पालक: प्रमुख कीट और रोग, कारण, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Spinach: Major Pests and Disease, Symptoms Prevention and Treatment
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पालक की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके अलावा भी भारत के कई राज्यों में इसकी खेती की जाती है। पारम्परिक फसलों की तुलना में कम समय में तैयार होने के कारण इसकी खेती से किसानों को मुनाफा भी अधिक होता है। हालांकि, अन्य फसलों की तरह पालक की फसल में कीट और रोगों का प्रकोप फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। इनसे निपटने के लिए, कीटों और रोगों की पहचान, उनके लक्षण और प्रबंधन के बारे में जानकारी होना आवश्यक है। इस पोस्ट में, हम पालक की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट एवं रोगों से होने वाले रोगों एवं कीटों की जानकारी प्राप्त करेंगे।
पालक में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Some major pests of date spinach
माहु कीट से होने वाले नुकसान: माहु जिसे एफिड्स के नाम से भी जाना जाता है, आकार में बहुत छोटे होते हैं और पत्तियों एवं पौधों के अन्य कोमल हिस्सों का रस चूसते हैं। जिससे पौधों की पत्तियां मुड़ने लगती हैं और पौधों के विकास में बाधा आती है। समूह में रहने के कारण ये कीट कम समय में फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। कई बार ये कीट फफूंद जनित रोगों को फैलाने का काम भी करते हैं। इस कीट के कारण पालक की पैदावार एवं गुणवत्ता में भारी कमी हो सकती है।
माहु कीट पर नियंत्रण के तरीके:
- इन कीटों पर नियंत्रण के नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 100 ग्राम इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस जी (देहात इल्लीगो) मिला कर छिड़काव करें।
- 200 लीटर पानी में 80 मिलीलीटर क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% w/w एससी (एफएमसी कोराजन) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
पत्ती सुरंगी कीट से होने वाले नुकसान: पत्ती सुरंगी कीट को लीफ माइनर कीट भी कहा जाता है। वर्षा के मौसम में यह अधिक सक्रिय होते हैं। सबसे पहले ये कीट कोमल पत्तियों पर आक्रमण करते हैं और पत्तियों के हरे पदार्थ को खुरच कर खाते हैं। प्रभावित पत्तियों पर आड़ी-तिरछी लकीरें नजर आने लगती हैं। इस कीट का प्रकोप बढ़ने पर पत्तियां कमजोर हो कर गिरने लगती हैं और पौधों के विकास में बाधा आती है।
पत्ती सुरंगी कीट पर नियंत्रण के तरीके:
- इस कीट को फैलने से रोकने के लिए पौधों के प्रभावित हिस्सों को नष्ट कर दें।
- प्रति एकड़ खेत में 240 मिलीलीटर आइसोसायक्लोसेरम 9.2% w/w + आइसोसायक्लोसेरम 10% w/v (सिंजेंटा सिमोडिस) का प्रयोग करें।
- प्रति लीटर पानी में 0.5-1 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 200 SL (17.8 % w/w) (बायर कॉन्फीडोर) मिला कर प्रयोग करें।
- जैविक विधि से नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर नीम का तेल या नीमअर्क नामक दवा मिला कर छिड़काव करें।
पालक में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases of spinach
फ्यूजेरियम विल्ट से होने वाले नुकसान: इस रोग को उकठा रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुत तेजी से फैलने वाला एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग के कारण पालन की उपज में गुणवत्ता में भारी कमी देखी जा सकती है। इस रोग की शुरुआती अवस्था में पौधे के निचले पत्ते सूख कर मुरझाने लगते हैं। संक्रमण बढ़ने पर पूरा पौधा पूरी तरह से सूख कर मुरझा जाता है। कभी-कभी पत्तियों पर धब्बे भी नजर आ सकते हैं।
फ्यूजेरियम विल्ट पर नियंत्रण के तरीके:
- फसल को इस रोग से बचाने के लिए रोग रहित बीज का चयन करें।
- फसल चक्र अपनाएं।
- प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डब्लूएस (धानुका विटावैक्स पावर, स्वाल इमिवैक्स) से उपचारित करें।
जड़ सड़न रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। अधिक वर्षा या आवश्यकता से अधिक मात्रा में सिंचाई के कारण खेत में होने वाला जल जमाव भी इस रोग के होने का प्रमुख कारण है। इस रोग के फफूंद कई वर्षों तक मिट्टी में जीवित रह सकते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे पीली से भूरी होने लगती हैं। कुछ समय बाद प्रभावित पत्तियां झड़ने लगती हैं। पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं और पौधे कमजोर हो कर नष्ट हो जाते हैं।
जड़ सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- बुवाई के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
- खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) से उपचारित करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
आपकी पालक की फसल में किस रोग एवं कीट का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: पालक को कौन सी बीमारी होती है?
A: पालक विभिन्न बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील है, जिसमें डाउनी मिल्ड्यू रोग, सफेद जंग, पत्ती धब्बा रोग और फ्यूजेरियम विल्ट रोग शामिल हैं। ये रोग पालक की उपज में कमी का एक बड़ा कारण बन सकते हैं। फसल को इन रोगों से बचाने के लिए उपयुक्त फफूंद नाशक दवाओं का प्रयोग करें।
Q: पालक में कौन से कीड़े होते हैं?
A: पालक की फसल में लीफ माइनर कीट, माहु, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, जैसी कीटों का प्रकोप अधिक होता है। इसके अलावा इस फसल में कैटरपिलर का प्रकोप भी होता है। ये कीड़े पौधों की पत्तियों के हरे पदार्थ को खा कर या नरम हिस्सों का रस चूस कर फसल को क्षति पहुंचाते हैं। पालक में कीटों का प्रकोप होने पर तुरंत कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करें और उनकी परामर्श के अनुसार उचित कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करें।
Q: पालक में कौन सी दवा डालें?
A: पालक की फसल में दवाओं का प्रयोग उसमे लगने वाले रोग एवं कीटों के अनुसार किया जाता है। फसल में उपयुक्त मात्रा में आप जैविक एवं रासायनिक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।
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