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3 Oct
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धान में रस चूसक कीटों का प्रबंधन (Management of sucking pests in rice)


धान की फसल में रस चूसक कीटों का प्रकोप एक गंभीर समस्या है, जो फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। प्रमुख रस चूसक कीटों में एफिड, थ्रिप्स, धान का फुदका, ग्रीन लीफ हॉपर, तेला, माहू, सफेद मक्खी, मोयला, धोलिया कीट, और जैसिड शामिल हैं। ये कीट पौधों की पत्तियों और तनों से रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देते हैं, जिससे उनकी वृद्धि रुक जाती है और पत्तियों का रंग बदलने लगता है। इसके परिणामस्वरूप फसल की उपज में भारी कमी आ सकती है। इस लेख में, हम धान में पाए जाने वाले प्रमुख रस चूसक कीटों के लक्षणों और उनके प्रभावी प्रबंधन के तरीकों पर चर्चा करेंगे, ताकि किसान बेहतर फसल उत्पादन सुनिश्चित कर सकें।

धान में कौन-कौन से चूसक कीट लगते हैं? (Which sucking insects attack paddy?)

एफिड्स (Aphids): एफिड्स धान की फसल के लिए एक प्रमुख समस्या बन सकते हैं। ये कीट मुख्य रूप से पौधों की कोमल पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां मुड़ जाती हैं और उनमें पीला रंग दिखाई देने लगता है। यह पौधों की कमजोरी का संकेत है। एफिड्स पौधों से रस चूसने के बाद हनीड्यू नामक चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं, जो फफूंद जनित रोगों को जन्म देता है। इनका प्रकोप पौधों की वृद्धि को बाधित करता है और पैदावार में भारी कमी ला सकता है।

नियंत्रण:

  • थियामेथोक्सम 25% W.G (देहात एसियर) 200 लीटर पानी में 100 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।
  • एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा माणिक): प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 80 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।
  • थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC (देहात एंटोकिल): 80 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% EC (देहात सी-स्क्वायर): 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

थ्रिप्स (Thrips): थ्रिप्स धान की फसल में सबसे अधिक नुकसान नर्सरी अवस्था में पहुंचता है। जब थ्रिप्स पौधों पर आक्रमण करते हैं, तो पत्तियों पर चांदी जैसी सफेद धारियां बन जाती हैं, जो पत्तियों के किनारे से बीच की ओर मुड़ने लगती है। इसके कारण पौधों का विकास रुक जाता है, जिससे धान की उपज में कमी आ जाती है। उनकी उपस्थिति फसल के प्रारंभिक विकास के लिए अत्यधिक हानिकारक हो सकती है।

नियंत्रण:

  • थियामेथोक्सम 25% W.G (देहात एसियर) 200 लीटर पानी में 100 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।
  • लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 5% ईसी (हाईफिल्ड लैम्ब्राडा, सिजेंटा कराटे) दवा को 100 एम.एल. प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. (बायर कॉन्फीडोर, धानुका मीडिया) दवा को 90-120 मि.ली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।

धान का फुदका (ब्राउन प्लांट हॉपर): ब्राउन प्लांट हॉपर या बी.पी.एच धान की फसल में बहुत आम है और इसका प्रकोप अत्यधिक हानिकारक हो सकता है। यह कीट मुख्य रूप से पौधों के निचले हिस्से या मिट्टी के पास पाया जाता है और तनों और पत्तियों का रस चूसकर पौधों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण पौधों का विकास रुक जाता है और उपज में भारी कमी हो जाती है। जब बी.पी.एच पौधों का रस चूसते हैं, तो पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं। प्रकोप बढ़ने पर “हॉपर बर्न” की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसमें पूरा खेत झुलसा हुआ दिखाई देता है। इसके साथ ही, पौधों के आधार पर कालिख जैसी काली फफूंद बन जाती है, जो कि इस कीट की उपस्थिति की पुष्टि करती है।

नियंत्रण:

  • फिप्रोनिल 5% एससी (स्लैमाइट एस.सी., फैक्स एस.सी.) दवा को 400 से 800 मि.ली. प्रति एकड़ धान के खेत में छिड़काव करें।
  • इंडोक्साकार्ब 10% + थियामेथोक्सम 10% W/W (घरदा फिरंगी) दवा को 200 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • फ़ेंथोएट 45% + साइपरमेथ्रिन 6%EC (कोरोमंडल फेंडल प्लस) दवा को 400 एम.एल. प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. (बायर कॉन्फीडोर, धानुका मीडिया) दवा को 90-120 मि.ली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।

ग्रीन लीफ हॉपर (Green Leaf Hopper - GLH): ग्रीन लीफ हॉपर धान की फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनके संक्रमण से पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और उनमें सूखापन आने लगता है, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है। जीएलएच पौधों के रस को चूसकर उनकी कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करते हैं, जिससे फसल की वृद्धि बाधित होती है और पौधे कमजोर हो जाते हैं।

नियंत्रण:

  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. (बायर कॉन्फीडोर, धानुका मीडिया) दवा को 90-120 मि.ली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • थियामेथोक्सम 25% W.G (देहात एसियर) 200 लीटर पानी में 100 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।

धान में कीट नियंत्रण के अन्य तरीके (Other ways of controlling pests in paddy)

  • खेत की नियमित निगरानी करें। जब भी किसी कीट के लक्षण दिखाई दें, तुरंत उचित उपाय अपनाएं। कीटों के शुरुआती चरण में पहचान करके उनका प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है, जिससे बड़े प्रकोप से बचा जा सकता है।
  • खेत में जलभराव से धान की फसल पर कीटों का दबाव बढ़ सकता है। उचित जल निकासी की व्यवस्था करें, ताकि पौधे स्वस्थ रहें और कीटों का प्रकोप कम हो।
  • हानिकारक रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से बचें और जैविक कीटनाशक तथा अन्य जैविक विधियों का अधिक से अधिक उपयोग करें। जैविक विधियाँ न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित होती हैं, बल्कि मित्र कीटों को भी संरक्षित करती हैं।
  • प्रति एकड़ 4-6 स्टिकी ट्रैप लगाएं। यह चिपचिपे जाल कीटों को आकर्षित करते हैं और उनकी संख्या को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। स्टिकी ट्रैप की मदद से कीटों की उपस्थिति का भी पता चल सकता है।
  • एक ही प्रकार की फसल को लगातार उगाने से कीटों का प्रकोप बढ़ सकता है। विभिन्न फसलों का चक्रीकरण करने से कीटों का जीवन चक्र टूटता है और उनकी संख्या में कमी आती है। धान के बाद दाल या तिलहन की फसल उगाने से कीटों का दबाव कम होता है।
  • पौधों के बीच सही अंतराल रखें, ताकि हवा का प्रवाह अच्छा बना रहे और कीटों के फैलने की संभावना कम हो।
  • कटाई के बाद खेत में बचे फसल अवशेषों को समय पर नष्ट करें, क्योंकि इनमें कीट छिप सकते हैं और अगली फसल में भी प्रकोप बढ़ा सकते हैं।

क्या आप भी धान की फसल में रस चूसक कीटों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: धान के प्रमुख कीट कौन से हैं?

A: धान की फसल में कई प्रमुख कीट होते हैं, जो उसकी गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं धान का तना छेदक, जो पौधों के तने में छेद कर देता है और उन्हें कमजोर करता है। पत्ता लपेट भी एक गंभीर कीट है, जो पत्तियों को लपेटकर उनकी वृद्धि को बाधित करता है। इसके अलावा, धान का एफिड भी बहुत नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि यह पौधों का रस चूसता है। बॉरोरर और धनिया मक्खी जैसे अन्य कीट भी धान के विकास को प्रभावित करते हैं, जिससे फसल की पैदावार में कमी आ सकती है।

Q: धान में कीट नियंत्रण कैसे करें?

A: धान की फसल में कीट नियंत्रण के लिए कई प्रभावी उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले, खेत की सफाई पर ध्यान दें और अवशेषों और खर-पतवारों को हटा दें। जैविक कीटनाशकों, जैसे नीम का तेल या वर्मी कंपोस्ट का उपयोग भी फायदेमंद हो सकता है। फसल रोटेशन करने से कीटों की संख्या कम हो सकती है। इसके अलावा, नियमित रूप से पौधों की जांच करना और प्रभावित हिस्सों को नष्ट करना भी आवश्यक है। स्टिकी ट्रैप लगाकर कीटों को आकर्षित करना एक और प्रभावी तरीका है।

Q: धान में जिंक कब डालें?

A: धान की फसल में जिंक की कमी अक्सर पौधों की पत्तियों के पीला पड़ने से पता चलती है। जब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो जिंक का उपयोग करना आवश्यक है। इसे बुवाई के समय या पहले सिंचाई के समय 12-15 किलो प्रति एकड़ की दर से डालने की सलाह दी जाती है। जिंक का सही समय पर उपयोग करने से पौधों की वृद्धि में सुधार होता है और उपज में भी वृद्धि होती है।

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