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चंदन की खेती: प्रमुख रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Sandalwood Cultivation: Major Diseases, Symptoms, Prevention and Control
चंदन की खेती मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी राज्यों में की जाती है। कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश कुछ प्रमुख चंदन उत्पादक राज्यों में शामिल हैं। कर्नाटक भारत में चंदन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। देश में चंदन के कुल उत्पादन का 80% से अधिक उत्पादन कर्नाटक में किया जाता है। इसके अलावा महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जाती है। अन्य पौधों की तरह चंदन के पौधे भी कई घातक रोगों से प्रभावित होते हैं। चंदन के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों की विस्तृत जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
चंदन के वृक्षों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major diseases affecting the Sandalwood Plant
चंदन स्पाइक रोग से होने वाले नुकसान: यह एक संक्रामक रोग है जो फाइटोप्लाज्मा के कारण होता है। फाइटोप्लाज्मा पौधों के ऊतकों के जीवाणु परजीवी हैं, जो कीट वाहकों द्वारा फैलते हैं। इस रोग को सबसे पहले वर्ष 1899 में कर्नाटक के कोडागू में पाया गया था।इस रोग के कारण वर्ष 1903 और 1916 के बीच कोडागु और मैसूर क्षेत्र में दस लाख से अधिक चंदन के पेड़ हटा दिये गये। इस रोग के कारण हर वर्ष लगभग 1 % से 5% चंदन के पेड़ नष्ट हो जाते हैं।
चंदन स्पाइक रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस संक्रमण का अभी तक कोई इलाज नहीं है।
- वर्तमान समय में, रोग को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित पेड़ को काटकर हटाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
जड़ सड़न रोग से होने वाले नुकसान: यह एक कवक जनित रोग है जो चंदन के पेड़ों की जड़ों को प्रभावित करता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली हो कर मुरझाने लगती हैं। पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है। गीली मिट्टी में या खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण यह रोग तेजी से पनपते एवं फैलते हैं।
जड़ सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम थियोफानेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी (बायोस्टैड रोको) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम मेटालैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% डब्ल्यूपी (सिंजेंटा रिडोमिल गोल्ड) की ड्रेंचिंग करें।
पत्ती धब्बा रोग से होने वाले नुकसान: यह एक कवक जनित रोग है जो चंदन के पेड़ों की पत्तियों को प्रभावित करता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे उभरने लगते हैं। ये धब्बे गोलाकार या अनियमित आकार के होते हैं। रोग बढ़ने के साथ पत्तियां धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं और मुरझा कर झड़ने लगती हैं। गर्म और आर्द्र जलवायु में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।
पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम प्रोपीनेब 70% डब्ल्यूपी. (देहात जिनैक्टो) का छिड़काव करें।
- प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का छिड़काव करें।
- प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम साइमोक्सानिल 8% + मैन्कोज़ेब 64% (ड्यूपॉन्ट कर्ज़ेट एम8) का छिड़काव करें।
- प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मेटालैक्सिल 8% मैन्कोज़ेब 64% डब्ल्यूपी (इंडोफिल मैटको) का छिड़काव करें।
चूर्णिल आसिता रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को पाउडरी मिल्ड्यू रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग के कारण चंदन के पेड़ों की पत्तियां, तनें एवं फूल प्रभावित होते हैं। इस रोग के होने पर प्रभावित पौधों की पत्तियों, शाखाओं एवं फूलों पर सफेद रंग के पाउडर के सामान तत्व नजर आने लगते हैं। रोग बढ़ने पर पत्तियां पीली हो कर समय से पहले गिरने लगती हैं। गर्म और शुष्क परिस्थितियों में यह रोग बहुत तेजी से पनपता है।
चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम प्रोपीनेब 70% डब्ल्यूपी. (देहात जिनैक्टो) का छिड़काव करें।
- प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का छिड़काव करें।
- प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम साइमोक्सानिल 8% + मैन्कोज़ेब 64% (ड्यूपॉन्ट कर्ज़ेट एम8) का छिड़काव करें।
- प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मेटालैक्सिल 8% मैन्कोज़ेब 64% डब्ल्यूपी (इंडोफिल मैटको) का छिड़काव करें।
विल्ट रोग से होने वाले नुकसान: यह रोग स्यूडोमोनास सोलनेसेरम नामक जीवाणु के द्वारा होने वाला रोग है। गर्म और नम परिस्थितियों में यह रोग पनपता है और तेजी से फैलता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली हो कर मुरझाने लगती हैं। पौधों के विकास में बाधा आती है। इस रोग पर नियंत्रण नहीं करने पर पौधे नष्ट हो सकते हैं।
विल्ट रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम थियोफानेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी (बायोस्टैड रोको) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम मेटालैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% डब्ल्यूपी (सिंजेंटा रिडोमिल गोल्ड) की ड्रेंचिंग करें।
चंदन की खेती में आपको किस तरह की समस्याएं आती हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए आप ‘किसान डॉक्टर’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें। जिससे अधिक किसान मित्र इस जानकारी का लाभ उठा सकें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: चंदन वृक्षों में सबसे विनाशकारी और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बीमारी कौन सी है?
A: भारत में चंदन स्पाइक रोग एवं जड़ गलन रोग को सबसे विनाशकारी और आर्थिक रूप से अधिक नुकसान पहुंचाने वाला रोग है। इन रोगों का प्रकोप बढ़ने पर पौधे नष्ट हो सकते हैं।
Q: सैंडलवुड के रोगों से बचाव के लिए कौन सा उपाय सबसे कारगर है?
A: चंदन के वृक्षों को रोगों से बचाने के लिए रोग मुक्त एवं स्वस्थ पौधों की रोपाई करें। खेत में स्वच्छता बनाए रखें। इसके लिए संक्रमित पौधों को हटाएं एवं खरपतवारों की सफाई करें। आवश्यकता होने पर उचित मात्रा में फफूंद नाशक दवाओं का प्रयोग करें।
Q: चंदन के पेड़ की देखभाल कैसे करें?
A: उच्च गुणवत्ता वाली चंदन की लकड़ी का उत्पादन करने के लिए पौधों/वृक्षों को उचित देखभाल और रखरखाव की आवश्यकता होती है। अच्छी जल धारण क्षमता वाली अच्छी जल निकासी वाली मिट्टीमें चंदन के पेड़ों विकास बेहतर होता है। पौधों में नियमित रूप से सिंचाई करें। पौधों को जड़ गलन रोग से बचाने के लिए अधिक मात्रा में सिंचाई से बचें। पेड़ को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए खाद और खाद जैसे जैविक उर्वरकों का उपयोग करें। वृक्षों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए एवं उनका आकार बनाए रखने के लिए मृत या रोगग्रस्त शाखाओं को काट कर अलग करें। वृक्षों का नियमित रूप से निरीक्षण करें।
Q: चंदन में स्पाइक रोग क्या है?
A: स्पाइक रोग एक गंभीर कवक रोग है जो भारत में चंदन के पेड़ों को प्रभावित करता है। यह रोग चंदन उद्योग के लिए एक बड़ा खतरा है, क्योंकि इससे बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है। इस रोग से हर वर्ष भारी संख्या में पौधे संक्रमित होते हैं। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित पौधों/वृक्षों को काट कर नष्ट कर दें।
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