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22 Apr
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राजमा की खेती: कीट, लक्षण, बचाव एवं उपचार (Rajma cultivation: pests, symptoms, prevention and treatment)


राजमा एक दलहनी फसल है जिसमें पोषक तत्वों (एंटी-ऑक्सिडेंट्स, फाइबर, आयरन, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, सोडियम) की भरपूर मात्रा होती है। इसमें कोलैस्ट्रोल कम करने वाले तत्व भी पाए जातें हैं। भारत में इसकी खेती अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों जैसे जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में करते हैं इसके अलवा महाराष्ट्र, बंगाल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी किया जाता है।

राजमा के कीटों पर नियंत्रण कैसे करें? (How to control the pests of kidney beans?)

राजमा की फसल में लगने वाले कीट एवं उनका नियंत्रण (Pests affecting Rajma crop and their control)

  • माहु : माहु कीट पौधे से रस चूसता है जिसके कारण पतियाँ पीली पड़ जाती हैं और धीरे-धीरे मुरझा जाती हैं। जब इनकी संख्या ज्यादा होती है तो यह हनीड्यू नामक एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है, जो चींटियों को आकर्षित करता है और जिसके कारण पौधों पर राख जैसी फफूंदी के विकास होने लगता है।
  • मिली बग : राजमा में मिली बग कीट के प्रकोप के कारण राजमा के पौधों की पत्तियों में छोटे-छोटे छेद दिखाई देते हैं जिससे नुकसान होता है। इसके बाद कीट पत्तियों को नुकसान पहुँचाता है और फिर धीरे-धीरे पीला पद कर मुरझाने लगता है और अंततः पत्तियाँ गिर जाती हैं। इस कीट के कारण पौधे काफी कमजोर हो जाते हैं और फसल की उपज में भी कमी आती है।
  • पान कथिरी / बिटल बाईन बग : बिटल बाइन बग कीट एक छोटा, भूरा-काला कीट है जिसकी लंबाई लगभग 5-6 मिमी होती है। बिटल बाइन बग कीट राजमा पौधे की फली को खाता है, जिससे फली की सतह पर छोटे छेद दिखाई देते हैं। और यह कीट राजमा के पौधे की फली के अंदर अपने अंडे देता है, और लार्वा फली के अंदर के बीजों को खाते हैं, जिससे कटाई के समय  बीजों की संख्या कम हो जाती है और उपज में काफी कमी आती है।
  • थ्रिप्स : यह छोटे-छोटे, पतले से कीट होते हैं, जिनकी लंबाई लगभग 1-2 मिमी होती है और नग्न आंखों से देखना मुश्किल हो सकता है। थ्रिप्स मोथ लार्वा राजमा पौधे की पत्तियों से रास चूसने का कार्य करते हैं, जिससे पत्ते को नुकसान होता है। पत्तियां विकृत, हल्के रंग की हो जाती हैं। थ्रिप्स के संक्रमण से राजमा पौधे का विकास रुक जाता है। क्योंकि लार्वा पौधे के ऊतकों को खा लेता है,जिसके कारण फसल के बढ़ने और अच्छे से विकसित होने की क्षमता कम हो जाती है। थ्रिप्स के लार्वा राजमा के पौधे पर फूलों को भी खा लेते है, जिससे प्रजनन की क्रिया को नुकसान होता है। इसके परिणामस्वरूप कटी हुई फसल की उपज कम होती है और फसल को गुणवत्ता भी ख़राब हो जाती है।
  • सफेद मक्खी : सफेद मक्खी छोटे से कीट होते हैं जिनकी लंबाई लगभग 1-2 मिमी होती है और इन्हे भी नग्न आंखों से देखना मुश्किल हो सकता है। यह कीट सफ़ेद रंग के होते हैं और उड़ते भी हैं। सफेद मक्खी कीट के लार्वा राजमा के पौधे की पत्तियों के नीचे की तरफ से रास चूसते हैं, जिससे राजमा के पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। जिससे पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्षमता ठीक से नहीं हो पाती है, इसका लार्वा हनीड्यू नामक एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है,  जो राजमा के पौधे की पत्तियों और तनों पर जमा होता है। यह चींटियों जैसे अन्य कीटों को अपनी ओर आकर्षित करता है और राख जैसी फफूंदी के विकास को बढ़ावा देता है। इस कीट के कारण फसल की उपज में काफी कमी होती है और कटी हुई फसल यानि ख़राब गुणवत्ताके कारण किसानों को काफी नुक्सान होता है
  • हरी इल्ली : हरी इल्ली आमतौर पर हरे रंग की होती है और इसकी  लंबाई लगभग 4 सेमी तक हो सकती है। हरी इल्ली के लार्वा राजमा के पौधे की पत्तियों को खाते हैं, जिससे पत्तियों में छेद हो जाते हैं। यह पौधे को प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करने में रुकावट डालते हैं जिसके कारण पौधा भोजन नहीं बना पता है और नष्ट हो जाता है। इसके संक्रमण से उपज में कमी के साथ फसल की गुणवत्ता में भी कमी हो जाती है।

कीटों से नियंत्रण के जैविक तरीके :

  • फसल खत्म होनें के बाद गर्मी में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए और कुछ समय के लिए खेत को सीधे धुप लगने के लिए छोड़ देना चाहिए ताकि मिट्टी में उपस्थित इस कीट का प्यूपा मिट्टी से बाहर न सके और नष्ट हो जाये।
  • खेत की मिटटी का परीक्षण करवाना चाहिए और उर्वरक/खाद का उपयोग मिटटी तथा फसलों की जरूरत के अनुसार ही करना चाहिए।
  • अगर फसलों में कीटों के प्रकोप का पता चलता है, तो उन्हें समय पर नियंत्रित करना आवश्यक है। इसके लिए कीटनाशकों का या फिर प्राकृतिक उपायों का उपयोग किया जा सकता है।
  • कीट चक्र को तोड़ने के लिए अनाज, तिलहन या सब्जियों जैसी गैर-धारक फसलों के साथ फसल चक्र अपनाएं।
  • राजमा की ऐसी किस्मों का चुनाव करें जो रोग एवं कीट के लिए प्रतिरोधी और कम संवेदनशील होती हैं।
  • कीटों के प्रकोप को कम करने के लिए खेत से संक्रमित पौधों के हिस्सों और मलबे को हटा कर नष्ट कर देना चाहिए।

कीटों से नियंत्रण के रासायनिक नियंत्रण:

  • देहात का Asear (थियामेथोक्सम 25% डब्लूजी) जो एक व्यापक स्पेक्ट्रम कीटनाशक है जो फसलों को चूसने वाले और काटने वाले कीटों से बचाता है। यह मुख्य रूप से जसिड, एफिड्स, थ्रिप्स और तना छेदक कीटों पर कारगर दवा है।
  • देहात का Entokill (थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्बडासीहैलोथ्रिन 9.5% जेट सी.) ये संपर्क और प्रणालीगत कीटनाशक है जो चूसने वाले कीटों के लिए अत्यधिक प्रभावी है।
  • देहात का Contropest (इमिडाक्लोप्रिड 70% डब्लूजी) एक प्रणालीगत कीटनाशक है जिसका उपयोग बीज उपचार, मृदा उपचार के साथ-साथ छिड़काव के लिए भी करते हैं। यह चूसक और दीमक कीट पर प्रभावी है।
  • देहात का Illigo (इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी)  यह दानेदार कीटनाशक है जो पानी में घुलनशील है।  यह छेदक कीटों जैसे फल और शूट बोरर, इल्ली जैसे कीटों पर बेहतरीन रिजल्ट देती हैं।

क्या आप भी राजमा में कीटों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: राजमा की बुवाई कब करनी चाहिए?

A: राजमा की खेती अक्टूबर से नवम्बर  में की जाती है।

Q: राजमा की खेती के लिए कौन-सी मिटटी उपयुक्त है?

A: राजमा की खेती के लिए हल्की दोमट और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी बेहतर मानी गयी है।

Q: राजमा की कटाई और गहाई कब शुरू होती है ?

A: लगभग 120 से 130 दिन में राजमा की फसल तैयार हो जाती है।

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