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26 June
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गन्ना: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Sugarcane: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment

गन्ना की खेती नकदी फसल के रूप में की जाती है। इसका उपयोग मुख्यतः इसके रस से चीनी और गुड़ बनाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसके खोई का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर किया जाता है। बात करें इसमें लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों की तो गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग, कंडुआ रोग, ग्रासी शूट रोग, पोक्का बोइंग रोग, उकठा रोग का प्रकोप अधिक होता है। इन रोगों के कारण फसल की उपज में कमी आती है। इसके साथ ही गन्ने की मिठास भी प्रभावित होती है।

गन्ना की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग एवं नियंत्रण के तरीके | Major Diseases in Sugarcane Crop and Their Control Methods

लाल सड़न रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को रेड रॉट डिजीज के नाम से भी जाना जाता है। यश एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं। कुछ समय बाद पत्ती नीचे से ऊपर की ओर सूखने लगती हैं। गन्ने के बीच से दो भाग कर देने पर गन्ने पर लाल रंग दिखाई देने लगता है। गन्ने की गांठों तथा छिलकों पर फफूंद के बीजाणु विकसित होने लगते हैं। गन्ने का गूदा लाल और भूरे रंग के फफूंद से भर जाता है। पौधों के सूखने पर उनसे अल्कोहल जैसी गंध आने लगती हैं।

लाल सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • रोग मुक्त क्षेत्र में स्वस्थ पौधों से सेट (बीज) का चयन करें।
  • गन्ने की फसल को एक ही खेत में बार-बार न लगाएं।
  • फसल चक्र का प्रयोग करें।
  • प्रतिरोधी किस्म का चयन करें।
  • बुवाई से पहले 10 क्विंटल बीज को 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) से उपचारित करें।
  • प्रभावित पौधों को खेतों से बाहर निकालकर जला दें।
  • प्रभावित फसल की पेड़ी का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • 150-200 लीटर पानी में 150 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से करें।

चाबुक कंडुआ रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को स्मट के नाम से भी जाना जाता है। इस फफूंद जनित रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पतली, नुकीली और पोरियां लंबी हो जाती हैं। पौधों को इस रोग से बचाने के लिए रोग रहित बीज की बुवाई करें।

चाबुककंडुआ रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • बीज को लगाने से पहले उपचारित करें।
  • गन्ने की फसल को एक ही खेत में बार-बार ना लगाएं।
  • फसल चक्र का प्रयोग करें।
  • प्रतिरोधी किस्म का चयन करें।
  • 150-200 लीटर पानी में 150 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से करें।
  • 150-200 लीटर पानी में 150 मिलीलीटर प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी (क्रिस्टल टिल्ट) का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से करें।

ग्रासी शूट रोग से होने वाले नुकसान: विशेष रूप से यह रोग वर्षाकाल में अधिक होता है। प्रभावित पौधों की आगे की पत्तियों में हरापन बिल्कुल समाप्त हो जाता है, जिससे पत्तियों का रंग दूधिया हो जाता है। नीचे की पुरानी पत्तियों में मध्य शिरा के समानान्तर दूधिया रंग की धारियां पड़ जाती हैं। रोग ग्रसित पौधों में अनेक पतले-पतले कल्ले निकलते हैं। पौधों की वृद्धि रुक जाती है और गन्ने पतले रह जाते हैं। प्रभावित पौधे झाड़ी की तरह नजर आते हैं।

ग्रासी शूट रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • लीफ हॉपर एवं प्लांट हॉपर इस रोग को फैलाने का काम करते हैं।
  • समय-समय पर गन्ने के खेतों का निरीक्षण कर रोगी पौधों को नष्ट कर देना या मिट्टी से ढक देना भी रोग प्रबंधन में कारगर उपाय है।
  • रोगग्रस्त गन्नों को बीज के रूप में उपयोग न करें।
  • प्रभावित फसल की पेड़ी फसल न लें।
  • फसल चक्र अपनाएं।
  • प्रति एकड़ खेत में 150-200 लीटर पानी में 150 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल (धानुका मीडिया) मिला कर प्रयोग करें।
  • 150-200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।

पोक्का बोइंग रोग से होने वाले नुकसान: रोग के शुरुआती दौर में  ऊपर की पत्तियां तने के जुड़ाव की ओर से पीली और सफेद होने लगती हैं और कुछ दिनों बाद लाल भूरी होकर सूख जाती हैं। इसके प्रभाव से ऊपर से निकलने वाली पत्तियां विकृत हो जाती हैं। पत्तियां आपस में चिपकी हुई निकलती हैं। फसल में प्रकाश संश्लेषण की की क्रिया प्रभावित हो जाती है और पौधों की वृद्धि रुक जाती है। इस रोग की तीव्रता अधिक होने पर ऊपरी भाग में सड़न की समस्या हो सकती है। यह रोग वर्षा के मौसम में ज्यादातर दिखने को मिलता है।

पोक्का बोइंग रोग पर नियंत्रण के तरीके:

नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।

  • प्रति एकड़ खेत में 150-200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर हेक्साकोनाजोल 5% एससी (टाटा रैलीस कॉन्टाफ प्लस) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 150-200 लीटर पानी में 300 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी (क्रिस्टल ब्लू कॉपर) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 150-200 लीटर पानी में 300 ग्राम थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी (बायोस्टैड रोको) का प्रयोग करें।

उकठा रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग के होने पर गन्नों की पोरियां हल्के पीले रंग की हो जाती हैं। गन्ने का गूदा सूख जाता है और गन्ने भूरे रंग के हो जाते हैं। कुछ समय बाद पौधे मुरझाने लगते हैं।

उकठा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से बचने के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 6 किलोग्राम बोरेक्स के प्रयोग से मिट्टी का उपचार करें।
  • गन्ने के संक्रमित पौधे को खेत से हटा देना चाहिए।
  • फसल चक्र अपनाएं।
  • प्रति एकड़ खेत में 450 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लूपी (क्रिस्टल ब्लू कॉपर) की ड्रेंचिंग करें।
  • प्रति एकड़ खेत 200 लीटर पानी में 500 ग्राम थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू.पी (बायोस्टैड रोको) की ड्रेंचिंग करें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: गन्ने का घातक रोग कौन सा है?

A: गन्ने की फसल को लाल सड़न रोग से सबसे अधिक नुकसान होता है।

Q: गन्ने में लाल सड़न रोग किसकी कमी से होता है?

A: गन्ने में लाल सड़न रोग कोलेटोट्रिचम फाल्कैटम नामक कवक के कारण होता है। हालांकि, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों की कमी गन्ने के पौधों को रोग के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती है।

Q: गन्ने की पत्तियां पीली क्यों पड़ रही है?

A: गन्ने के पत्तों का पीलापन विभिन्न कारणों से हो सकता है। जिनमें पोषक तत्वों की कमी (विशेष रूप से नाइट्रोजन), पानी की कमी, कीट संक्रमण, रोगों का प्रकोप, अत्यधिक तापमान, आदि शामिल है।

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