परवल में लगने वाले रोग (Diseases in Parwal)

भारत में परवल की खेती बड़े पैमाने पर होती है, क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण सब्जी है जो अपने पोषण और औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है। परवल में विटामिन, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो इसे पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक बनाते हैं। हालांकि, परवल की फसल पर कई रोगों का प्रकोप हो सकता है, जिससे पैदावार और गुणवत्ता दोनों में कमी आती है। इन रोगों की समय पर पहचान और सही प्रबंधन करना बेहद जरूरी है, ताकि किसान बेहतर उत्पादन और मुनाफा कमा सकें। इस लेख में हम परवल में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनके प्रभावी नियंत्रण उपायों पर चर्चा करेंगे, जो आपकी फसल को सुरक्षित और लाभदायक बनाएंगे।
कैसे करें परवल में रोग प्रबंधन? (How to manage diseases in Parwal?)
फल सड़न रोग (Fruit Rot Disease):
- परवल के फलों पर पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।
- कुछ समय बाद ये धब्बे बढ़ने लगते हैं और फल सड़ने लगते हैं।
- सड़े हुए फलों से बदबू आने लगती है।
- जमीन की सतह से सटे फलों में सड़न रोग होने की संभावना अधिक होती है।
नियंत्रण (Control):
- अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का उपयोग करें ताकि जड़ों के आसपास पानी जमा न हो।
- सिंचाई करने से पहले खेत की मिट्टी की नमी की जांच करें और हल्की सिंचाई करें।
- संक्रमित पौधों को जड़ सहित उखाड़कर तुरंत हटा दें और अन्य पौधों से दूर रखें।
- परवल में जड़ गलन रोग पर नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साबू, साफ़) दवा को 300 से 600 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- मेटालैक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% WP (एक्सोटिक गोल्ड, मेटलमैन, टाटा मास्टर) दवा को 800 से 1250 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45) को प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें। यह दवा कई प्रकार के फफूंद रोगों के खिलाफ प्रभावी है।
मोजेक रोग (Mosaic Virus):
- पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है और वे नीचे की तरफ मुड़ने लगती हैं।
- पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो समय के साथ बढ़ते जाते हैं।
- यह धब्बे सामान्यतः पत्तियों की शिराओं से शुरू होते हैं।
- रोग बढ़ने पर पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है।
- फूलों का बनना प्रभावित होता है।
- फलों का रंग हल्का सफेद नजर आने लगता है।
नियंत्रण (Control):
- इस रोग के फैलाव को रोकने के लिए प्रभावित पौधों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें।
- मोजेक वायरस प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
- रोग की शुरुआती अवस्था में प्रति लीटर पानी में 2-3 मिलीलीटर नीम का तेल मिलाकर छिड़काव करें।
- डाइमेथोएट 30% ई.सी. (डीमैट, एफ.एम.सी रोगोर, तफ्गोर) दवा को प्रति एकड़ 264-792 मिलीलीटर की मात्रा में छिड़काव करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. (बायर कॉन्फिडोर) दवा को प्रति एकड़ 100 मिलीलीटर की मात्रा में छिड़काव करें।
- क्लोरपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (सी स्क्वायर, हमला 550, नागार्जुन कैनन) दवा को प्रति एकड़ 250-300 मिलीलीटर छिड़काव करें।
मृदुरोमिल आसिता (Downy mildew):
- यह रोग मुख्य रूप से कवक के कारण होता है, जो मिट्टी और फसलों के अवशेषों में लंबे समय तक जीवित रह सकता है।
- रोग अंकुरण से पहले बीजों को संक्रमित करता है, जिससे बीज सड़ने लगते हैं और अंकुरण प्रभावित होता है।
- छोटे पौधों की पत्तियों और तनों पर काले धब्बे दिखाई देते हैं।
- तने और जड़ें सड़ने लगती है, जिससे पौधे कमजोर होकर मुरझाने और गिरने लगते हैं।
- प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे उभरते हैं, जो समय के साथ बड़े हो जाते हैं।
- रोग बढ़ने पर पौधों का विकास रुक जाता है।
नियंत्रण (Control):
- खेत में जल निकासी का प्रबंध करें ताकि पानी जमा न हो और पौधों को नुकसान न पहुंचे।
- बार-बार एक ही खेत में नर्सरी तैयार करने से बचें और फसल चक्र का पालन करें।
- संक्रमित पौधों को तुरंत खेत से निकालकर नष्ट करें ताकि रोग का फैलाव न हो।
- खेत में उपयोग होने वाले उपकरणों को अच्छी तरह साफ करें और संक्रमण से बचाव करें।
- मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45) को प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें। यह दवा कई प्रकार के फफूंद रोगों के खिलाफ प्रभावी है।
- मेटालैक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% WP (एक्सोटिक गोल्ड, मेटलमैन, टाटा मास्टर) दवा को 800 से 1250 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी. (ब्लू कॉपर) का उपयोग फसल की शुरुआती बढ़वार के समय यानी फूल आने से पहले 600 से 800 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
चूर्णिल आसिता रोग (Powdery Mildew):
- चूर्णिल आसिता से प्रभावित पौधों की पत्तियों, तनों और फूलों पर सफेद पाउडर जैसा पदार्थ दिखाई देता है।
- पत्तियां मुरझाने लगती हैं और उनकी वृद्धि रुक जाती है।
- फूलों का गिरना और नकल टूटने की समस्या होती है।
- पौधों की सामान्य वृद्धि में रुकावट आती है और वे कमजोर हो जाते हैं।
- रोग बढ़ने पर पौधे जल्दी सूख कर मुरझा जाते हैं।
नियंत्रण (Control):
- पौधों के बीच पर्याप्त दूरी बनाए रखें ताकि हवा का प्रवाह अच्छा रहे और पत्तियों के आसपास नमी जमा न हो, जिससे रोगों का खतरा कम हो।
- पत्तियों पर पानी न डालें, बल्कि पानी सीधे जड़ों में डालें ताकि पत्तियां सूखी रहें और फफूंदी जैसी बीमारियां न फैलाएं।
- ओवरहेड पानी देने से बचें, क्योंकि इससे पत्तियां और तने गीले हो सकते हैं, जिससे पाउडर फफूंदी जैसी समस्या बढ़ सकती हैं।
- सल्फर 85% DP को प्रति एकड़ 6-8 किलोग्राम की मात्रा में उपयोग करें। सल्फर पत्तियों और तनों पर जंग के धब्बों को नियंत्रित करता है और फसल की सुरक्षा में सहायक होता है।
- मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45): प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें। यह दवा फफूंद रोगों के खिलाफ प्रभावी है।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साफ, सिक्सर, साबू) दवा को 15 लीटर पानी में 30 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।
- एज़ोक्सी स्ट्रोबिन 8.3% + मैंकोजेब 66.7% WG (यूपीएल-अवांसर ग्लो, स्वाल डेल्मा) 600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
अगर आप परवल की खेती करते समय किसी रोग या परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो हमें कमेंट में जरूर बताएं। खेती से जुड़ी रोचक और जरूरी जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। साथ ही इस पोस्ट को लाइक और अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: परवल कितने दिन में फल देना शुरू करता है?
A:
परवल की खेती में जड़ वाले तने की रोपाई के करीब 60-70 दिनों बाद फल लगने शुरू हो जाते हैं। यह समय मौसम, बीज की गुणवत्ता, और किस्म पर निर्भर करता है। यदि फसल की देखभाल सही तरीके से की जाए, तो फलने का समय भी बेहतर हो सकता है।
Q: परवल भारत में किन क्षेत्रों में उगाया जाता है?
A:
परवल की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, और असम में बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, तामिलनाडु और मद्रास में भी यह लोकप्रिय है।
Q: परवल की फसल में कौन-कौन सी खाद डालें?
A:
परवल की बेहतर फसल के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग करें। इसके साथ ही, गोबर की खाद पौधों की वृद्धि के लिए बेहतरीन है। बेहतर परिणाम के लिए मिट्टी की जांच के आधार पर सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी प्रयोग करें।
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