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30 Aug
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कंटोला की खेती | Spiny Gourd Cultivation

कंटोला जिसे कुछ क्षेत्रों में ककोड़ा भी कहा जाता है, एक ऐसी सब्जी है जिसका आयुर्वेद में एक विशेष महत्व है। भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में की जाती है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड में भी इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। अगर आप भी करना चाहते हैं इसकी खेती तो इसकी खेती के लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, खेत की तैयारी, बीज की मात्रा, सिंचाई एवं खरपतवार प्रबंधन, रोग एवं कीट नियंत्रण जैसी महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

कंटोला की खेती कैसे करें? | How to cultivate Spiny Gourd

  • कंटोला की खेती के लिए उपयुक्त समय: आमतौर पर कंटोला की खेती जायद एवं खरीफ मौसम में की जाती है। इसकी खेती के लिए जुलाई-अगस्त का महीना सर्वोत्तम है। इसके अलावा जनवरी-फरवरी महीने में भी इसकी खेती की जा सकती है।
  • उपयुक्त जलवायु: कंटोला की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। पौधों के लिए 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। कंटोला की खेती के लिए उन क्षेत्रों का चुनाव किया जाना चाहिए जहां गर्मियों में तापमान मध्यम से अधिक हो और सर्दियों में बहुत ज्यादा ठंड न हो। अधिक ठंड और पाला पौधों की वृद्धि को प्रभावित कर सकता है। अत्यधिक वर्षा भी कंटोला की फसल के लिए हानिकारक हो सकती है।
  • उपयुक्त मिट्टी: कंटोला की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इस प्रकार की मिट्टी में जल निकासी की क्षमता अच्छी होती है, जिससे पौधों की जड़ें सड़ने से बच जाती हैं। मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी का चयन करें।
  • बेहतरीन किस्में: इसकी बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए आप इंद्रा ककोड़ा 1, इंद्रा काकोला 2, छत्तीसगढ़ ककोड़ा 2, अर्का भारत, स्विस वर्ल्ड कंटोला बीज, आदि किस्मों का चयन कर सकते हैं।
  • खेत तैयार करने की विधि: सबसे पहले खेत की एक बार गहरी जुताई करें। इससे खेत में पहले से मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाएंगे। इसके बाद 2-3 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा कर लें। प्रति एकड़ खेत में 8-10 टन गोबर की खाद या जैविक खाद मिलाएं। खेत में जल निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए, जिससे वर्षा के पानी से फसल को नुकसान न हो। जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 87.0 किलोग्राम यूरिया, 52.2 किलोग्राम डीएपी और 26.7 किलोग्राम एमओपी खाद का प्रयोग करें। इसके बाद खेत में पौधों की रोपाई के लिए 20 इंच चौड़ा, 20 इंच लम्बा और 20 इंच गहरा गड्ढा तैयार करें।
  • बीज की मात्रा: प्रति एकड़ खेत में 800-1,200 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। फसल को रोगों से बचाने के लिए प्रमाणित संस्थानों से ही बीज खरीदने चाहिए और बुवाई से पहले फफूंद नाशक से बीज उपचारित करना जरूरी है। बुवाई से पहले बीज को 12 घंटों तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए। इससे अंकुरण की क्षमता बढ़ती है।
  • बुवाई की विधि: इसकी खेती के लिए नर्सरी में 1-2 सेंटीमीटर की गहराई पर बीज की बुवाई करें। बुवाई के 4-6 सप्ताह के बाद पौधों की रोपाई मुख्य खेत में की जा सकती है। मुख्य खेत में पौधों के बीच 24-30 इंच की दूरी होनी चाहिए। पौधों की रोपाई खेत में पहले से तैयार किए गए गड्ढों में करें। सभी पौधों के बीच करीब 2 मीटर की दूरी होनी चाहिए। इससे पौधों को विकास के लिए पर्याप्त स्थान मिलता है। इसकी खेती पौधों की कटिंग लगा कर भी की जा सकती है। इसके लिए आप 2-3 वर्ष पुराने पौधे से कटिंग ले सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि सभी कटिंग में 2-3 गांठें हो।
  • सिंचाई प्रबंधन: फसल में सिंचाई की आवश्यकता मौसम और मिट्टी की स्थिति के अनुसार तय की जाती है। नर्सरी में बीज की बुवाई के बाद एवं मुख्य खेत में पौधों की रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। गर्मियों में 7-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जा सकती है। वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। खेत में जल जमाव होने पर पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं। इसलिए सिंचाई के समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि खेत में जल जमाव की स्थिति उत्पन्न न हो। ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है, जिससे पानी की बचत भी होती है और पौधों को आवश्यक मात्रा में पानी मिलता है।
  • खरपतवार नियंत्रण: खेत में खरपतवारों की उपस्थिति फसल की उत्पादकता को प्रभावित कर सकती है, इसलिए खेत को साफ-सुथरा रखना आवश्यक है। खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथों से निराई की जा सकती है। पौधों की रोपाई के 20-25 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। इसके बाद आवश्यकता के अनुसार या हर 15-20 दिनों के अंतराल पर इस प्रक्रिया को दोहराएं। हालांकि, बड़े क्षेत्रों में निराई-गुड़ाई करने में श्रम एवं समय की आवश्यकता अधिक होती है। ऐसे में आप खरपतवारों के अनुसार उपयुक्त खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।
  • रोग एवं कीट नियंत्रण: कंटोला की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग और कीट प्रभावित कर सकते हैं। इनमें जड़ सड़न रोग, पत्तियों का पीला पड़ना, फफूंद जनित रोग, फल छेदक कीट, चूसक कीट और तना छेदक कीट शामिल हैं। इन रोगों एवं कीटों से फसल को बचाने के लिए खेत में साफ-सफाई बनाए रखें। आवश्यकता होने पर रासायनिक फफूंदनाशकों एवं कीटनाशकों का छिड़काव करें। जैविक नियंत्रण के लिए उपयुक्त मात्रा में नीम के तेल का प्रयोग कर सकते हैं। समस्या बढ़ने पर कृषि विशेषज्ञों से संपर्क करें।
  • फलों की तुड़ाई: कंटोला फलों की तुड़ाई का समय उसकी किस्म और क्षेत्र की जलवायु पर निर्भर करता है। आमतौर पर बुवाई के 70-80 दिन बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जब फल पूरी तरह से विकसित हो जाएं और उनका रंग हरा हो तब फलों की तुड़ाई कर लें। फलों की तुड़ाई समय पर कर लें, तुड़ाई में देर होने से फलों का रंग पीला होने लगता है। फलों में लम्बे समय तक ताजगी बनाए रखने के लिए उन्हें साफ और ठंडे स्थान पर संग्रहित करें।

आपके खेत में कंटोला की फसल में किस रोग या कीट का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इस जानकारी को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: कंटोला कब लगाया जाता है?

A: कंटोला, जिसे स्पाइनी लौकी के रूप में भी जाना जाता है, आमतौर पर भारत में इसकी खेती जायद एवं खरीफ के मौसम में की जाती है।

Q: कंटोला का पौधा कैसे लगाएं?

A: कंटोला का पौधा लगाने के लिए कार्बनिक पदार्थ और अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद डालकर मिट्टी तैयार करें। बीजों को 1-2 इंच की गहराई में बुवाई करें। बीज की बुवाई के करीब 4 सप्ताह बाद मुख्य खेत में पौधों की रोपाई करें।

Q: भारत में कंटोला कहां उगाया जाता है?

A: कंटोला महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में उगाया जाता है। यह एक गर्म मौसम की फसल है जिसे अच्छी तरह से विकसित करने के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। यह पौधा आमतौर पर अपने खाद्य फलों के लिए घर के बगीचों और छोटे खेतों में उगाया जाता है।

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