सरसों में झुलसा रोग: लक्षण, कारण और प्रबंधन (Mustard Blight: Symptoms, Causes and Management)

सरसों भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन फसलों में से एक है, लेकिन कई प्रकार की बीमारियों के कारण इसकी उपज प्रभावित हो सकती है। इनमें से एक प्रमुख बीमारी झुलसा रोग (Blight Disease) है, जो सरसों की पत्तियों, तनों और फलियों को नुकसान पहुंचाकर उत्पादन में भारी गिरावट ला सकती है। यह रोग मुख्य रूप से कवक (फंगस) के कारण फैलता है और ठंडी व नमीयुक्त परिस्थितियों में तेजी से फैलता है। इस लेख में हम सरसों में झुलसा रोग के कारण, लक्षण और नियंत्रण के प्रभावी उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
सरसों में झुलसा रोग के कारण एवं लक्षण (Causes and symptoms of mustard blight)
झुलसा रोग सरसों की फसल को भारी नुकसान पहुंचाने वाला एक फफूंद जनित रोग है, जो ठंडे और नमी वाले मौसम में तेजी से फैलता है। यह रोग मुख्य रूप से Alternaria brassicae और Alternaria brassicicola नामक कवकों के कारण होता है। यह कवक संक्रमित बीजों, खेत में बचे पुराने फसल अवशेषों और नमी युक्त मिट्टी में जीवित रहते हैं और अनुकूल मौसम में सक्रिय हो जाते हैं। 80% से अधिक आर्द्रता और 15-25°C तापमान इस रोग के प्रसार के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाते हैं। यदि खेत में अत्यधिक सिंचाई हो या पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व न मिले, तो यह रोग तेजी से फैलता है।
सरसों में झुलसा रोग के लक्षण (Symptoms of Blight Disease in Mustard)
- पत्तियों पर धब्बे: शुरुआत में पत्तियों पर छोटे भूरे या काले धब्बे उभरते हैं, जिनके चारों ओर पीला घेरा बना होता है। धीरे-धीरे ये धब्बे बड़े होकर पूरी पत्ती को सुखाने लगते हैं।
- तनों पर निशान: रोग बढ़ने पर तनों पर लंबे, गहरे रंग के धब्बे उभर आते हैं, जिससे पौधा कमजोर पड़ने लगता है और उसकी बढ़वार रुक जाती है।
- फूलों और फलियों पर असर: झुलसा रोग से प्रभावित पौधों में फूल झड़ने लगते हैं और फलियों पर काले धब्बे बनने लगते हैं, जिससे सरसों के दाने खराब हो जाते हैं या नहीं बन पाते।
- पत्तों का सूखना: संक्रमित पत्तियां मुरझाकर धीरे-धीरे गिरने लगती हैं, जिससे पौधों का विकास रुक जाता है और उनकी उत्पादन क्षमता घट जाती है।
- उत्पादन में गिरावट: यदि समय पर ध्यान न दिया जाए, तो झुलसा रोग के कारण सरसों की उपज में 30-40% तक कमी आ सकती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
सरसों में झुलसा रोग नियंत्रण (Control of Blight Disease in Mustard)
- फसल चक्र अपनाएं: लगातार एक ही खेत में बार-बार सरसों की खेती करने से झुलसा रोग का प्रकोप बढ़ सकता है। इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाएं। अन्य तिलहन फसलें जैसे चना, मसूर, या गेहूं की बुवाई कर रोग के फैलाव को कम किया जा सकता है।
- रोग रहित एवं प्रतिरोधी बीज का चयन: सरसों की खेती के लिए स्वस्थ और रोग रहित बीजों का चयन करें। संक्रमित बीजों के उपयोग से यह रोग खेत में फैल सकता है, जिससे फसल की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बीज उपचार करके ही बुवाई करें। झुलसा रोग के प्रति सहनशील या प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई से रोग के प्रकोप को कम किया जा सकता है और फसल सुरक्षित रह सकती है।
- खेत की सफाई: झुलसा रोग से प्रभावित फसलों के अवशेष जैसे पत्तियां, तने या संक्रमित पौधों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट करें। इसके अलावा, खेत में खरपतवारों पर भी नियंत्रण करें, क्योंकि वे रोग फैलाने में सहायक होते हैं।
- संक्रमित पौधों का नष्ट करना: यदि झुलसा रोग के लक्षण दिखाई दें तो प्रभावित पौधों को उखाड़कर जला दें या गहरी मिट्टी में दबा दें। इससे रोग के प्रसार को रोका जा सकता है।
- सिंचाई प्रबंधन: सरसों की फसल में आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से बचें। जलजमाव की स्थिति में यह रोग तेजी से फैलता है, इसलिए खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें और सिंचाई संतुलित मात्रा में करें।
रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control)
- टेबुकोनाज़ोल 75% WG (बायर बूनोस) प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर मिलाकर स्प्रे करें।
- एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC (देहात ऐजीटॉप, अदामा कस्टोडिया) 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- हेक्साकोनाज़ोल 5% + कैप्टन 70% WP (टाटा ताकत) 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- मेटिराम 55% + पाइराक्लोस्ट्रोबिन 5% WG (बी.ए.एस.एफ कैब्रियो टॉप) 600-700 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- पाइराक्लोस्ट्रोबिन 13.3% + एपॉक्सीकोनाज़ोल 5% SE (बी.ए.एस.एफ ओपेरा) 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डिफेनोकोनाज़ोल 11.4% SC (देहात सिनपैक्ट) 200 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इप्रोडायोन 50% WP (रोवराल 50 WP) – 900 ग्राम से 1.2 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- मेटालेक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% WP (रिडोमिल गोल्ड, मेटको) 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked question)
Q: सरसों के मुख्य रोग कौन से हैं?
A: सरसों की फसल में झुलसा रोग, सफेद रतुआ, तना गलन, चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) और माहू जैसे कीटों का प्रकोप देखने को मिलता है। इनमें झुलसा रोग सबसे खतरनाक माना जाता है, क्योंकि यह पत्तियों, तनों और फलियों को प्रभावित कर उत्पादन में भारी गिरावट ला सकता है।
Q: सरसों में सल्फर की कमी के क्या लक्षण हैं?
A: जब सरसों में सल्फर की कमी होती है, तो पत्तियां हल्की हरी या पीली पड़ने लगती हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है। इसके अलावा, फूल और फलियां कम बनने लगती हैं, जिससे उत्पादन घट जाता है। सरसों के दाने छोटे और हल्के हो जाते हैं, जिससे तेल की मात्रा भी कम हो जाती है।
Q: झुलसा रोग के लक्षण क्या है?
A: झुलसा रोग के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर छोटे भूरे या काले धब्बों के रूप में दिखते हैं, जिनके चारों ओर पीला घेरा होता है। रोग बढ़ने पर तनों और फलियों पर भी ऐसे ही धब्बे बनने लगते हैं, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और फलियां समय से पहले सूखने लगती हैं। इससे उत्पादन में भारी गिरावट आती है।
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