ड्रिप सिंचाई के द्वारा करें प्याज की खेती | Onion Cultivation through Drip Irrigation

भारत के अधिकांश क्षेत्रों में प्याज की खेती परंपरागत सिंचाई पद्धतियों के तहत की जाती है। लेकिन इन दिनों कुछ क्षेत्रों में किसान प्याज की खेती में आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके अधिक उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं। इन तकनीकों में से एक प्रमुख तकनीक है ड्रिप सिंचाई। इसे टपक सिंचाई या बूंद-बूंद सिंचाई के नाम से भी जाना जाता है। ड्रिप सिंचाई एक ऐसी पद्धति है, जिसके माध्यम से पानी को धीरे-धीरे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है, जिससे पानी की बचत होती है और फसल की उत्पादकता में वृद्धि होती है। इस आर्टिकल में हम प्याज की खेती में ड्रिप सिंचाई पद्धति के उपयोग, उसके लाभ एवं इसकी प्रक्रिया के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे।
प्याज की खेती के लिए ड्रिप सिंचाई की आवश्यकता | Need for Drip Irrigation in Onion Farming
प्याज एक ऐसी फसल है, जिसे समान मात्रा में नमी की आवश्यकता होती है। आवश्यकता से अधिक पानी या कम पानी दोनों ही प्याज की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। पारंपरिक सिंचाई विधियों से पानी की अधिक खपत होती है और सिंचाई का प्रबंधन करना कठिन होता है। ड्रिप सिंचाई पद्धति से इन समस्याओं का समाधान मिलता है क्योंकि इसमें पौधों को आवश्यकतानुसार पानी सीधे जड़ों तक पहुंचाया जाता है। ड्रिप सिंचाई पद्दति के द्वारा उर्वरकों का भी उचित प्रबंधन किया जा सकता है।
प्याज की खेती के लिए ड्रिप सिंचाई का महत्व | Importance of Drip Irrigation for Onion Farming
- पानी की बचत: प्याज की खेती में सिंचाई का सही प्रबंधन करना बेहद महत्वपूर्ण होता है। ड्रिप सिंचाई के माध्यम से 30-50% तक पानी की बचत की जा सकती है। इसमें पानी केवल जड़ों तक पहुंचाया जाता है, जिससे भूमि के अन्य हिस्सों में पानी बर्बाद नहीं होता।
- उर्वरक का प्रभावी उपयोग: ड्रिप सिंचाई में उर्वरक को पानी के साथ मिलाकर सीधे जड़ों तक पहुंचाया जा सकता है, जिससे उर्वरक का अधिकतम उपयोग होता है। इससे फसल की गुणवत्ता में वृद्धि होती है और उत्पादन भी अधिक होता है।
- समय और श्रम की बचत: ड्रिप सिंचाई से किसान सिंचाई के लिए पानी देने में लगने वाले समय और श्रम को बचा सकते हैं। पाइपलाइन सिस्टम और टपक विधि से पूरे खेत में एकसमान पानी पहुंचाना आसान होता है।
- उत्पादन में वृद्धि: ड्रिप सिंचाई से प्याज की फसल को पर्याप्त नमी मिलती रहती है, जिससे पौधों की जड़ों का विकास बेहतर होता है। इससे प्याज का आकार और गुणवत्ता बेहतर होती है और उत्पादन में 20-30% की वृद्धि होती है।
- रोग और कीट नियंत्रण: ड्रिप सिंचाई से पानी की आवश्यकता के अनुसार आपूर्ति होती है, जिससे मिट्टी का संतुलन बना रहता है और मिट्टी अधिक गीली नहीं होती। इससे फसल में फफूंदजनित रोगों की संभावना कम होती है। ड्रिप सिंचाई विधि में पानी के साथ कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है, जिससे कीटों से होने वाले नुकसान में भी कमी आती है।
ड्रिप सिंचाई विधि के द्वारा कैसे करें प्याज की खेती? | How to Cultivate Onions Using Drip Irrigation Method?
- उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु: प्याज की खेती के लिए 13 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है। इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन अच्छी उपज के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट मिट्टी या चिकनी मिट्टी का चयन करें। मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
- बुवाई का समय एवं बीज की मात्रा: रबी मौसम में इसकी खेती के लिए अक्टूबर-नवंबर महीने में बुवाई करें। खरीफ मौसम में इसकी बुवाई मई-जून महीने में की जाती है। वहीं गर्मी के मौसम में फसल प्राप्त करे के लिए इसकी बुवाई जनवरी-फरवरी महीने में करें। प्रति एकड़ खेत में 1.5 से 2 किलोग्राम बीज की आवश्यक होती है।
- खेत की तैयारी: सबसे पहले 1 बार गहरी जुताई करें। इसके बाद 2-3 बार हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाएं। आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 10 टन गोबर की खाद का प्रयोग करें। इसके साथ ही बेसल डोज केतौर पर प्रति एकड़ खेत में 47.5 किलोग्राम यूरिया, 35 किलोग्राम डीएपी और 40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का प्रयोग करें।
- सिंचाई प्रणाली की स्थापना: ड्रिप सिंचाई पद्धति के तहत पाइपलाइन और इमिटर (टपकने वाले नोजल) का उपयोग किया जाता है। पाइपलाइन को खेत के आकार के अनुसार व्यवस्थित करें, जिससे प्रत्येक प्याज के पौधे को पानी मिल सके। इमिटर को पौधों की जड़ों के पास लगाएं। यह पानी को सीधा जड़ों तक पहुंचाने में मदद करेगा।
- उर्वरक प्रबंधन: बुवाई के 20 से 25 दिनों बाद 47.5 किलोग्राम यूरिया को पानी में मिला कर ड्रिप के द्वारा पौधों की जड़ों तक पहुंचाएं।
- सिंचाई प्रबंधन: ड्रिप सिंचाई के तहत प्याज के पौधों को उनकी वृद्धि के अलग-अलग चरणों में उचित मात्रा में पानी दिया जाता है। बुवाई के समय और प्रारंभिक चरण में पानी की मात्रा कम होती है, लेकिन जब पौधे बड़े होते हैं और कंद (बल्ब) बनते हैं, तब पानी की मात्रा बढ़ाई जाती है। सिंचाई के समय यह ध्यान रखें कि अधिक सिंचाई से प्याज के कंद में फफूंद का खतरा बढ़ सकता है।
- खरपतवार नियंत्रण: खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आवश्यकता के अनुसार हाथों से निराई-गुड़ाई करें। खेत में मल्चिंग करने से भी खरपतवारों की समस्या में कमी आती है। इन प्रयासों के बाद भी यदि खेत में खरपतवार पनप रहे हैं तो कृषि विशेषज्ञों की परामर्श के अनुसार उचित खरपतवार नाशक दवाओं का उपयोग करें।
- रोग और कीट नियंत्रण: प्याज की फसल में आर्द्र गलन रोग, झुलसा रोग, बैंगनी धब्बा रोग, उकठा रोग, थ्रिप्स, माहु, सफेद मक्खी, लाल मकड़ी, जैसे रोगों एवं कीटों का प्रकोप अधिक होता है। इन रोगों एवं कीटों से फसल को बचाने के लिए खेत में लगातार निरीक्षण करें। इससे शुरूआती अवस्था में ही रोगों एवं कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है।
- फसल की कटाई: प्याज की विभिन्न किस्मों और मौसम के अनुसार फसल को तैयार होने में लगने वाले समय में भिन्नता आ सकती है। इसकी कुछ किस्मों को तैयार होने में करीब 100-120 दिनों का समय लगता है। वहीं कुछ जल्दी तैयार वाली किस्मों की खुदाई 70-80 दिनों में की जा सकती है। रबी मौसम में जब प्याज की पत्तियां भूमि की सतह के पास से करीब 50% तक गिरने लगे, तब फसल की खुदाई कर लेनी चाहिए। वहीं खरीफ मौसम में जब पत्तियां पीली से लाल पड़ने लगे, तब फसल की खुदाई करें।
क्या आपने कभी प्याज की खेती में ड्रिप सिंचाई पद्दति का इस्तेमाल किया है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: ड्रिप सिंचाई के 1 एकड़ में कितना खर्च आता है?
A: ड्रिप सिंचाई की लागत फसल का प्रकार, मिट्टी का प्रकार, पानी की गुणवत्ता और उपयोग की जाने वाली ड्रिप सिंचाई प्रणाली का प्रकार जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है। हालांकि, औसतन 1 एकड़ भूमि के लिए ड्रिप सिंचाई की लागत 50,000 से 1,00,000 या इससे अधिक हो सकती है। इसमें ड्रिप टेप, फिल्टर, वाल्व, दबाव नियामक और ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लिए आवश्यक अन्य सामान की लागत शामिल है।
Q: ड्रिप सिंचाई और छिड़काव सिंचाई में क्या अंतर है?
A: ड्रिप सिंचाई और छिड़काव सिंचाई (स्प्रिंकलर सिंचाई) फसलों की सिंचाई के दो प्रचलित तरीके हैं। ड्रिप सिंचाई में पाइप और नोजल जैसे उपकरणों के द्वारा पानी को बूंद-बूंद करके पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। वहीं स्प्रिंकलर सिंचाई में पाइप और स्प्रिंकलर जैसे उपकरणों के द्वारा पानी का छिड़काव बड़े क्षेत्र में किया जाता है।
Q: ड्रिप सिंचाई कैसे उपयोगी है?
A: ड्रिप सिंचाई एक आधुनिक सिंचाई प्रणाली है, जो कई मामलों में उपयोगी है। इससे सिंचाई के समय पानी की बचत होती है। सिंचाई के साथ हम पानी में घुलनशील उर्वरकों, खरपतवार नाशक दवाओं, फफूंदनाशक एवं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं। इससे श्रमिकों पर होने वाली लागत एवं समय की बचत होती है। यह खरपतवारों की वृद्धि को रोकने में सहायक है। इस विधि से सिंचाई करने पर फसल की उपज एवं गुणवत्ता बढ़ती है।
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