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22 May
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खेतों से हटाएँ जिद्दी खरपतवार (Remove stubborn weeds from fields)


फसलों में खरपतवार प्रबंधन खेती का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है क्योंकि इन खरपतवारों की वृद्धि-विकास से पौधों में पोषक तत्वों, पानी और धूप की कमी होती है।  यह मुख्य फसल से प्रतिस्पर्धा करते हैं। वीड्स यानि की खरपतवार वह अनचाहे पौधे हैं जो किसी भी खेत में बिना बोए उग जाते हैं।

खरपतवारों पर नियंत्रण कैसे करें? (How to control weeds?)

दूब घास : दूब घास (सिनोडोन डैक्टिलॉन) भारत में पाया जाने वाला एक आम खरपतवार है। इसे बरमूडा घास या दूर्वा घास के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बारहमासी घास है जो स्टोलन और प्रकंदों के माध्यम से फैलती है। डूब घास एक कठिन खरपतवार है जो सूखे, गर्मी और भारी चराई को सहन कर सकता है। यह मिट्टी के प्रकारों की एक विस्तृत श्रृंखला में विकसित हो सकता है और आमतौर पर लॉन, बगीचों और कृषि क्षेत्रों में पाया जाता है।

नियंत्रण :

    • हाथ से निराई: इस विधि में दूब घास को हाथ से बाहर निकाला जाता है। यह छोटे क्षेत्रों के लिए प्रभावी है लेकिन समय लेने वाली विधि है जिसमें श्रम ज्यादा लगता है।
    • यांत्रिक नियंत्रण: इस पद्धति में दूब घास को हटाने के लिए कल्टीवेटर, हैरो और वीडर जैसी मशीनों का उपयोग करते है। यह विधि हाथ से निराई की तुलना में तेज़ और अधिक कुशल है, लेकिन इसके लिए विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।
    • सोलराइजेशन : यह खरपतवार नियंत्रण की एक विधि है जो खरपतवार और अन्य अवांछित पौधों को मारने के लिए सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करती है। इस विधि में गर्मी के महीनों के दौरान कई हफ्तों तक मिट्टी को एक स्पष्ट प्लास्टिक शीट से ढंकना शामिल है। प्लास्टिक शीट सूर्य की ऊर्जा को फँसाती है और मिट्टी को गर्म करती है, जिससे खरपतवार के बीज, रोगजनकों और मिट्टी में मौजूद अन्य कीटों की मृत्यु हो जाती है।
    • रासायनिक नियंत्रण: इस विधि में दूब घास को मारने के लिए शाकनाशी का उपयोग करना चाहिए। खरपतवार के उगने से पहले या बाद में खरपतवारनाशी का प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि, इस पद्धति का उपयोग सावधानी के साथ किया जाना चाहिए क्योंकि यह पर्यावरण और गैर-लक्षित पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है। ग्लाइफोसेट, पैराक्वेट और इमाज़ापायर जैसे खरपतवारनाशी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
    • सांस्कृतिक नियंत्रण: इस विधि में दूब घास के विकास को कम करने के लिए सांस्कृतिक प्रथाओं को बदलना शामिल है। इसमें सिंचाई को कम करना, नियमित रूप से घास काटना और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करना शामिल हो सकता है।

मोथा घास : मोथा घास (साइपरस रोटंडस) भारत में पाया जाने वाला एक आम खरपतवार है। इसे नटग्रास या पर्पल नटसेज के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बारहमासी खरपतवार है जो भूमिगत कंदों के माध्यम से फैलता है। मोथा घास एक कठिन खरपतवार है जो सूखे, गर्मी और बाढ़ को सहन कर लेता है। यह मिट्टी के प्रकारों की एक विस्तृत श्रृंखला में विकसित हो सकता है और आमतौर पर लॉन, बगीचों और कृषि क्षेत्रों में पाया जाता है। यह मुख्य रूप से मक्का, अरहर, ज्वार की फसल को नुकसान पहुंचाता है। जिससे फसल की उपज में 50-75 प्रतिशत तक कमी होती है।

नियंत्रण :

  • हाथ से निराई: इस विधि में दूब घास को हाथ से बाहर निकाला जाता है। यह छोटे क्षेत्रों के लिए प्रभावी है लेकिन समय लेने वाली विधि है जिसमें श्रम ज्यादा लगता है।
  • जुताई : कोई भी फसल लगाने से पहले खेतों की ट्रैक्टर या बैल-चालित मशीनों से गहरी जुताई करनी चाहिए।
  • यांत्रिक नियंत्रण: इस पद्धति में दूब घास को हटाने के लिए कल्टीवेटर, हैरो और वीडर जैसी मशीनों का उपयोग करते है। यह विधि हाथ से निराई की तुलना में तेज़ और अधिक कुशल है, लेकिन इसके लिए विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।
  • सोलराइजेशन : यह खरपतवार नियंत्रण की एक विधि है जो खरपतवार और अन्य अवांछित पौधों को मारने के लिए सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करती है। इस विधि में गर्मी के महीनों के दौरान कई हफ्तों तक मिट्टी को एक स्पष्ट प्लास्टिक शीट से ढंकना शामिल है। प्लास्टिक शीट सूर्य की ऊर्जा को फँसाती है और मिट्टी को गर्म करती है, जिससे खरपतवार के बीज, रोगजनकों और मिट्टी में मौजूद अन्य कीटों की मृत्यु हो जाती है।
  • रासायनिक नियंत्रण: इस विधि में मोथा घास को मारने के लिए खरपतवारनाशी का उपयोग करते हैं। खरपतवार के उगने से पहले या बाद में खरपतवारनाशी का प्रयोग किया जा सकता है। इसके नियंत्रण के लिए धानुका सेम्परा (हैलोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 75% डब्ल्यू जी ) खरपतवारनाशी का उपयोग 36 ग्राम/एकड़ कर सकते हैं।

कांस : कृषि योग्य तथा बेकार पड़ी हुई भूमि में पाया जाता है। एक बारहमासी खरपतवार है जोजिनकी जड़ें काफी गहरी होती हैं। इसे जंगली गन्ना या जंगली घास के रूप में भी जाना जाता है। कंस घास एक कठिन खरपतवार है जो ऊंचाई में 3 मीटर तक बढ़ सकता है। यह बारिश के मौसम में ज्यादा बढ़ता है और इसके कारण मिटटी की उर्वरक क्षमता कम होने लगती है। यह घास हवा और पानी द्वारा फैलते हैं।

नियंत्रण :

  • हाथ से निराई: इस विधि में दूब घास को हाथ से बाहर निकाला जाता है। यह छोटे क्षेत्रों के लिए प्रभावी है लेकिन समय लेने वाली विधि है जिसमें श्रम ज्यादा लगता है।
  • जुताई : कोई भी फसल लगाने से पहले खेतों की ट्रैक्टर या बैल-चालित मशीनों से गहरी जुताई करनी चाहिए।
  • फसल चक्र : घास के जीवन चक्र को बाधित करके और मिट्टी में स्थापित करने की क्षमता को कम करके इसके विकास को रोकने में मदद करता है।
  • यांत्रिक नियंत्रण: इस पद्धति में दूब घास को हटाने के लिए कल्टीवेटर, हैरो और वीडर जैसी मशीनों का उपयोग करते है। यह विधि हाथ से निराई की तुलना में तेज़ और अधिक कुशल है, लेकिन इसके लिए विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।
  • सोलराइजेशन : यह खरपतवार नियंत्रण की एक विधि है जो खरपतवार और अन्य अवांछित पौधों को मारने के लिए सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करती है। इस विधि में गर्मी के महीनों के दौरान कई हफ्तों तक मिट्टी को एक स्पष्ट प्लास्टिक शीट से ढंकना शामिल है। प्लास्टिक शीट सूर्य की ऊर्जा को फँसाती है और मिट्टी को गर्म करती है, जिससे खरपतवार के बीज, रोगजनकों और मिट्टी में मौजूद अन्य कीटों की मृत्यु हो जाती है।
  • रासायनिक नियंत्रण : इसके नियंत्रण के लिए MAC7 (ग्लाइफोसेट 41% SL) खरपतवारनाशक का प्रयोग 800-1200 एम.एल प्रति एकड़ छिड़काव करें या फिर Dehaat Chopoff (पैराकैट डाइक्लोराइड 24% एसएल) दवा का इस्तेमाल गैर फसली क्षेत्रों में 800-1000 मिली प्रति एकड़ करें।

खरपतवारनाशी का प्रयोग करते समय ध्यान रखें (Keep in mind while using herbicide):-

  • सही मात्रा: सही मात्रा में खरपतवारनाशक का उपयोग करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। इससे फसल को हानि नहीं पहुँचती है और खरपतवारों का पूर्ण रूप से नियंत्रण हो सकता है।
  • सही समय उपयोग: खरपतवारनाशक का सही समय पर उपयोग करना आवश्यक है। इससे उसकी प्रभावशीलता बढ़ती है। शाम के समय दवा का छिड़काव ज्यादा प्रभावी माना गया है।
  • समय सीमा: एक्सपायरी हुई खरपतवारनाशी का उपयोग न करें। खरीदते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखें।
  • नॉपसैक पंप का उपयोग: खरपतवारनाशक को छिड़काव करते समय फ्लैट फेन नोजल या अच्छे छिड़काव वाले पंप का उपयोग करें ताकि दवा आसानी से पूरे पौधे तक पहुँचे और उसका प्रभाव पूरी तरह से हो।
  • नमी का ध्यान: खरपतवारनाशक के छिड़काव से पहले, या छिड़काव के बाद यदि बारिश होती है, तो जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
  • अनुपातिक शर्तें: खरपतवारनाशक को छिड़काव करने के लिए अनुपातिक शर्तें जाँचें, जैसे कि तेज हवा या बारिश की संभावना।
  • छिड़काव का ध्यान: छिड़काव करते समय, पीछे-पीछे चलें ताकि किसी भी भूमिगत फसल को नुकसान न हो।
  • फसल के आसपास का ध्यान: खरपतवारनाशक को छिड़काव करते समय, ध्यान रखें कि फसल के आसपास कोई और फसल न हो, ताकि उस फसल को हानि न पहुंचे।
  • हुड का इस्तेमाल: हुड का उपयोग करना फसल को खतरे से बचाने में मदद कर सकता है, खासकर जब छिड़काव किसी अन्य फसल के आसपास किया जा रहा हो।
  • समय-समय पर उपयोग: खरपतवार नियंत्रण के लिए परिस्थिती के अनुसार, सिफारिश के अनुसार, खरपतवारनाशक का उपयोग करें और बार-बार उपयोग से बचें।
  • खाद का उपयोग: छिड़काव की जाने वाली जमीन में वर्मीकंपोस्ट और गोबरखाद का उपयोग करें।
  • चिपको का उपयोग: दवा के साथ चिपको का उपयोग करें जिससे दवा आसानी से पूरे पौधे तक पहुँचे और जल्दी असर दिखाए।

आप फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए क्या जुगाड़ करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'खरपतवार जुगाड़' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: दूब घास को नष्ट कैसे करें?

A: धुब घास, भारत में एक आम खरपतवार है जिसे नियंत्रित करना मुश्किल होता है। यह कुछ तरीके हैं जिनका उपयोग करके धुब घास को नष्ट कर सकते है: सबसे पहले हाथों से निदाई गुड़ाई करें। इसके बाद ग्लाइफोसेट, पैराक्वेट और इमाज़ापायर जैसे शाकनाशियों का उपयोग किया जा सकता है। नियमित रूप से घास काटने, उचित सिंचाई और निषेचन और फसल चक्र धुब घास के विकास और प्रसार को रोकने में मदद कर सकती हैं।

Q: मोथा घास को जड़ से कैसे खत्म करें?

A: मोथा घास को जड़ से खत्म करने के लिए हाथसे निराई-गुड़ाई करें, फसल चक्र अपनाएं, सौरीकरण करें और  आखिर में खरपतवारनाशी जैसे - ग्लाइफोसेट, पैराक्वेट और इमाज़ापायर का उपयोग करें।

Q: खरपतवार क्या है?

A: खरपतवार यानी वीड्स वे अवांछित पौधे हैं जो किसी खेती क्षेत्र में बिना बोए उगते हैं और फसलों को प्रतिकूल प्रभावित कर सकते हैं। ये पौधे फसलों के साथ पोषण ग्रहण के लिए जल, मिट्टी और सूर्य के संपर्क का साझा स्रोत बनते हैं, जिससे वे फसलों के विकास को प्रतिकूल प्रभावित कर सकते हैं। इनकी अधिकता से फसलों की उपज में कमी होती है जिससे किसानों को हानि होती है।

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