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15 July
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चकोतरा की खेती (Pomelo Farming)


चकोतरा, जिसे गागल भी कहा जाता है, एक नींबू वर्गीय फल है जो नींबू की बड़ी जातियों में से एक है। यह फल अपने खट्टे-मीठे स्वाद और विशेष गुण धर्मों के लिए प्रसिद्ध है। चकोतरा की खेती को झारखंड में विशेष रूप से उचित माना जाता है। इसकी बुवाई, उचित भूमि और उपयुक्त खाद-उर्वरक का प्रयोग कर अच्छे उत्पादन को सुनिश्चित किया जा सकता है।

कैसे करें चकोतरा की उन्नत खेती? (How to improve cultivation of Pomelo?)

मिट्टी: चकोतरे की खेती के लिए धातु युक्त मृदा (लोमी सीमेंट मृदा) उपयुक्त होती है। इसके साथ ही हल्की और मध्यम उपज वाली बलुई दोमट मिट्टी भी उपयुक्त है। मिट्टी का pH मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

जलवायु: चकोतरा की खेती के लिए उपोष्ण कटिबंधीय अर्द्ध शुष्क जलवायु अत्यंत उपयुक्त होती है।  इस जलवायु में फलों का उत्तम विकास होता है और उसमें अच्छी मिठास आती है। तापमान 13 से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच उपयुक्त होता है।

बुवाई का समय: चकोतरे के नए पौधे लगाने के लिए उचित समय जुलाई-अगस्त है। इस समय पौधों को उचित रूप से स्थापित किया जा सकता है और उसका विकास भी अच्छी तरह से हो सकता है।

उन्नत किस्में: चकोतरे की कई किस्में हैं जैसे रूबी रेड, मार्श सीडलेस, थॉम्पसन, गंगानगर रेड, डंकन, फोस्टर, थॉम्पसन, मार्श रूबी रेड और स्टार रूबी। ये किस्में स्वाद, रंग और बीज सामग्री में अच्छी मानी जाती हैं।

खेत की तैयारी:

  • गड्ढे खोदें: 6X6 मीटर के वर्गाकार गड्ढे खोदें या 60X60X60 सेंटीमीटर के गड्ढे बनाएं। एक एकड़ के लिए लगभग 120 पौधों की आवश्यकता होती है।
  • भूमि की तैयारी: खेत को समतल और भुरभुरा बनाएं। गड्ढों में पौधे लगाने से पहले खाद और वर्मी कम्पोस्ट डालें।
  • बुवाई की विधियाँ: बीज या कलम से पौधे लगाए जा सकते हैं। नर्सरी में बीज से पौधे तैयार कर खेत में लगाएं। बेंडिंग और ग्राफ्टिंग की विधियां भी उपयोगी है चकोतरे के पौधे को विकसित करने के लिए।

अंतर फसली: चकोतरे की उत्पादन दो-तीन वर्ष में शुरू हो सकती है और इसके साथ अंतर फसली का प्रबंधन किया जा सकता है।

सिंचाई प्रबंधन:

  • पौधरोपण के तुरंत बाद सिंचाई: पौधों को बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई की जानी चाहिए ताकि वे अच्छी तरह से जड़ें बना सकें और प्रवाही प्राप्त कर सकें।
  • फूल-फल के समय में सिंचाई: फलदार पौधों के समय में, खास कर फूलने और फलने के दौरान, भूमि में पर्याप्त मात्रा में नमी की आवश्यकता होती है। इससे पौधे में उत्तेजना बनी रहती है और उनकी प्रवाही बनी रहती है।
  • बुवाई के बाद हल्की सिंचाई: बुवाई के बाद, बीजों को नमी प्रदान करने के लिए हल्की सिंचाई की जानी चाहिए। यह नए पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
  • सिंचाई की अंतराल: यदि आपने चकोतरे की खेती का उद्देश्य चारे के रूप में रखा है, तो 6 से 7 दिन के अंतराल में सिंचाई की जानी चाहिए।
  • यदि आपने इसे व्यापारिक उत्पादन के लिए बोया है, तो 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई की जानी चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन: खरपतवार की रोकथाम के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई करनी चाहिए।

खाद और उर्वरक:

  • पौधों के उत्तम विकास और पैदावार के लिए प्रति पौधे में दी जाने वाली सामग्रियाँ हैं: 20-25 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद, 1-1.5 किलो यूरिया, 1-1.5 किलो फास्फोरस, और 0.5-1 किलो पोटाश।
  • फलदार पौधों को प्रति पौधे में जरूरत होने पर 200 ग्राम ज़िंक सल्फेट और 100 ग्राम बोरान भी दिया जा सकता है।
  • 8 से 10 किलो प्रति पौधा 500 ग्राम SSP गड्ढे बनाने के समय देना चाहिए।
  • एक साल के पौधों के लिए 250 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम DAP और 50 ग्राम MOP खाद का उपयोग करें।

तुड़ाई: फलों की तुड़ाई तब करें जब वे पूर्ण आकार और आकर्षक रंग में हों। फलों को हल्के गीले कपड़े से पोंछ लें और उन्हें छायादार स्थान पर सूखा दें।

भंडारण: फलों को बाजार में बेचने के लिए उन्हें तैयार करें। साफ और गीले कपड़े से पोंछे गए फलों को सुरक्षित रखें और उन्हें बंद बॉक्स में सुरक्षित रखें।

उत्पादन: एक चकोतरे के पौधे से लगभग 500  से 600 फल प्रति पेड़ प्राप्त किये जा सकते हैं, जो इस फल की व्यापारिक महत्वपूर्णता को दर्शाता है।

चकोतरे के फायदे (Benefits of Pomelo):

  • मलेरिया में लाभकारी: चकोतरे में प्राकृतिक रूप से क्विनीन होता है, जो मलेरिया बुखार में लाभकारी होता है। बुखार से राहत पाने के लिए नियमित रूप से चकोतरे का सेवन किया जा सकता है।
  • हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक: चकोतरे में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करता है और गठिया रोग को दूर करता है।
  • पाचन को सुधारने में मदद: चकोतरे भोजन को अच्छे से पचाने में मदद करता है और पेट संबंधी विकारों से बचाव करता है।
  • कैंसर के खिलाफ लड़ाई में सहायक: चकोतरे में फ्लावोनॉइड होता है, जो शरीर में कैंसर के खिलाफ लड़ने में मदद करता है। यह शरीर को कैंसरजनक कारकों से बचाने में सहायक होता है।
  • वजन नियंत्रित रखने में मदद: चकोतरे में फाइबर होता है जो भूख को कम करता है और वजन नियंत्रित रखने में मदद करता है।
  • पोषक तत्वों का स्रोत: चकोतरे में विटामिन A, विटामिन C और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो रोगप्रतिकारक क्षमता को बढ़ाते हैं।

क्या आप भी चकोतरा की खेती करना चाहते हैं ? अगर हाँ तो हमें कमेंट करके बताएं। ऐसी ही रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)

Q: चकोतरा का दूसरा नाम क्या है?

A: चकोतरा का वैज्ञानिक नाम साइट्रस पैराडिसी है। यह रूटेसी (साइट्रस) परिवार से संबंधित मध्यम आकार का फल है जिसका खट्टा और खट्टा स्वाद पसंद किया जाता है। यह विटामिन सी और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्वों का एक अच्छा स्रोत है।

Q: चकोतरा पेड़ कितने समय में फल देने लगता है?

A: चकोतरा के पेड़ आमतौर पर पांच महीने में बीज से अंकुरित होते हैं और पूरी तरह विकसित होने में 8-10 महीने लग सकते हैं और फिर यह फल देने लगता है।

Q: चकोतरा के क्या फायदे हैं?

A: चकोतरा, जो कि उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है, मीठे और खट्टे स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। यह विटामिन सी, पोटेशियम, मैग्नीशियम, और फाइबर का एक अच्छा स्रोत है। चकोतरा वजन घटाने में मदद कर सकता है, पाचन स्वास्थ्य को सुधार सकता है, दिल की स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है, और लीवर को स्वस्थ रखने में सहायक हो सकता है।

Q: चकोतरा फल कैसे दिखता है?

A: चकोतरा बाहर से संतरे के जैसा दिखता है। जब यह फल कच्चा होता है, तो इसका छिलका हरा होता है, और पूरी तरह पक जाने पर इसका रंग पीला या हल्का ऑरेंज हो जाता है। चकोतरा का सेवन करने से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

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