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कृषि ज्ञान
12 Jan
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तरबूज एवं खरबूज की उन्नत खेती

उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, में बड़े पैमाने पर तरबूज की खेती की जाती है। वहीं पंजाब, तामिलनाडू, महांराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में खरबूजे की खेती प्रमुखता से की जाती है। करीब 90% पानी की मात्रा होने के कारण गर्मी के मौसम में इसकी मांग बहुत अधिक होती है।

  • बुवाई का समय: मुख्य खेत में पौधों की रोपाई से 1 महीना पहले नर्सरी तैयार करें। तरबूज एवं खरबूज की खेती के लिए फरवरी का महीना सबसे उपयुक्त है। फरवरी महीने में मुख्य खेत में पौधों की रोपाई के लिए जनवरी महीने में नर्सरी तैयार करें।
  • भूमि का चयन: तरबूज एवं खरबूज की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें। मिट्टी का पी.एच. स्तर 6 से 7 होना चाहिए।
  • बीज की मात्रा एवं बीज उपचार: बीज की मात्रा किस्मों पर निर्भर करती है। सामान्यतः प्रति एकड़ खेत के लिए 200 से 350 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थीरम या 2.5 ग्राम कार्बेनडाज़िम से उपचारित करें।
  • तरबूज की किस्में:
    • देहात- डीएचएस 8015
    • देहात- डीएचएस 8085
    • सिंजेन्टा- सिम्बा तरबूज के बीज
    • आइरिस- मल्लिका F1 तरबूज के बीज
    • आइरिस- थंडरबॉल F1 तरबूज के बीज
  • खरबूज की किस्में:
    • सिंजेन्टा- आयुष खरबूजे के बीज
    • शाइन- खरबूजा सुगर समर F1 हाईब्रिड
    • आइरिस- गोल्डी 09 F1
    • आइरिस- मेलन 123 F1
    • जेंटेक्स- समुराई हाइब्रिड खरबूजा बीज
    • जेंटेक्स- ड्रैगन बॉल हाइब्रिड खरबूज के बीज
  • खेत की तैयारी: खेत को तैयार करने के लिए 3-4 बार जुताई करें। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत की मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बना लें। खेत की अंतिम जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 50 किलोग्राम यूरिया, 47 किलोग्राम डीएपी तथा 67 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश मिलाएं। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
  • बुवाई की विधि: बुवाई के लिए 60 सेंटीमीटर चौड़ाई एवं 45 सेंटीमीटर गहराई वाले गड्ढे तैयार करें। सभी गड्ढों के बीच 1.15 मीटर की दूरी रखें। सभी गड्ढों में मिट्टी, बालू एवं गोबर की खाद को बराबर मात्रा में मिला कर भरें। इसके बाद सभी गड्ढों में अब 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में 2-3 बीज की बुवाई करें। मेड़ पर बुवाई करने के लिए 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर 40 से 50 सेंटीमीटर चौड़ी मेड़ें तैयार करें। मेड़ों के दोनों किनारों पर 60 सेंटीमीटर की दूरी पर 2 से 3 बीज की बुवाई करें।
  • सिंचाई एवं खरपतवार प्रबंधन: बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें। इसके बाद हर 3-4 दिनों के अंतराल पर या मिट्टी में नमी के अनुसार सिंचाई करें। बेहतर मिठास और स्वाद के लिए, कटाई से 3-6 दिन पहले सिंचाई बंद या कम करें। खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करें। मल्चिंग के द्वारा खरपतवारों को पनपने से रोका जा सकता है।
  • रोग एवं कीट प्रबंधन: तरबूज, खरबूज की फसल में पत्ती सुरंगी कीट, माहू, थ्रिप्स, मृदुरोमिल आसिता, चूर्णिल आसिता, लीफ कर्ल वायरस रोग, जड़ गलन रोग, जीवाणु फल धब्बा रोग, जैसे कीटों एवं रोगों का प्रकोप अधिक होता है। ये रोग एवं कीट तरबूज एवं खरबूज की उपज में कमी का बड़ा कारण बन सकते हैं। इसलिए इनके लक्षण नजर आने पर उचित दवाओं का प्रयोग करें।
  • फलों की तुड़ाई: तरबूज, खरबूज की बुवाई से करीब 70-80 दिनों बाद फलों की तुड़ाई की जा सकती है। कुछ किस्मों के फल बुवाई के 110 दिनों बाद तुड़ाई के लिए तैयार होते हैं।

तरबूज एवं खरबूज की किन किस्मों की खेती करते हैं और इससे आपको कितनी उपज प्राप्त होती है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं कमेंट करना न भूलें। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें।

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