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19 Mar
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नेनुआ: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Sponge Gourd: Disease, Symptoms, Prevention and Treatment

तुरई, गिलकी, झिंगानी, स्पंज गॉर्ड, आदि कई नामों से जाना जाने वाला नेनुआ एक पौष्टिक सब्जी है। आयरन, विटामिन्स, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, पोटैशियम, फोलेट, आदि पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। गर्मी के मौसम में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी खेती किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकती है।  कुछ रोगों के कारण पूरी फसल नष्ट हो सकती है। नेनुआ की बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए इसमें लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों की जानकारी होना आवश्यक है।

नेनुआ की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major disease affecting the Sponge Gourd Plants

जड़ एवं तना गलन रोग से होने वाले नुकसान: खेत में आवश्यकता से अधिक नमी होना इस रोग को बढ़ावा देता है। नए पौधों का कॉलर भाग मुलायम हो जाता है और पानी ज्यादा होने से पौधे का जड़ वाला भाग काला होकर गलने लगता है।

जड़ एवं तना गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से बचाव के लिए खेत में  उचित व्यवस्था करें।
  • प्रति किलोग्राम बीज को 2-3 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू पी (देहात साबू) से उपचारित करें।
  • इसके अलावा आप प्रति किलोग्राम बीज को 08-10 ग्राम ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू पी  (आईपीएल संजीवनी) से उपचारित कर सकते हैं।
  • इसके साथ ही यहां बताए गए किसी एक दवा का छिड़काव करें।
  • खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ खेत में 2 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा विरीडी 1.0% डब्ल्यू पी (आईपीएल संजीवनी) को गोबर की खाद में मिला कर प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम कॉपर आक्सी क्लोराइड 50% डब्ल्यू पी (क्रिस्टल ब्लू कॉपर) की ड्रेनचिंग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी  (बायोस्टैड रोको) की ड्रेनचिंग करें।

फ्यूजेरियम विल्ट से होने वाले नुकसान: नेनुआ के पौधों के किसी भी अवस्था में इस रोग का प्रकोप हो सकता है। यह एक मृदा जनित रोग है। जल जमाव या अधिक नमी युक्त क्षेत्रों में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग से प्रभावित पौधे मुरझाए हुए नजर आते हैं। समय रहते इस रोग पर नियंत्रण नहीं करने पर पौधे नष्ट हो जाते हैं।

फ्यूजेरियम विल्ट पर नियंत्रण के तरीके:

  • जल जमाव वाले क्षेत्र में नेनुआ की खेती न करें।
  • नीचे बताई गई दवाओं में से किसी एक दवा का छिड़काव करें।
  • खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ खेत में 2 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा विरीडी 1.0% डब्ल्यू पी (आईपीएल संजीवनी) को गोबर की खाद में मिला कर प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम कॉपर आक्सी क्लोराइड 50% डब्ल्यू पी (क्रिस्टल ब्लू कॉपर) की ड्रेनचिंग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी  (बायोस्टैड रोको) की ड्रेनचिंग करें।

गमी स्टेम ब्लाइट रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग की शुरुआत में प्रभावित पौधों का तना चिपचिपा नजर आता है। गर्म और आर्द्र क्षेत्रों में नेनुआ की फसल को इस रोग को बहुत नुकसान होता है। यह रोग किसी भी अवस्था के पौधों को अपनी चपेट में ले सकता है। प्रभावित पौधों के तने पर गोलाकार से त्रिकोणीय गहरे भूरे रंग के धब्बों उभरने लगते हैं। ये धब्बे अक्सर सबसे पहले उन तना पर विकसित होते हैं जो छायादार होती हैं या लंबे समय तक नम रहती हैं। धब्बों के केंद्र में ऊतक टूट कर गिर जाते हैं।

गमी स्टेम ब्लाइट रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • नेनुआ की खेती के लिए इस रोग से प्रभावित फसल की बीज का चयन न करें।
  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए निम्न में से किसी एक दवा का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 ग्राम क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यू पी (सिंजेंटा कवच) मिला कर छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 ग्राम मेटालैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% डब्ल्यू पी (इंडोफिल मैटको) मिला कर छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी (बायोस्टैड रोको) मिला कर छिड़काव करें।

पत्ती झुलसा रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग की शुरुआत में पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे धब्बे उभरने लगते हैं। कुछ समय बाद धब्बों के बीच में सुराख़ हो जाता है। रोग बढ़ने पर ये धब्बे तने और फलों के ऊपर भी नजर आने लगते हैं और पत्ते झुलसे हुए नजर आते हैं। नियंत्रण नहीं करने पर पत्तियां झुलस कर गिरने लगती हैं।

पत्ती झुलसा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 300 ग्राम कॉपर आक्सी क्लोराइड 50% डब्ल्यू पी (क्रिस्टल ब्लू कॉपर) मिला कर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 10-12 दिन के अंतराल पर फिर से छिड़काव कर सकते हैं।
  • इसके अलावा 200 लीटर पानी में 350 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू पी (देहात साबू) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 350 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू पी (देहात जिनेक्टो) का भी छिड़काव कर सकते हैं।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 250 मिलीलीटर एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी (देहात एज़ीटॉप) मिला कर छिड़काव करने से भी इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।

नेनुआ की फसल में रोग प्रबंधन के लिए आप किन दवाओं का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: नेनुआ कौन से महीने में लगाई जाती है?

A: ग्रीष्मकालीन फसल की बुवाई फरवरी-मार्च में की जाती है। वहीं वर्षाकालीन फसल की बुवाई जून-जुलाई महीने में की जाती है।

Q: नेनुआ कितने प्रकार के होते हैं?

A: नेनुआ के मुख्यतः दो प्रकार हैं। चिकनी सतह वाली एवं उभरी सतह वाली।

Q: नेनुआ की कौन सी किस्म बुवाई करें?

A: नेनुआ की उन्नत एवं अच्छी पैदावार के लिए 'देहात डीएचएस 2401' या  'देहात डीएचएस 2402' किस्म की बुवाई कर सकते हैं।

Q: नेनुआ की फसल में कौन-कौन से रोग लगते हैं?

A: नेनुआ फसल में मुख्य रूप से जड़ एवं तना गलन रोग, गमी स्टेम ब्लाइट रोग, फ्यूजेरियम विल्ट, कोमल फफूंदी रोग, चूर्णिल आसिता, मृदुरोमिल आसिता, एन्थ्रेक्नोज, पीली मोज़ेक वायरस रोग, पत्ती झुलसा रोग, का प्रकोप होता है।

Q: नेनुआ की अच्छी पैदावार के लिए क्या करें?

A: नेनुआ की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्मों का चयन करें। इसके साथ ही सही समय पर उर्वरकों का प्रयोग करें, खर्ट को खरपतवारों से मुक्त रखें। खेत तैयार करते समय प्रति एकड़ खेत में 04 किलोग्राम देहात स्टार्टर का प्रयोग करें। फसल को रोग एवं कीटों से बचा कर रखें।

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