्यवस्था करें।

उर्वरक प्रबंधन:

  • जल्द पकने वाली किस्मों में खेत तैयार करते समय 24 किग्रा नाइट्रोजन, 24 किग्रा फॉस्फोरस, 24 किग्रा पोटाश प्रति एकड़ दें और कल्ले निकलते समय दोबारा 24 किग्रा नत्रजन का छिड़काव करें।
  • मध्यम और देर से पकने वाली किस्मों में खेत तैयार करते समय 30 किग्रा नत्रजन, 24 किग्रा फॉस्फोरस, 24 किग्रा पोटाश प्रति एकड़ दें और कल्ले निकलते समय 30 किग्रा नत्रजन का छिड़काव करें।
  • देर से पकने वाली किस्मों में 48 किग्रा नत्रजन, 24 किग्रा फॉस्फोरस, 24 किग्रा पोटाश प्रति एकड़ दें
  • धान की सीधी बुवाई की विधि में 40-48 किग्रा नत्रजन प्रति एकड़, 1 भाग जुताई के समय और दूसरा भाग कल्ले निकलते समय और तीसरा भाग बालियां बनते समय देना है इसके अलावा 20 किग्रा फॉस्फोरस और 20 किग्रा पोटाश का उपयोग।

खरपतवार प्रबंधन :

  • धान की फसल में मुख्य रूप से जंगली सांवा, जंगली कोदो, दूब घास, सवईं घास, बांसी घास, भंगरैया, कांटेदार चौलाई, महकुआ, पत्थरचट्टा आदि खरपतवार लगते हैं।
  • इनके कारण धान के उत्पादन में कमी, रोग और कीटों का खतरा साथ ही फसल की गुणवत्ता में भी कमी आती है।

नियंत्रण :

  • रबी की फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करके खेत को धुप में खाली छोड़ दें इससे खरपतवार के बीज और जड़ें तेज धूप में नष्ट।
  • रोपाई के 20 दिन बाद हाथों से निराई - गुड़ाई करके खरपतवारों को निकालें। इसके अलावा खुरपी, पैडी वीडर या कोनोवीडर का उपयोग करके इन्हे नष्ट किया जा सकता है।
  • खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए उच्च गुणवत्ता के बीज, अच्छी सड़ी गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करें। साथ ही खेती के यंत्रों और सिंचाई नालियों की अच्छी तरह से सफाई रखें।
  • जब संक्रमण ज्यादा हो जाता है तो खरपतवारनाशक दवाओं का प्रयोग करके इन्हे नष्ट कर सकते हैं।

कीट प्रबंधन :

  • ब्राउन प्लांट हॉपर (बीपीएच): बीपीएच एक रस चूसने वाला कीट है जो धान के पौधों के रस पर फ़ीड करता है। यह पत्तियों को पीला करके सूखा देता है, इसके अलावा पौधे के विकास को रोक कर उपज में कमी का कारण बनता है। बीपीएच फसल के टिलरिंग अवस्था में सबसे ज्यादा लगता है।
  • तना छेदक: तना छेदक एक इल्लई है जो धान के पौधों के तने में छेद करता है और आंतरिक ऊतकों को खाता है। यह पौधों के मुरझाने, सूखने और गिरने का कारण बनता है, जिससे उपज का महत्वपूर्ण नुकसान हो सकता है। स्टेम बोरर फसल के वानस्पतिक और प्रजनन चरणों के दौरान सबसे अधिक सक्रिय होता है।
  • लीफ फोल्डर: लीफ फोल्डर एक कैटरपिलर है जो धान के पौधों की पत्तियों को फोल्ड और फीड करता है। यह पत्तियों के सूखने और पीलेपन, प्रकाश संश्लेषण में कमी और कम उपज का कारण बनता है। फसल के शुरुआती चरणों के दौरान पत्ती फ़ोल्डर सबसे अधिक सक्रिय होता है।

रोग प्रबंधन :

  • ब्लास्ट: ब्लास्ट एक कवक रोग है जो चावल के पौधे के सभी भागों को प्रभावित करता है। यह पत्तियों, तनों और पुष्पगुच्छों पर अण्डाकार या धुरी के आकार के घावों का कारण बनता है। घाव शुरू में भूरे-हरे रंग के होते हैं और परिपक्व होने पर भूरे रंग के हो जाते हैं। यदि समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो ब्लास्ट महत्वपूर्ण उपज हानि का कारण बन सकता है।
  • शीथ ब्लाइट: शीथ ब्लाइट एक कवक रोग है जो चावल के पौधे के आवरण को प्रभावित करता है। यह म्यान पर पानी से लथपथ घावों का कारण बनता है, जो परिपक्व होने पर भूरे और परिगलित हो जाते हैं। रोग तेजी से फैल सकता है और समय पर नियंत्रित नहीं होने पर महत्वपूर्ण उपज हानि का कारण बन सकता है।
  • बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट: बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट एक जीवाणु रोग है जो चावल के पौधे की पत्तियों को प्रभावित करता है। यह पत्तियों पर पानी से लथपथ घावों का कारण बनता है, जो परिपक्व होने पर पीले और परिगलित हो जाते हैं। रोग तेजी से फैल सकता है और समय पर नियंत्रित नहीं होने पर महत्वपूर्ण उपज हानि का कारण बन सकता है।

कटाई :

  • धान की कटाई के समय दानों में 20-25% नमी होनी चाहिए और 80-85% बालियां पीली हो गयी हों। कटाई के लिए हंसिया या फिर कम्बाइनर का इस्तेमाल करें।
  • कटाई करते समय ध्यान रखें की नम वातावरण में कटाई करने से बचें, खेत में पानी हो तो 7-10 दिन पहले निकल दें। कटाई के बाद धान को अधिक समय तक न सुखाएं। वर्षा और ओस से बचाएं।

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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: धान का बीज एक एकड़ में कितना लगता है?

A: धान की बुआई के लिए एक एकड़ खेत में डी.एस.आर विधि द्वारा 25-30 किलो बीजों की जरूरत प्रति एकड़ होती है, और अगर आप सामान्य विधि से बुवाई करते हैं तो 6-10 किलो बीज प्रति एकड़ लगता है।

Q: धान के पौध की रोपाई कितनी दूरी पर करनी चाहिए?

A: धान रोपाई के लिए पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 से टीमीटर तथा एक स्थान पर 2 से 3 पौधे लगाना चाहिए।

Q: 1 एकड़ में कितना धान उत्पादन होता है?

A: एक एकड़ में उत्पादित धान की मात्रा कई कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है जैसे कि धान की विविधता, मिट्टी की उर्वरता, जलवायु, सिंचाई और खेती के तरीके। औसतन, भारत में, प्रति एकड़ धान की उपज 1,500 से 2,500 किलोग्राम तक होती है। हालांकि, अच्छी कृषि पद्धतियों और उचित प्रबंधन के साथ, उपज को 4,000 किलोग्राम प्रति एकड़ तक बढ़ाया जा सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उपज एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र और मौसम से मौसम में काफी भिन्न हो सकती है।

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