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शहतूत की खेती | Mulberry Cultivation
शहतूत के फलों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसके फल खाने में स्वादिष्ट होने के साथ पोषक तत्वों से भरपूर भी होते हैं। भारत में शहतूत की खेती मुख्यतः रेशम उत्पादन के लिए की जाती है, इस कारण यह और भी मूल्यवान हो जाता है। शहतूत की खेती की तकनीकियों को समझकर और उनका सही तरीके से पालन करके किसान अच्छे उत्पादन और मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी खेती से पहले उपयुक्त समय, जलवायु, मिट्टी, खेत की तैयारी, सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण, रोग एवं कीट नियंत्रण, जैसी महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
शहतूत की खेती कैसे करें? | How to cultivate Mulberry
- शहतूत की खेती के लिए उपयुक्त समय: शहतूत के पौधे की बुवाई या रोपाई के लिए आदर्श समय जुलाई से सितंबर के बीच का होता है। इस दौरान अच्छी वर्षा होती है, जिससे पौधों को पर्याप्त नमी मिलती है और जड़ों का बेहतर विकास होता है। शहतूत के पौधों की रोपाई का दूसरा समय फरवरी से मार्च के बीच का होता है। इस समय ठंड का मौसम ख़त्म होने लगता है और तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।
- उपयुक्त जलवायु: शहतूत के पौधे गर्म और समशीतोष्ण जलवायु में अच्छे से पनपते हैं। इसे 25 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में सबसे अधिक अनुकूल माना जाता है। शहतूत के पौधों को अधिक ठंड और पाले से नुकसान पहुंच सकता है, इसलिए इसे उन क्षेत्रों में उगाना चाहिए जहां तापमान बहुत कम नहीं होता। साथ ही, अच्छी वर्षा वाले क्षेत्रों में भी शहतूत की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
- उपयुक्त मिट्टी: शहतूत की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह मिट्टी जल निकासी के साथ-साथ नमी को भी बनाए रखती है, जो शहतूत के पौधों के लिए आवश्यक है। इसके अलावा, मिट्टी का पीएच स्तर 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी शहतूत के पौधों के विकास को प्रभावित कर सकती है। इसलिए अधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी में इसकी खेती करने से बचें।
- खेत तैयार करने की विधि: शहतूत की खेती के लिए खेत की तैयारी महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, खेत की अच्छी तरह जुताई करें। इसके बाद, 3-4 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। खेत की जुताई के बाद, खेत को अच्छे से समतल करें। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। शहतूत की खेती के लिए खेत में नालियों की व्यवस्था भी करनी चाहिए जिससे अतिरिक्त पानी आसानी से निकल सके। पौधों की रोपाई के लिए खेत में 24 इंच गहरा, 24 इंच गहरा चौड़ा और 24 इंच गहरा लम्बा गड्ढा तैयार करें। सभी गड्ढों के बीच 1.5-2 मीटर की दूरी रखें।
- पौधों की मात्रा: इसकी खेती पौधों की रोपाई के द्वारा की जाती है। नर्सरी में बीज की रोपाई करके पौधे तैयार किए जाते हैं। प्रति एकड़ खेत में 320 से 400 पौधों की आवश्यकता होती है।
- रोपाई की विधि: शहतूत के पौधों की रोपाई खेत में पहले से तैयार किए गए गड्ढों में करें। पौधों की रोपाई के बाद मिट्टी में गोबर की खाद मिला कर गड्ढों को भरें। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें। इससे जड़ों का विकास सुचारु रूप से होता है।
- सिंचाई प्रबंधन: वर्षा के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन शुष्क मौसम में नियमित रूप से सिंचाई करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में 15-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती है। जल जमाव की समस्या से बचने के लिए अधिक सिंचाई नहीं करनी चाहिए और खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। पौधों के विकास एवं उनमें फल आने के समय पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है, इसलिए इस अवधि में सिंचाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- खरपतवार नियंत्रण: शहतूत की खेती में खरपतवार नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। खरपतवार पौधों से पोषक तत्व और पानी ग्रहण कर लेते हैं, जिससे पौधों का विकास प्रभावित होता है। इसके लिए खेत को समय-समय पर निराई और गुड़ाई करके खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। खरपतवारों की समस्या अधिक होने पर रासायनिक खरपतवार नाशक दवाओं का उपयोग भी किया जा सकता है, लेकिन इनका प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए।
- रोग एवं कीट नियंत्रण: शहतूत के पौधों में विभिन्न प्रकार के रोग और कीट आक्रमण कर सकते हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। प्रमुख रोगों में शहतूत की पत्तियों का झुलसा रोग और फलों का गलना शामिल है। इसके अलावा, कीटों में शहतूत का तना छेदक और पत्ती खाने वाले कीट अधिक हानि पहुंचाते हैं। इनसे बचाव के लिए नियमित निरीक्षण करें और आवश्यकता होने पर जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए। रोगग्रस्त पौधों को हटाकर नष्ट करना भी आवश्यक है।
- फलों की तुड़ाई: आमतौर पर, शहतूत के फलों की तुड़ाई अप्रैल से जून के बीच की जाती है। फलों की तुड़ाई के समय यह ध्यान रखना चाहिए कि फल पूरी तरह से पक गए हों और उनका रंग गहरा हो गया हो। तुड़ाई के बाद, फलों को सावधानीपूर्वक इकट्ठा करके छांव में रखें। जिससे फल लम्बे समय तक ताजे बने रहे। शहतूत के फलों को ताजा खाया जा सकता है, साथ ही उनसे जैम, जूस, और अन्य खाद्य पदार्थ भी बनाए जा सकते हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: शहतूत कितने साल में फल देता है?
A: शहतूत के पेड़ आमतौर पर रोपाई के 3-4 वर्षों बाद फल देना शुरू करते हैं। हालांकि, शहतूत की विविधता, बढ़ती परिस्थितियों और अन्य कारकों के आधार पर सटीक समय भिन्न हो सकता है। भारत में, शहतूत फलने का मौसम आमतौर पर जून से शुरू होता है और अगस्त तक रहता है।
Q: भारत में शहतूत के पेड़ कब लगाएं?
A: भारत में शहतूत के पेड़ लगाने का सबसे अच्छा समय वर्षा के मौसम के दौरान होता है, जो जून से सितंबर तक होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मिट्टी नम है और मौसम पेड़ की वृद्धि के लिए अनुकूल है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मिट्टी अच्छी तरह से सूखा हो और पेड़ को पनपने के लिए स्थान को पर्याप्त धूप मिले।
Q: शहतूत को कितनी बार पानी देना चाहिए?
A: शहतूत के पेड़ों को नियमित रूप से पानी देना चाहिए, खासकर रोपाई के बाद पहले वर्ष के दौरान। सिंचाई की आवृत्ति मौसम की स्थिति और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है। सामान्य तौर पर, शुष्क मौसम के दौरान पेड़ को सप्ताह में एक या दो बार गहराई से पानी देना चाहिए, और वर्षा के मौसम में आवश्यकता होने पर। ओवरवाटरिंग से बचना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे रूट सड़ांध और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
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