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17 Apr
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मूंग: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Moong: Disease, Symptoms, Prevention and Treatment

प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा से भरपूर मूंग एक प्रमुख दलहन फसल है। रबी फसलों की कटाई के बाद इसकी खेती किसानों के लिए बहुत लाभदायक साबित होती है। इसकी बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है। इसके अलावा मटियार मिट्टी और बलुई मिट्टी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। अन्य फसलों की तरह मूंग की फसल में भी कई तरह के रोगों का प्रकोप होता है। जिनमें पीला चितकबरा रोग सर्कोस्पोरा पर्णदाग, एन्थ्रेक्नोज, चारकोल विगलन, भभूतिया रोग, उकठा रोग आदि शामिल है। आइए इस पोस्ट के द्वारा मूंग की फसल को क्षति पहुंचाने वाले कुछ प्रमुख रोगों से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण की जानकारी प्राप्त करें।

मूंग की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major disease affecting the Moong Plants

मोजेक रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को पीला चितकबरा रोग के नाम से भी जाना जाता है। सफेद मक्खी और एफिड इस रोग को फैलाने का काम करते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली हो कर सिकुड़ने लगती हैं। पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है। रोग से प्रभावित पौधों में फल नहीं लगते हैं।

मोजेक रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें।
  • 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर जिओलाइफ नो वायरस (जैव विषाणुनाशक) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • 150-200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 80 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेडसी (देहात एंटोकिल) मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।

पत्ती धब्बा रोग से होने वाले नुकसान: वर्षा के मौसम में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। वातावरण में नमी एवं अधिक आर्द्रता के कारण यह रोग तेजी से फैलता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। समय के साथ यह धब्बे भूरे से काले रंग में बदलने लगते हैं। रोग बढ़ने पर धब्बों का आकार बढ़ता जाता है और पत्तियां पीली हो कर गिरने लगती हैं। पौधों के विकास में बाधा आती है और समय रहते नियंत्रण नहीं करने से पौधे नष्ट हो जाते हैं।

पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में 350 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू पी (देहात साबू) का प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 350 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू पी (देहात जिनेक्टो) का भी छिड़काव कर सकते हैं।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 250 मिलीलीटर एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी (देहात एज़ीटॉप) मिला कर छिड़काव करने से भी इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।

चारकोल विगलन से होने वाले नुकसान: यह रोग पौधों के तने एवं जड़ों को प्रभावित करता है। इस रोग के कारण जड़ें एवं तना गलने लगते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की जड़ों और तने पर काले- भूरे रंग के कवक जाल नजर आते हैं। रोग बढ़ने पर पत्तियों की निचली सतह पर लाल भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं। प्रभावित पौधे नष्ट हो जाते हैं।

चारकोल विगलन पर नियंत्रण के तरीके:

  • बुवाई के लिए रोग रहित बीज का चयन करें।
  • फसल चक्र अपनाएं।
  • प्रति किलोग्राम बीज को 2-3 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू पी (देहात साबू) या 08-10 ग्राम ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू पी (आईपीएल संजीवनी) से उपचारित करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम कॉपर आक्सी क्लोराइड 50% डब्ल्यू पी (क्रिस्टल ब्लू कॉपर) से ड्रेनचिंग करें।
  • मृदा जनित रोगों पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी (बायोस्टैड रोको) की ड्रेंचिंग करें।

भभूतिया रोग से होने वाले नुकसान: यह रोग पौधों की पत्तियों के दोनों ओर मटमैले सफेद रंग के धब्बे के रूप में प्रकट होता है, बाद में ये धब्बे तने पर भी बनते हैं। अनुकूल वातावरण में धीरे-धीरे धब्बे बढ़ते जाते हैं और आपस में मिलकर पौधे को सम्पूर्ण रूप से ढक लेते हैं। बाद में खड़ियानुमा सफेद चूर्ण फैल जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की वृद्धि में बाधा आती है।

भभूतिया रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी (देहात एज़ीटॉप) का छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू पी (देहात ज़िनेक्टो) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 ग्राम ज़िनेब 68% + हेक्साकोनाज़ोल 4% डब्ल्यू पी (इंडोफिल अवतार) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 400 ग्राम मेटिरम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% डब्लू जी (बीएएसएफ कैब्रियोटॉप) मिला कर छिड़काव करने से भी इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।

उकठा रोग से होने वाले नुकसान: किसी भी अवस्था की फसल इस रोग से प्रभावित हो सकती है। जल निकासी की उचित व्यवस्था नहीं होने पर या नमी वाले क्षेत्रों में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। यह एक मृदा जनित रोग है। जिसे पौधे मुरझाए हुए नजर आते हैं और इस रोग पर नियंत्रण नहीं करने पर पौधे नष्ट हो जाते हैं।

उकठा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • जल जमाव वाले क्षेत्रों में मूंग की खेती न करें।
  • नीचे बताई गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
  • खेत की तैयारी करते समय गोबड़ की सड़ी-गली हुई खाद के साथ 2 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा विरीडी (आईपीएल संजीवनी) प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम कॉपर आक्सी क्लोराइड 50% डब्ल्यू पी (क्रिस्टल ब्लू कॉपर) की ड्रेंचिंग करें।
  • मृदा जनित रोगों पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी (बायोस्टैड रोको) की ड्रेंचिंग करें।

आपके मूंग की फसल में रोग प्रबंधन के लिए आप किन दवाओं का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: मूंग में कौन कौन से रोग लगते हैं?

A: मूंग की फसल में मुख्य रूप से पीला चितकबरी (मोजेक) रोग, सर्कोस्पोरा पर्णदाग (Leaf Spot), एन्थ्रेक्नोज, चारकोल विगलन, भभूतिया (पावडरी मिल्डयू) रोग, उकठा रोग का प्रकोप अधिक होता है।

Q: मूंग के पत्ते पीले क्यों होते हैं?

A: मूंग की फसल में पीला मोसैक वायरस रोग के कारण से पत्ते पीले दिखाई देते हैं, इस रोग के कारण से पैदावार में गिरावट आ जाती है। इसके अलावा पोषक तत्वों की कमी के कारण भी पत्ते पीले हो सकते हैं।

Q: मूंग की अच्छी पैदावार के लिए क्या करें?

A: मूंग की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्म का चयन करें, खाद-उर्वरक, पोषक तत्व का प्रबंधन समय पर करें, खेत को साफ-सुथरा रखें। खेत की तैयारी के समय देहात स्टार्टर का 04 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।

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