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किसान डॉक्टर
11 Sep
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सोयाबीन में वायरस रोगों का प्रबंधन (Management of virus diseases in soybean)


सोयाबीन एक खास तिलहन फसल है, जिसे भारत के कई राज्यों में उगाया जाता है। इसमें प्रोटीन और तेल की उच्च मात्रा होती है, जिससे यह पौष्टिक और आर्थिक रूप से फायदेमंद है। लेकिन, सोयाबीन की फसलें कई वायरस रोगों से प्रभावित होती हैं, जो पौधों की वृद्धि को रोककर उपज को कम कर देते हैं। इन वायरस रोगों के कारण पत्तियों का पीला पड़ना, धब्बे बनना और पौधों की कमजोर विकास जैसी समस्याएं होती हैं। इन वायरस रोगों के लक्षण एवं प्रबंधन के बारे में इस लेख में बताएंगे।

सोयाबीन को प्रभावित करने वाले वायरस रोग? (Virus diseases affecting soybean?)

पीला मोजेक रोग (Yellow Mosaic):

  • सोयाबीन की फसलों को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख वायरस रोग है जो माहू कीट के द्वारा फैलता है।
  • सोयाबीन की पत्तियों पर पीले रंग के छोटे-छोटे धब्बे उभरने लगते हैं, धब्बों का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और आखिर में पत्तियां सिकुड़ कर नीचे की ओर मुड जाती हैं।
  • इसके प्रभाव से पौधों के विकास में बाधा आती है।
  • इसके प्रभाव से पौधों में फली कम बनती है और उनकी गुणवत्ता भी खराब हो जाती है। फलियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।
  • इस वायरस के कारण सोयाबीन की उपज में भारी कमी आ सकती है।

नियंत्रण:

  • इस रोग से प्रभावित पौधों को नष्ट कर देना चाहिए।
  • सोयाबीन की रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
  • कीट नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 3 से 4 फेरोमेन ट्रैप का प्रयोग करें।
  • खेतों में प्रति एकड़ की दर से 4 से 6 पीले स्टिकी ट्रैप ताकि मक्खियां इसमें फंस कर मर जाएं।
  • फसल चक्र अपनाएं, लगातार एक ही खेत में सोयाबीन की खेती करने से वायरस रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इस लिए फसलों को बदल बदल कर लगाएं जिससे रोगों का प्रसार कम होता है।
  • खेती में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों और मशीनों को वायरस कणों से मुक्त रखना चाहिए। इसके अलावा, खेत में खरपतवारों को नियंत्रित रखना भी जरुरी है, क्योंकि ये वायरस के वाहक हो सकते हैं।
  • थियामेथोक्सम 25% WG (देहात Asear, सिन्जेंटा एक्टारा, धानुका अरेवा ) 40 से 80 ग्राम दवा को प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • क्लोरोपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (देहात C Square, हमला 550, नाग 505) 2 मिली प्रति लीटर पानी में दवा को मिलाकर छिड़काव करें।
  • चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्बडासीहैलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एन्टोकिल, सिंजेंटा अलिका) दवा को 50 से 80 एम.एल. प्रति एकड़ खेत पर छिड़काव करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. (हाईफील्ड इमिग्रो, धानुका मीडिया, बायर कॉन्फिडोर) कीटनाशक का उपयोग 100 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

तम्बाकू रिंग स्पॉट वायरस (Tobacco ringspot virus):

  • सोयाबीन की कली झुलसने लगती है।
  • पौधों की फूल आने से पहले की संक्रमण से सबसे अधिक उपज हानि होती है।
  • तम्बाकू रिंगस्पॉट वायरस का प्राथमिक स्रोत स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह बीज से संक्रमण हो सकता है।
  • थ्रिप्स, एफिड्स, टिड्डा और तंबाकू पिस्सू बीटल रोग वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं।

नियंत्रण:

  • संक्रमित पौधों को काट-छांट कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • बीज से होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए केवल स्वस्थ या रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करना चाहिए।
  • फसल चक्र अपनाएं, लगातार एक ही खेत में सोयाबीन की खेती करने से वायरस रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इस लिए फसलों को बदल बदल कर लगाएं जिससे रोगों का प्रसार कम होता है।
  • थियामेथोक्सम 25% WG (देहात Asear, सिन्जेंटा एक्टारा, धानुका अरेवा ) 40 से 80 ग्राम दवा को प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्बडासीहैलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एन्टोकिल, सिंजेंटा अलिका) दवा को 50 से 80 एम.एल. प्रति एकड़ खेत पर छिड़काव करें।

बीन पॉड मोटल वायरस (Bean Pod Mottle Virus)

  • यह सोयाबीन के लिए एक प्रमुख और व्यापक वायरल रोग है। जिसका सबसे आम वाहक बीटल कीट है, जो संक्रमण फैलाने में खास भूमिका निभाता है।
  • इसके कारण पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और उसमें धब्बे दिखाई देते हैं।
  • प्रभावित पत्तियाँ छोटी और विकृत हो जाती हैं, जिससे पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है।
  • इसके अलावा, BPMV के प्रभाव से फलियों पर भी धब्बे बनते हैं, जो उनकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं और फलियों की संख्या कम हो जाती है, जिससे उपज में कमी आती है।

नियंत्रण:

  • संक्रमित पौधों को काट-छांट कर नष्ट कर देना चाहिए। हल्की सर्दियों से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में ज्यादा सावधानी रखें।
  • खेती में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों और मशीनों को वायरस कणों से मुक्त रखना चाहिए। इसके अलावा, खेत में खरपतवारों को नियंत्रित रखना भी जरुरी है, क्योंकि ये वायरस के वाहक हो सकते हैं।
  • वायरस मुक्त बीजों का प्रयोग करें और सोयाबीन की रोग प्रतिरोधी किस्मों का ही चुनाव करें।
  • फसल चक्र अपनाएं, लगातार एक ही खेत में सोयाबीन की खेती करने से वायरस रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इस लिए फसलों को बदल बदल कर लगाएं जिससे रोगों का प्रसार कम होता है।
  • डाइमेथोएट 30% ई.सी. (टैफगोर, रोगोर) का 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • सायन्ट्रानिलिप्रोएल 10.26% OD (सिंजेन्टा सिंबश, फतेह) का 360 मिली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC (देहात एंटोकिल, अलिका) का 80-100 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • बीटा-सइफ्लुथ्रिन 08.49 % + इमिडाक्लोप्रिड 19.81 (बायर सोलोमन) w/w OD दवा को 140 एम.एल. प्रति एकड़ छिड़काव करें।
  • एसिफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एस.पी. (लांसर गोल्ड) का 300-400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • टेट्रा निलिप्रोल 18.18% एस.सी. (बायर वेइगो)  दवा को 100-120 एमएल प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।

क्या आपको सोयाबीन में वायरस रोगों से परेशान हैं और क्या आपको इसका कारण और प्रबंधन पता है? अपना अनुभव और जवाब हमें कमेंट करके जरूर बताएं, और  इसी तरह फसलों से संबंधित अन्य रोचक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: सोयाबीन में कौन कौन सी बीमारी आती है?

A: सोयाबीन भारत में विभिन्न बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील है, जिसमें सोयाबीन रस्ट, बैक्टीरियल प्यूस्ट्यूल, एन्थ्रेक्नोज, स्टेम कैंकर और चारकोल रॉट शामिल हैं। अगर ठीक से प्रबंधित नहीं किया गया तो ये रोग महत्वपूर्ण उपज हानि का कारण बन सकते हैं।

Q: सोयाबीन के प्रमुख कीट कौन-कौन से हैं?

A: भारत में सोयाबीन के प्रमुख कीटों में स्टेम बोरर, सेमी-लूपर, लीफ फोल्डर, पॉड बोरर, व्हाइटफ्लाई, जैसिड, माइट् और थ्रिप्स शामिल हैं। ये कीट सोयाबीन फसलों को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा सकते हैं और फसल की उपज में भी भारी कमी होती है।

Q: सोयाबीन की खेती कब करें ?

A: सोयाबीन की खेती मुख्य रूप से खरीफ के मौसम में जून से जुलाई के महीने में करते हैं। खेती का सही समय स्थान और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर भिन्न होता है। अच्छी वृद्धि और उपज के लिए सोयाबीन के बीज बोने का सही समय तब होता है जब मिट्टी का तापमान लगभग 25-30 डिग्री सेल्सियस होता है और मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है।

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