थाई एप्पल बेर: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Thai Apple Ber: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment
थाई एप्पल बेर के फल पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ खाने में स्वादिष्ट भी होते हैं। थाई एप्पल बेर के उत्पादन में कई रोग और कीटों की समस्या आती है जो इसके विकास और उपज को प्रभावित करते हैं। आज के इस पोस्ट में हम थाई एप्पल बेर के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों के लक्षण एवं इन रोगों पर नियंत्रण की विस्तृत जानकारी साझा कर रहे हैं।
थाई एप्पल बेर के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some Major Diseases Affecting Thai Apple Ber Plants
झुलसा रोग से होने वाले नुकसान: झुलसा रोग को ब्लाइट डिजीज के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के लक्षण सबसे पहले प्रभावित पौधों की पत्तियों पर नजर आते हैं। प्रभावित पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ ये धब्बे फैलते हुए तने एवं शाखाओं को भी प्रभावित कर सकते हैं। इस रोग के शुरुआत में पौधों की निचली पत्तियां सूखने लगती हैं। कुछ समय बाद ऊपर की पत्तियां भी सूखने लगती हैं। इस रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तो पूरा पौधा सूख कर नष्ट हो सकता है।
झुलसा रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग पर नियंत्रण के लिए इनमें से किसी एक दवा का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 100 मिलीलीटर क्रेसोक्सिम मिथाइल 44.3% एससी (टाटा रैलिस एर्गोन, पारिजात इंडस्ट्रीज एलोना) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू, यूपीएल साफ) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 ग्राम पायराक्लोस्ट्रोबिन 20% डब्ल्यूजी (मैनकाइंड एग्रीटेक पाइरेब्लेस, ग्लोबल क्रॉप केयर लाइन) का प्रयोग करें।
पाउडरी मिल्ड्यू रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को चूर्णिल आसिता रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग की शुरुआत में पौधों की पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफेद रंग के पाउडर की तरह पदार्थ से भरे धब्बे उभरने लगते हैं। धीरे-धीरे ये इन धब्बों का आकार बढ़ने लगता है और पूरी पत्ती सफेद पाउडर की तरह पदार्थ से ढक जाते हैं। रोग बढ़ने के साथ पौधों की शाखाओं और फलों पर भी सफेद धब्बे देखे जा सकते हैं। इस रोग के कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा आती है। जिससे प्रभावित पत्तियां धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां सूख कर गिरने लगती हैं। पौधों के विकास में रुकावट उत्पन्न होने लगती है। इस रोग के कारण फसल की उपज और गुणवत्ता में भारी कमी देखी जा सकती है।
पाउडरी मिल्ड्यू रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पत्तियों को तोड़ कर नष्ट कर दें।
- चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण के लिए नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
- 150 मिलीलीटर प्रोपीकोनाज़ोल 13.9% + डाइफेनोकोनाज़ोल 13.9% ईसी (सिंजेंटा ग्लो-इट) का प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
कॉलर रॉट रोग से होने वाले नुकसान: कॉलर रॉट रोग एक कवक जनित रोग है। थाई एप्पल बेर के पौधे इस रोग के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। इस रोग के कवक मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रहते हैं। इस कारण इस रोग को नियंत्रित करना कठिन होता है। थाई एप्पल बेर के अलावा कपास, सोयाबीन, मूंगफली एवं अन्य सब्जियों वाले फसलें भी इस रोग की चपेट में आसानी से आ जाती हैं। इस रोग के कारण पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं, पौधे मुरझाने लगते हैं और समय रहते इस रोग पर नियंत्रण नहीं करने से पौधे नष्ट भी हो सकते हैं। इस रोग के कारण उपज में भारी कमी दर्ज की जा सकती है।
कॉलर रॉट रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- पौधों को कॉलर रॉट रोग से बचाने के लिए जल भराव वाले क्षेत्रों में इसकी खेती करने से बचें।
- सिंचाई के समय जल जमाव की स्थिति उत्पन्न न होने दें।
- फसल चक्र अपनाएं।
- प्रति एकड़ खेत में 300-600 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू, यूपीएल साफ) का प्रयोग करें।
पत्ती धब्बा रोग से होने वाले नुकसान: पत्ती धब्बा रोग यानी लीफ स्पॉट एक कवक जनित रोग है। इस रोग के कारण थाई एप्पल बेर के पौधों की पत्तियां बुरी तरह प्रभावित होती हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। ये धब्बे आकार में गोल होते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बे बड़े होते जाते हैं और आपस में मिल जाते हैं, जिससे प्रभावित पत्तियां झड़ने लगती हैं। इस रोग के कारण फलों की गुणवत्ता कम होने लगती है और उपज कम हो जाती है।
पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैनकोजेब 75% डब्लूपी (देहात DeM 45) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।
थाई एप्पल बेर के पौधों को रोगों से बचाने के लिए आप किन दवाओं का उपयोग करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट में दी गई जानकारी को अधिक से अधिक व्यक्तियों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को अन्य किसान मित्रों के साथ लाइक एवं शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: बेर के पेड़ की पत्तियों पर कौन सा रोग होता है?
A: भारत में बेर के पेड़ों की पत्तियों पर होने वाली आम बीमारियों में से एक बेर का रतुआ रोग है। इसके अलावा पत्ती धब्बा रोग, चूर्णिल आसिता रोग, एन्थ्रेक्नोज के कारण भी पौधों की पत्तियां प्रभावित हो सकती हैं। ये सभी रोग पेड़ को कमजोर कर सकते हैं और अनुपचारित छोड़ दिए जाने पर फल उत्पादन एवं फलों की गुणवत्ता को कम कर सकते हैं।
Q: बेर के पेड़ों पर पत्ती कर्ल का क्या कारण है?
A: बेर के पेड़ों पर पत्ती कर्ल एक कवक रोग के कारण होता है। यह रोग पत्तियों को संक्रमित करता है और उन्हें कर्ल करने और विकृत होने का कारण बनता है। यह समय से पहले पत्ती गिरने का कारण भी बन सकता है और फलों का उत्पादन कम कर सकता है। यह रोग उच्च आर्द्रता और वर्षा वाले क्षेत्रों में अधिक आम है। इसके अलावा रस चूसक कीटों के प्रकोप के कारण भी पत्तियां मुड़ने लगती हैं।
Q: एप्पल बेर कब लगाया जाता है?
A: भारत में, एप्पल बेर आमतौर पर बारिश के मौसम के दौरान लगाए जाते हैं, जो जून से सितंबर तक होता है। रोपण का सही समय स्थान और जलवायु के आधार पर भिन्न हो सकता है।
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