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किसान डॉक्टर
3 Dec
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जीरा: चूर्णिल आसिता रोग के लक्षण एवं प्रबंधन | Cumin: Symptoms and Management of Powdery Mildew Disease

जीरा भारतीय मसालों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसकी खेती देश के विभिन्न भागों में व्यापक रूप से की जाती है। यह मसाला न केवल अपने स्वाद और सुगंध के लिए जाना जाता है, बल्कि इसमें औषधीय गुण भी भरपूर होते हैं। लेकिन जीरे की खेती के दौरान कई रोग और कीट फसल की उत्पादकता को प्रभावित कर सकते हैं, जिनमें से चूर्णिल आसिता रोग एक प्रमुख समस्या है। कुछ क्षेत्रों में इस रोग को पाउडरी मिल्ड्यू, खस्ता फफूंदी रोग, दहिया रोग, जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह रोग पौधों की पत्तियों, तनों और फूलों पर सफेद चूर्ण जैसे धब्बों के रूप में प्रकट होता है, जो फसल की गुणवत्ता और पैदावार को भारी नुकसान पहुंचाता है। इस पोस्ट में हम चूर्णिल आसिता रोग के लक्षण, इससे होने वाले नुकसान और इस रोग पर नियंत्रण पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे, जिससे आप अपनी जीरा की फसल को इस रोग से बचाव कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकें।

जीरा में चूर्णिल आसिता रोग से होने वाले नुकसान | Damage Caused by Powdery Mildew Disease in Cumin

  • जीरा की उपज एवं गुणवत्ता में कमी आती है।
  • दानों/बीज में तेल की मात्रा में कमी हो सकती है।
  • जीरे की सुगंध में कमी आती है।

जीरा में चूर्णिल आसिता रोग के लक्षण | Symptoms of Powdery Mildew Disease in Cumin

  • इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर सफेद रंग के पाउडर के समान धब्बे उभरने लगते हैं।
  • रोग बढ़ने के साथ ये धब्बे आपस में जुड़ने लगते हैं और पूरी पत्ती को ढक सकते हैं।
  • प्रभावित पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं।
  • प्रभावित पत्तियां सूख कर गिरने लगती हैं।
  • गंभीर मामलों में पौधों की शाखाओं, फूलों एवं दानों/बीज पर भी सफेद धब्बे उभरने लगते हैं।
  • इस रोग के कारण पौधों के विकास में बाधा आ सकती है।

जीरा में चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण की रासायनिक विधि | Chemical Methods for Controlling Powdery Mildew Disease in Cumin

  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
  • प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम इप्रोवालिकर्ब 5.5% + प्रोपिनेब 61.25% w/w डब्ल्यूपी (बायर मेलोडी ड्यूओ) मिला कर छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 800 ग्राम एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 4.7% + मैन्कोज़ेब 59.7% + टेबुकोनाज़ोल 5.6% डब्ल्यूजी (स्वाल एरिन) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम कैप्टन 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% डब्ल्यूपी (टाटा ताकत) का प्रयोग करें।

चूर्णिल आसिता रोग से बचाव एवं नियंत्रण के कुछ अन्य तरीके | Other Methods for Prevention and Control of Powdery Mildew Disease

  • धूप वाले स्थान में खेती: पौधों को इस रोग से बचाने के लिए जीरा की खेती ऐसे स्थान पर करें जहां प्रति दिन धूप आती हो।
  • नाइट्रोजन उक्त उर्वरकों का उचित मात्रा: नाइट्रोजन उक्त उर्वरकों का इस्तेमाल सही मात्रा करें।  अधिक नाइट्रोजन से पौधों में घनी पत्तियां और छाया बनती है, जिससे फफूंदी का संक्रमण बढ़ सकता है।
  • पत्तियों की छंटाई: अतिरिक्त पत्तियों की छंटाई करके पौधों के बीच हवा का अच्छा प्रवाह बनाए रखें।
  • नीम के तेल का छिड़काव: यदि पौधों में हल्के से मध्यम स्तर तक पाउडरी मिल्ड्यू के लक्षण दिखाई दें, तो इसे कम करने या खत्म करने के लिए बागवानी तेल और नीम तेल या जोजोबा तेल जैसे तेलों का उपयोग किया जा सकता है।
  • प्रभावित हिस्सों की कटाई: इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पत्तियों या पौधों को नष्ट कर दें।
  • पौधों के बीच की दूरी: वायु संचार को सुचारु रूप से बनाए रखने के लिए पौधों के बीच की दूरी का विशेष ध्यान रखें।
  • फसलों का निरीक्षण: खेत में लगातार निरीक्षण करें। इससे रोग के शुरूआती समय में ही इसका पता लगा कर नियंत्रण किया जा सकता है।
  • साफ-सफाई: खेत में पुराने फसलों के अवशेष, सूखे पत्ते, सूखी शाखाएं, आदि को हटा कर साफ-सफाई बनाए रखें।
  • खरपतवार नियंत्रण: खेत में खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करें। इससे रोग एवं कीटों के होने की संभावना में कमी आती है।

चूर्णिल आसिता रोग से प्रभावित होने वाली अन्य फसलें | Other Crops Affected by Powdery Mildew Disease

चूर्णिल असिता रोग से जीरा के अलावा कई अन्य फसलें भी बुरी तरह प्रभावित होती हैं। जिनमें फल, फूल, सब्जियां एवं अनाज, सभी तरह की फसल शामिल हैं। इस रोग से प्रभावित होने वाली कुछ प्रमुख फसलें नीचे दी गई हैं।

  • अनाज वाली फसलें: गेहूं, मक्का, कपास, ज्वार, चना, मसूर, आदि
  • सब्जियों वाली फसलें: कद्दू, स्क्वैश, ककड़ी, करेला, खीरा, मटर, परवल, टमाटर, बैंगन, सेम, पत्ता गोभी, भिंडी, प्याज, आदि
  • फल वाले पौधे: अंगूर, आम, सेब, पपीता, खरबूजा, तरबूज, चेरी, आदि
  • फूल वाले पौधे: गुलाब, गुड़हल, गुलदावदी, आदि

जीरा की फसल को चूर्णिल आसिता रोग से बचाने के लिए आप किन दवाओं का प्रयोग करते हैं? एप जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked questions (FAQs)

Q: जीरे में कौन-कौन से रोग लगते हैं?

A: जीरे के पौधे फंगल, बैक्टीरियल और वायरल संक्रमण सहित कई बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। जीरा के पौधों को प्रभावित करने वाली कुछ सामान्य बीमारियों में फ्यूजेरियम विल्ट, अल्टरनेरिया ब्लाइट, पाउडरी मिल्ड्यू, बैक्टीरियल लीफ स्पॉट और वायरल रोग जैसे जीरा पीला मोज़ेक वायरस और जीरा क्लोरोटिक येलो वायरस शामिल हैं। ये रोग जीरे की फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे पैदावार और गुणवत्ता कम हो जाती है।

Q: जीरे में कौन सी दवा डालनी चाहिए?

A: जीरा की फसल में दवाओं का प्रयाग पौधों में लगने वाले रोग एवं कीटों के आधार पर किया जाता है। किसी भी जैविक या रासायनिक दवाओं के प्रयोग से पहले पौधों में होने वाली समस्याओं को ध्यान में रखें और उसके अनुसार ही दवाओं का प्रयोग करें।

Q: ख़स्ता फफूंदी के लिए कौन सा कवकनाशी सबसे अच्छा है?

A: ख़स्ता फफूंदी रोग को नियंत्रित करने के लिए आप इस पोस्ट में बताई गई दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा आप अपने नजदीकी कृषि विशेसगयों से भी परामर्श कर सकते हैं और उनकी परामर्श के अनुसार रासायनिक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं। इस रोग पर जैविक विधि से नियंत्रण के लिए नीम के तेल का प्रयोग करें।

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