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अमरूद में पोषक तत्व की कमी के लक्षण और प्रबंधन | Symptoms and Management of Nutrient Deficiency in Guava
अमरूद एक उष्णकटिबंधीय फल है जो भारत में व्यापक रूप से उगाया जाता है। इसके फल खाने में स्वादिष्ट होने के साथ कई पोषक तत्वों का एक बेहतर स्रोत है। इसकी बागवानी में बहुत अधिक परिश्रम की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन कई बार सही मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिलने के कारण फलों की उपज एवं गुणवत्ता कम होने लगती है। इसके साथ ही पौधों का विकास भी प्रभावित होता है। पोषक तत्वों की कमी बढ़ने पर पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होने लगती है। अगर आप भी अमरूद की बागवानी कर रहे हैं तो बेहतर फलन को सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रमुख पोषक तत्वों की कमी से होने वाले नुकसान एवं इसकी पूर्ति की जानकारी यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
अमरूद के पौधों में कुछ प्रमुख पोषक तत्व की कमी के लक्षण | Deficiency symptoms of some key nutrients in guava plants
नाइट्रोजन की कमी से होने वाले नुकसान
- अमरूद के पौधों के लिए नाइट्रोजन सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों में से एक है।
- नाइट्रोजन की कमी होने पर पत्तियां पीली होने लगती हैं।
- पुराने पत्ते गिरने लगते हैं।
- पौधों के विकास में बाधा आती है।
- प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सुचारु रूप से नहीं हो पाता है।
- फलों की उपज में कमी आती है।
- नाइट्रोजन की कमी होने पाए पौधे रोगों और कीटों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
फॉस्फोरस की कमी से होने वाले नुकसान
- पौधों में कोशिका विभाजन और वृद्धि के लिए फास्फोरस आवश्यक है। इसलिए इसकी कमी होने पर पौधों का विकास भी प्रभावित हो सकता है।
- जड़ों के विकास में बाधा आती है।
- पत्तियों का रंग गहरे हरे से लाल-बैंगनी रंग में बदलने लगता है।
- फलों की गुणवत्ता कम होने लगती है।
- पौधे सूखे एवं अन्य पर्यावरणीय तनावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
- फलों को बढ़ने एवं पकने में अधिक समय लगता है।
- फलों का स्वाद और पोषण प्रभावित होता है।
पोटेशियम की कमी से होने वाले नुकसान
- पोटेशियम कोशिका विभाजन में सहायक है। इसकी कमी होने पर पौधों के विकास में अवरोध उत्पन्न होता है।
- पत्तियां किनारे से धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं।
- तने कमजोर हो जाते हैं।
- फलों के आकार एवं उपज में कमी आती है।
- फलों की गुणवत्ता में कमी होने के कारण इसकी बिक्री से उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।
- पौधों में सूखा, उच्च तापमान और लवणता जैसे पर्यावरणीय तनावों को सहन करने की क्षमता कम हो जाती है।
मैग्नीशियम की कमी से होने वाले नुकसान
- मैग्नीशियम की कमी के कारण पौधों की वृद्धि और उपज कम हो सकती है।
- मैग्नीशियम की कमी बढ़ने पर नई पत्तियां गिरने लगती हैं।
- पत्तियों की शिराएं हरे रंग की होती हैं, लेकिन शिराओं के बीच की पत्तियां पीली-भूरी-लाल होने लगती हैं।
- पौधों में फूल एवं फलों के आने में देर हो सकती है।
- पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
- फलों की गुणवत्ता खराब होने लगती है।
- मैग्नीशियम की कमी से प्रकाश संश्लेषण और ऊर्जा का उत्पादन करने की क्षमता में कमी आती है।
आयरन की कमी से होने वाले नुकसान
- आयरन की कमी से क्लोरोसिस हो सकता है। जिससे पत्तियां पीली नजर आने लगती हैं।
- प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होती है।
- फलों की सतह खुरदरी हो सकती है।
- फलों की गुणवत्ता कम होने लगती है।
- पौधे विभिन्न रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
- फूल एवं फलों के आने में अधिक समय लगता है।
बोरोन की कमी से होने वाले नुकसान
- बोरोन की कमी के कारण फलों की उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है।
- पौधों में इसकी कमी होने पर फलों के आकार एवं वजन में कमी आती है।
- पौधों के वृद्धि में रुकावट आती है।
- नई पत्तियां मुड़ने लगती हैं।
- पत्तियां मोटी हो जाती हैं और उनका रंग बहुत हल्का हरा या सफेद नजर आने लगती हैं।
- पौधों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो सकती है।
- फलों की भंडारण क्षमता कम हो जाती है। जिससे फलों का भंडारण एवं परिवहन में कठिनाई होती है।
अमरूद के पौधों में पोषक तत्वों की पूर्ति के तरीके | Methods to supply essential nutrients to guava plants
- नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए मिट्टी जांच के अनुसार खेत में यूरिया का प्रयोग करें।
- प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम 'देहात न्यूट्रीवन एनपीके 19:19:19' का प्रयोग करें। इससे पौधों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम की कमी दूर होती है।
- प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम 'देहात न्यूट्रीवन एमएपी' (मोनो अमोनियम फॉस्फेट) मिला कर छिड़काव करें।
- उचित मात्रा में डीएपी के छिड़काव से भी फॉस्फोरस और पोटेशियम की कमी दूर होती है।
- पोटेशियम की कमी दूर करने के लिए प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम 'देहात न्यूट्रीवन एमएपी' (मोनो अमोनियम फॉस्फेट) मिला कर छिड़काव करें।
- पोटेशियम की कमी दूर करने के लिए प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम 'देहात न्यूट्रीवन एसओपी' (पोटेशियम सल्फेट) मिला कर छिड़काव करें।
- मैग्नीशियम और सल्फर की कमी दूर करने के लिए कही तैयार करते समय प्रति एकड़ खेत में 25 किलोग्राम 'देहात न्यूट्रीवन MgSO4' (मैग्नीशियम सल्फेट) का प्रयोग करें।
- आयरन और सल्फर की कमी दूर करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 10 किलोग्राम 'देहात न्यूट्रीवन FeSo4' (फेरस सल्फेट) का प्रयोग करें।
- पौधों में बोरोन की पूर्ति के लिए प्रति एकड़ खेत में 250 ग्राम 'देहात न्यूट्रीवन DOT' (डाईसोडियम ऑक्टाबोरेट टेट्राहाइड्रेट) का प्रयोग करें।
अमरूद के पौधों में पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए किन उर्वरकों का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)
Q: अमरूद के लिए सबसे अच्छा उर्वरक कौन सा है?
A: अमरुद के पौधों में संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही आयरन, मैग्नीशियम, बोरोन, ज़िंक, सल्फर, जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी प्रयोग करें। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से पौधों में पोषक तत्वों एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति की जा सकती है। इसके अलावा गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग भी लाभदायक साबित होता है।
Q: अमरूद के पौधे की ग्रोथ कैसे बढ़ाए?
A: अमरूद के पौधों के उचित विकास के लिए कई बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। पौधों की रोपाई कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी में करें। मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 और 7.0 के बीच होना चाहिए। पौधों में सही समय पर पानी एवं उर्वरकों का प्रयोग करते रहें। अमरूद के पौधों को प्रति दिन 6-8 घंटे सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। इसलिए पौधों को ऐसे स्थान पर लगाएं जहां पर्याप्त मात्रा में सूर्य की रोशनी आती हो। रोग एवं कीताब के कारण भी पौधों का विकास प्रभावित हो सकता है। इसलिए रोग एवं कीटों पर नियंत्रण करना आवश्यक है। नई शाखाओं के विकास के लिए रोग ग्रस्त शाखाओं एवं सूखी टहनियों की छंटाई करें।
Q: अमरूद का पेड़ कितने साल तक फल देता है?
A: पौधों की रोपाई के 2 से 4 वर्षों के अंदर पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं। एक स्वस्थ अमरूद के वृक्ष से 15-20 वर्षों तक फल प्राप्त किया जा सकता है। 10 वर्षों के बाद उपज धीरे-धीरे कम होने लगती है। ऐसे में वृक्षों की उचित देखभाल और सही मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करके हम उपज को बढ़ा सकते हैं।
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