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18 Sep
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कपास में प्रमुख सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के लक्षण और उपचार (Symptoms and treatment of major micronutrient deficiency in cotton)


कपास की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे लौह (आयरन), जिंक, कैल्शियम, मैंगनीज और बोरॉन, पौधों की वृद्धि और उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन पोषक तत्वों की कमी के कारण पत्तियों में पीलापन आना, पौधों की वृद्धि रुकना, और फूलों व फलों का सही विकास न होना जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इनकी सही मात्रा देने से कपास की फसल को स्वस्थ बनाया जा सकता है, जिससे उपज में वृद्धि होती है और फसल की गुणवत्ता भी बेहतरीन होती है।

कपास के प्रमुख सूक्ष्म पोषक तत्व कौन से हैं? (What are the major micronutrients of cotton?)

जिंक (Zinc):

  • जिंक की कमी से पत्तियां पीली और चमड़े जैसी हो जाती हैं।
  • पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ने लगती हैं और शिराओं के बीच पीले धब्बे दिखाई देते हैं।
  • पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है, जिससे वे झाड़ी जैसे दिखने लगते हैं।

नियंत्रण:

  • खेत में जिंक की कमी को दूर करने के लिए जिंक युक्त उर्वरक जैसे जिंक सल्फेट का प्रयोग करें।
  • जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट (ZnSO4) का उपयोग 5 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें।
  • Zn 12% - EDTA 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर कपास के खेत में छिड़काव करें।

बोरॉन (Boron):

  • बोरॉन की कमी से पत्तियों की आकृति विकृत हो जाती है और उनका विकास सही से नहीं होता।
  • पौधों में फूल और बीज की मात्रा कम हो जाती है, जिससे पैदावार पर असर पड़ता है।
  • अधपके फल गिरने लगते हैं, जिससे फसल को नुकसान होता है।
  • पत्तियां मोटी और पीली हो जाती हैं।
  • फलों में दरारें पड़ सकती हैं और उनमें सख्त ऊतक दिखाई दे सकते हैं।

नियंत्रण:

  • पौधों को बोरॉन की कमी से बचाने के लिए बोरॉन युक्त खाद का उपयोग करें।
  • 250 ग्राम बोरॉन (20%) को 150-200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ कपास के खेत पर छिड़काव करें।
  • मिट्टी के पीएच स्तर को 6.0-7.0 के बीच बनाए रखें ताकि बोरॉन की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
  • ऐसे पौधों की किस्मों का चुनाव करें जो बोरॉन की कमी को सहन कर सकते हो।
  • कैल्शियम बोरेट का उपयोग प्रति एकड़ कपास के खेत में 10 किलोग्राम छिड़काव करें।
  • कैल्शियम नाइट्रेट विद बोरॉन (N-14.5%, Ca 17%, Boron 0.3%) का 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर पत्तियों पर छिड़काव करें।

Iron (लौह):

  • कपास के पौधों में आयरन की कमी सबसे पहले नई पत्तियों में देखी जाती है।
  • पत्तियों की शिराएं हरी रहती हैं, लेकिन शिराओं के बीच का हिस्सा पीला या सफेद दिखाई देने लगता है।
  • जबकि पुरानी पत्तियां सामान्य रह सकती हैं। यदि कमी ज्यादा हो, तो पत्तियों का पूरा हिस्सा सफेद हो सकता है।
  • इससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और उत्पादकता पर असर पड़ता है।
  • आयरन की कमी से पौधों के पूरे विकास में कमी आती है और कपास के पौधे कमजोर हो जाते हैं।
  • कमी के चलते कपास के फूल और फलों का आकार छोटा रह सकता है और गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।
  • यह मुख्य रूप से तब देखा जाता है जब मिट्टी का पीएच 7 से अधिक हो जाता है, तो आयरन पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाता।
  • मिट्टी में अधिक कैल्शियम होने पर आयरन का अवशोषण कम होता है। मिट्टी में नमी की कमी से भी आयरन की कमी हो सकती है।

नियंत्रण:

  • फेरस सल्फेट (Ferrous Sulphate 0.1%) के घोल का 15 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें, इसके लिए 3 से 5 ग्राम फेरस सल्फेट को 1 लीटर पानी में घोलकर कपास की पत्तियों पर छिड़काव करें।
  • FeSo4 (फेरस सल्फेट) खाद को 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें जिससे पौधों में क्लोरोसिस की समस्या ठीक होती है, पौधे को हरा भरा कारने में मदद करता है।

मैंगनीज (Manganese):

  • कपास की नई पतियों पर एक समान पीलापन दिखाई देता है।
  • मैंगनीज की अधिकता के कारण पत्तियां सिकुड़ी हुई और प्याली नुमा दिखाई देती हैं, और उनका विकास रुक जाता है, जिसे "झुर्रीदार पत्ती" भी कहते हैं।

नियंत्रण:

  • कपास की खड़ी फसल में मैंगनीज की कमी के लक्षण दिखाई पड़ने पर 0.5 % मैंगनीज सल्फेट के घोल को 10 से 15 दिन के अंतराल पर 3 से 4 बार स्प्रे करें। इसका पहला स्प्रे पहली सिंचाई से पहले तथा बाद के 2-3 स्प्रे पहली सिंचाई के बाद।
  • मिट्टी में MnSO4 (मैंगनीज सल्फेट) खाद का प्रयोग 8 किग्रा प्रति एकड़ कपास के खेत में छिड़काव करें।

कॉपर (Copper)

  • कपास की पत्तियां पीली दिखने लगती हैं और ज्यादा कमी हो जाने पर पत्तियों के सिरे मुरझाने लगते हैं और फिर झड़ जाते हैं।
  • जो पौधे बड़े हो जाते हैं वो हल्के भूरे-काले रंग के होते हैं।
  • पत्तियों की शिराओं के बीच में सूखे धब्बे दिखाई देते हैं।

नियंत्रण:

  • 0.3% तांबा सल्फेट का घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव करें।
  • मिट्टी में तांबा सल्फेट (Copper Sulphate) का 4 से 6 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • मिट्टी के पीएच को कम करने के लिए सल्फर या अमोनियम सल्फेट का उपयोग करें।

कपास की फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रबंधन कैसे करते हैं? अपना अनुभव और जवाब हमें कमेंट करके जरूर बताएं, और  इसी तरह फसलों से संबंधित अन्य रोचक जानकारी के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल {Frequently Asked Questions (FAQs)}

Q: कपास की खेती में सूक्ष्म पोषक तत्वों का क्या उपयोग है?

A: फसल की कटाई तक सूक्ष्म पोषक तत्व फसल की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कपास की फसल में फूल गिरने से बचाने के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग किया जाता है। फूल आने और गुठली खुलने के समय बोरान और मैग्नीशियम के प्रयोग से फसल की अच्छी उपज प्राप्त होती है।

Q: कपास में जिंक क्या काम करता है?

A: कपास में जिंक का प्रमुख काम पत्तियों की वृद्धि और फूलों के विकास में सहायक होता है। जिंक की कमी से पत्तियों में पीले धब्बे और पत्तियों की किनारों पर विकृति देखी जा सकती है। जिंक की उचित मात्रा से पौधों की सामान्य वृद्धि और बॉल के बेहतर विकास में मदद मिलती है।

Q: कपास में पोटाश कब देना चाहिए?

A: कपास में पोटाश को सामान्यतः बुवाई के समय और फूलों की अवस्था के दौरान देना चाहिए। इसे अच्छे गुणवत्ता वाले लिंट और उच्च उपज सुनिश्चित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। पोटाश की कमी से पत्तियों का रंग पहले गहरा हरा होता है, फिर मध्य शिरा भूरा-बैंगनी हो जाती है और अन्य शिराएं पीली हो जाती हैं।

Q: कपास में मैग्नीशियम कमी के क्या लक्षण हैं?

A: कपास में मैग्नीशियम की कमी के लक्षणों में ऊपरी पत्तियों के बीच में पीले धब्बे और पत्तियों की शिराओं के बीच में हरे रंग की कमी शामिल हैं। इससे पत्तियां जल्दी मुरझा जाती हैं और झड़ जाती हैं। मैग्नीशियम की कमी से पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है और उपज में कमी हो सकती है।

Q: कपास में सल्फर क्या काम करती है?

A: कपास में सल्फर का काम पौधों में प्रोटीन और एंजाइमों के निर्माण में सहायक होना है। सल्फर की कमी से नई पत्तियों का रंग पीला हो जाता है और बिनौले का आकार तथा तेल की मात्रा घट जाती है। सल्फर की उचित मात्रा से पौधों की सामान्य वृद्धि और बेहतर गुणवत्ता की फसल सुनिश्चित की जा सकती है।

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