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1 Nov
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शकरकंद की खेती (Sweet Potato Cultivation)


शकरकंद, जिसे स्वीट पोटैटो के नाम से भी जाना जाता है, भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यह विटामिन ए, विटामिन सी, फाइबर, और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जो इसे सेहत के लिए बेहद फायदेमंद बनाते हैं। शकरकंद की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु में आसानी से की जा सकती है, जिससे यह किसानों के लिए एक लचीला और लाभदायक विकल्प बन जाती है। इसकी बुवाई का सही समय फरवरी से मार्च तक होता है, और इसकी कटाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। भारतीय व्यंजनों में शकरकंद का उपयोग पराठे, करी, नाश्ते और मिठाइयों में बड़े पैमाने पर किया जाता है, जिससे इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।

कैसे करें शकरकंद की खेती? (How to cultivate sweet potato?)

  • मिट्टी: शकरकंद की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी सुविधा होनी चाहिए। हल्की दोमट, बलुई दोमट, या चिकनी दोमट मिट्टी भी उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH स्तर 5.8 से 6.7 के बीच होना चाहिए। खेत की मिट्टी को अच्छी तरह से जुताई करके भुरभुरी बनाना आवश्यक है ताकि कंदों को विकास के लिए उचित स्थान मिल सके।
  • जलवायु: शकरकंद के लिए गर्म और नमीयुक्त जलवायु उत्तम होती है। 21°C से 27°C के बीच का तापमान इसके विकास के लिए सर्वोत्तम है। इसकी फसल को 100 से 150 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। पाले वाले क्षेत्रों में इसकी खेती से बचना चाहिए, क्योंकि ठंड और पाला इसकी फसल के लिए हानिकारक होते हैं।
  • उन्नत किस्में: शकरकंद की खेती में कई उन्नत किस्में शामिल हैं। भू सोना में पीले कंद होते हैं और यह 8 टन प्रति एकड़ पैदावार देती है। गौरी के कंद लाल-बैंगनी होते हैं और यह भी 8 टन प्रति एकड़ उत्पादन देती है। भू कृष्णा के कंद का गुदा लाल होता है, और यह 7.2 टन प्रति एकड़ पैदावार देती है। पूसा सफेद सफेद गुदा वाली किस्म है, जो 10-12 टन प्रति एकड़ तक पैदावार देती है।
  • बुवाई का समय: गांठों को नर्सरी बेड पर जनवरी से फरवरी में बोये और बेलों की बुवाई के लिए अप्रैल से जुलाई का समय उचित होता है।
  • बीज और रोपण प्रक्रिया: शकरकंद की खेती मुख्यतः कलमों (वाइन कटिंग्स) से की जाती है। प्रत्येक कलम की लंबाई 30 सेमी होनी चाहिए, जिसमें 5 से 8 कलियां हों। रोपाई के लिए पंक्तियों के बीच 60 सेमी और पौधों के बीच 20 सेमी का फासला रखें, जिससे प्रति एकड़ 33,000 पौधे लग सकें। गांठों की बिजाई 7-10 सेमी गहराई पर करें। रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें और शुरुआती 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई बनाए रखें।
  • खाद एवं उर्वरक प्रबंधन: शकरकंद की फसल को स्वस्थ और उन्नत बनाने के लिए खाद और उर्वरक का सही प्रबंधन बेहद महत्वपूर्ण है। रोपाई से पहले खेत में प्रति एकड़ 2 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। उर्वरकों के लिए प्रति एकड़ डोज इस प्रकार रखें: यूरिया 35 किग्रा, डीएपी 22 किग्रा, और एम.ओ.पी 33 किग्रा। इसके साथ ही, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम (NPK) का अनुपात 60:50:50 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करें। जैविक खाद का उपयोग फसल की गुणवत्ता को बढ़ाता है और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखता है।
  • सिंचाई प्रबंधन: शकरकंद की फसल को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन शुरुआती दिनों में नियमित सिंचाई जरूरी है। रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें, और फिर हर 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। गर्मियों के दौरान मिट्टी में नमी बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। फूल और कंद बनने के समय अधिक पानी देने से बचें, क्योंकि इससे कंदों में सड़न की समस्या हो सकती है।
  • खरपतवार प्रबंधन: शकरकंद की फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना अत्यंत आवश्यक है। खरपतवार पौधों से पोषक तत्वों और पानी की प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे फसल की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पहली निराई-गुड़ाई रोपाई के 20-25 दिन बाद करें और दूसरी 40-45 दिन बाद। निराई-गुड़ाई करने से मिट्टी में हवा का संचार बेहतर होता है और कंदों का विकास सुचारू रूप से होता है।
  • रोग और कीट प्रबंधन: शकरकंद की फसल में कई प्रकार के रोग और कीटों का हमला हो सकता है। आमतौर पर सफेद मक्खी, माइट्स, और तना गलन रोग के प्रकोप देखने को मिलते हैं। इनसे बचाव के लिए जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें। नीम के तेल का छिड़काव भी एक प्रभावी उपाय है। धफड़ी रोग, अगेता झुलस रोग, फल पर काले धब्बे जैसे रोगों का भी खतरा रहता है। रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत उचित उपाय करें, जैसे कि प्रभावित पौधों को हटाना और जैविक या रासायनिक उपचार करना।
  • कटाई: शकरकंद की फसल आमतौर पर 90 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। कंदों के पीले होने और परिपक्व होने पर कटाई की जाती है। कटाई के लिए कंदों को उखाड़ने के बाद उन्हें कुछ समय धूप में सुखाएं ताकि उनमें से अतिरिक्त नमी निकल जाए।
  • भंडारण: कटाई के बाद, शकरकंद के कंदों को ठंडी और सूखी जगह पर संग्रहित करें। भंडारण के लिए जूट की बोरियों या लकड़ी के बॉक्स का उपयोग करें। संग्रहण के दौरान समय-समय पर कंदों की जांच करें ताकि सड़न या फफूंदी लगने पर उन्हें तुरंत हटाया जा सके।

क्या आप शकरकंद की खेती करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: शकरकंद की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय कौन सा है?

A: शकरकंद की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय फरवरी से मार्च या जून से जुलाई होता है। इस दौरान मिट्टी में नमी और तापमान का स्तर शकरकंद के पौधों के विकास के लिए अनुकूल होता है।

Q: शकरकंद की खेती के लिए कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी होती है?

A: शकरकंद की खेती के लिए हल्की दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी सुविधा हो। मिट्टी का pH स्तर 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।

Q: शकरकंद के पौधों में कौन-कौन से प्रमुख कीट और रोग लगते हैं, और उनके रोकथाम के उपाय क्या हैं?

A: शकरकंद के पौधों पर आमतौर पर सफेद मक्खी, माइट, और तना गलन रोग का हमला होता है। इनसे बचाव के लिए नीम के तेल का छिड़काव और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए। प्रभावित पौधों को समय-समय पर हटाना और उचित उपचार करना भी आवश्यक है।

Q: शकरकंद की फसल कितने दिनों में तैयार हो जाती है, और इसकी कटाई कैसे की जाती है?

A: शकरकंद की फसल 90-120 दिनों में तैयार हो जाती है। जब पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और कंद पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं, तब फसल की खुदाई की जाती है। कंदों को सावधानीपूर्वक खुदाई करके धूप में सुखाना चाहिए।

Q: शकरकंद की खेती से प्रति एकड़ कितनी पैदावार प्राप्त हो सकती है?

A: शकरकंद की पैदावार किस्म और खेती के तरीकों पर निर्भर करती है। आमतौर पर प्रति एकड़ भूमि से 8 से 12 टन तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है, बशर्ते खेती सही तरीके से की जाए और पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व और सिंचाई मिले।

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