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प्लम/आलूबुखारा
बागवानी फसलें
28 Aug
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आलूबुखारा की खेती | Plum Cultivation

आलूबुखारा को अलूचा और प्लम के नाम से भी जाना जाता है। गाढ़े बैंगनी रंग के ये फल बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं। इसकी कुछ किस्मों के फल लाल, काले, पीले या हरे रंग के भी हो सकते हैं। आलूबुखारा की खेती से किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं। भारत में इसकी खेती हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रमुखता से की जाती है। खट्टे-मीठे जायके वाले ये फल किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकते हैं। आइए इसकी खेती से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करें।

आलूबुखारा (प्लम) की खेती कैसे करें? | How to cultivate Plum?

  • आलूबुखारा की खेती के लिए उपयुक्त समय: नए पौधों की रोपाई के लिए अक्टूबर से नवम्बर के महीने सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस समय मिट्टी की नमी और तापमान अनुकूल होते हैं, जिससे पौधों की अच्छी वृद्धि होती है। पौधों की रोपाई के बाद, शुरुआती ठंडे मौसम में ये तेजी से विकसित होते हैं और गर्मियों में फल देते हैं।
  • उपयुक्त जलवायु: आलूबुखारा की खेती के लिए ठंडी जलवायु अधिक उपयुक्त होती है। इसे मध्यम ठंडी और नमी वाली जलवायु में उगाया जा सकता है। 15 से 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान आलूबुखारा के पौधों के विकास के लिए सबसे उपयुक्त होता है। हालांकि, अत्यधिक गर्मी या पाला पौधों के लिए हानिकारक हो सकते हैं, इसलिए इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि फसल को इस प्रकार की स्थितियों से बचाया जाए।
  • उपयुक्त मिट्टी: इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इस प्रकार की मिट्टी में जल धारण क्षमता अधिक होती है, जो पौधों को उचित नमी प्रदान करती है। मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। साथ ही, मिट्टी में अच्छी जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे पानी का ठहराव न हो और जड़ों को सड़ने से बचाया जा सके।
  • बेहतरीन किस्में: इसकी बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए रेड ब्यूट, ब्लैक एंबर, फ्रायर, अर्ली क्वीन, ब्लैक स्प्लेंडर, सेंटारोजा, मिराबॉल, प्रून, सतलुज पर्पल एवं फॉर्चून जैसी किस्मों की खेती कर सकते हैं।
  • खेत तैयार करने की विधि: खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी की गहरी जुताई की जाती है। इसके बाद 2-3 बार हल्की हटाई करके मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बना लें। पौधों की रोपाई के लिए खेत में गड्ढे तैयार करें। सभी गड्ढों की गहराई 24 इंच, लम्बाई 24 इंच और चौड़ाई भी 24 इंच होनी चाहिए। पौधों की रोपाई के बाद मिट्टी में गोबर की खाद मिला कर भरें। प्रत्येक पौधे को 30 किलोग्राम गोबर की खाद, 1 किलोग्राम यूरिया, 2 किलोग्राम डीएपी और 1.6 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश की आवश्यकता होती है।
  • पौधों की मात्रा एवं रोपाई की विधि: आलूबुखारा की खेती पौधों की कटिंग लगा कर की जाती है। प्रति एकड़ खेत में 100 से 120 कटिंग लगाए जा सकते हैं। खेत में पहले से तैयार गड्ढों में पौधों की रोपाई करें। सभी पौधों के बीच  4 से 5 मीटर की दूरी रखें। पौधों की रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।
  • सिंचाई प्रबंधन: पौधों के बेहतर विकास के लिए सिंचाई की मात्रा एवं इसकी आवृत्ति पर ध्यान देना आवश्यक है। सिंचाई के बीच का अंतराल मिट्टी में मौजूद नमी, वातावरण, जलवायु, तापमान, पौधों की अवस्था, जैसी बातों पर निर्भर करती है। पौधों की रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें। पौधों के विकास की शुरुआती अवस्था में नियमित रूप से सिंचाई करें। गर्मियों के मौसम में फसल को हर 10-15 दिन में सिंचाई की आवश्यकता होती है, वहीं ठंड के मौसम में सिंचाई का अंतराल बढ़ाया जा सकता है।
  • खरपतवार नियंत्रण: खेत को खरपतवारों से मुक्त रखना बहुत जरूरी है। खेत में पनपने वाले खरपतवार मिट्टी से पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व एवं नमी को ग्रहण कर लेते हैं। जिससे पौधों का विकास, फलों की गुणवत्ता एवं उपज प्रभावित होती है। खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करें। समस्या बढ़ने पर उचित खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।
  • कटाई-छंटाई: पौधों के आकार को बनाए रखने के लिए नियमित छंटाई की आवश्यकता होती है। इससे रोग एवं कीटों के होने की संभावना भी कम होती है और फलों का उत्पादन भी बढ़ता है। पौधों की कटाई-छंटाई के समय सूखी शाखाओं और रोग ग्रस्त हिस्सों को पहले काट कर अलग करें।
  • रोग एवं कीट नियंत्रण: आलूबुखारा की फसल पर विभिन्न प्रकार के रोग और कीट आक्रमण कर सकते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों पर प्रभाव पड़ सकता है। फल सड़न रोग, पत्ती झुलसा रोग, जड़ सड़न रोग, जैसे रोग पौधों को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। इन रोगों एवं कीटों के प्रकोप का लक्षण नजर आने पर उचित कीटनाशक या फफूंदनाशक दवाओं का प्रयोग करें। आवश्यकता होने पर कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करें। दवाओं के इस्तेमाल के समय उसकी मात्रा का विशेष ध्यान रखें।
  • फलों की तुड़ाई: आमतौर पर आलूबुखारा के फल मई से जून के बीच पकने लगते हैं। फलों को पेड़ से तोड़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वे पूरी तरह से पके न हों, क्योंकि फल तुड़ाई के बाद भी पकते रहते हैं। फलों को तोड़ते समय सतर्कता बरतनी चाहिए ताकि वे क्षतिग्रस्त न हों और बाजार में अच्छी कीमत प्राप्त हो सके।

क्या आपके क्षेत्र में प्लम की खेती की जाती है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: आलूबुखारा का पेड़ कितने दिन में फल देता है?

A: पौधों में फलों लगने का समय उसकी किस्मों, पौधों की आयु, जलवायु जैसी कई बातों पर निर्भर करता है। सामान्यतः 3 से 4 वर्ष के पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं।

Q: भारत में प्लम कहां उगाए जाते हैं?

A: वर्तमान समय में हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है। इसकी कुछ किस्मों की खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जा रही है।

Q: क्या प्लम गर्म जलवायु में उग सकते हैं?

A: प्लम के फल गर्मी के मौसम में पकते हैं। लेकिन पौधों के बेहतर विकास के लिए अत्यधिक गर्मी का मौसम उपयुक्त नहीं माना जाता है।

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