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22 May
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बुवाई से पहले ट्राइकोडर्मा का उपयोग: फायदे या नुकसान | Trichoderma Application Before Sowing: Advantages and Disadvantages

ट्राइकोडर्मा एक तरह का कवक है, जो मिट्टी एवं सड़ने वाली लकड़ी में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध होती है। विश्व में इसकी करीब 90 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से कुछ प्रजातियां पौधों के लिए लाभदायक होती हैं। इसकी लाभदायक प्रजातियां मिट्टी में मौजूद हानिकारक फूफंदों की जनसंख्या को बढ़ने से रोकती है। इसके फायदों को ध्यान में रखते हुए कृषि विशेषज्ञों के द्वारा बुवाई से पहले ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। कृषि में ट्राइकोडर्मा के इस्तेमाल की विस्तृत जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

ट्राइकोडर्मा कितने प्रकार के होते हैं? Types of Trichoderma

ट्राइकोडर्मा कई प्रकार के होते हैं। कृषि में उपयोग किए जाने वाले ट्राइकोडर्मा के कुछ प्रचलित प्रकार निम्नलिखित हैं:

  • ट्राइकोडर्मा हर्जियानम: ट्राइकोडर्मा हर्जियानम लाभकारी कवक की एक प्रजाति है जिसे आमतौर पर कृषि में जैव नियंत्रण एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है। यह पौधों में पोषक तत्वों के ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाने में सहायक है। इसके साथ ही यह मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और रोगों के प्रतिरोध को बढ़ाने में भी मददगार साबित होता है।
  • ट्राइकोडर्मा विरिडी: यह लाभकारी कवक की एक प्रजाति है, जो हानिकारक कवक के प्रभाव को कम करते हुए पौधों को विभिन्न रोगों से बचाता है। इसके साथ ही यह मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों को तोड़ता है, जिससे पौधे को अधिक मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध होता है।
  • ट्राइकोडर्मा कोनिंगी: ट्राइकोडर्मा का यह प्रकार मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने और पौधों को पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार करने की क्षमता के लिए जाना जाता है। इसका इस्तेमाल आमतौर पर जैव उर्वरकों के उत्पादन में किया जाता है।
  • ट्राइकोडर्मा रीसी: इस प्रकार के ट्राइकोडर्मा को सेल्यूलस एंजाइम का उत्पादन करने की क्षमता के लिए जाना जाता है, जिसका उपयोग जैव ईंधन और अन्य औद्योगिक अनुप्रयोगों के उत्पादन में किया जाता है।

किन फसलों में करें ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल? | In Which Crops Should Trichoderma Be Used?

  • ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल दलहन फसलों के साथ गन्‍ना, गेहूं, धान जैसी फसलों में किया जा सकता है।
  • इसके अलावा सब्जियों वाली फसलों और फलों के पौधों में भी ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

फसलों में ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल करने के लाभ | Advantages of Applying Trichoderma

  • रोगों से बचाव: ट्राइकोडर्मा फ्यूजेरियम, पिथियम, स्क्लैरोशियम, स्कलैरोटिनिया, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, जैसे फफूंदों को नष्ट करता है। जिससे पौधों में विभिन्न रोगों के होने की संभावना कम हो जाती है।
  • कवक का खात्मा: खेत की तैयारी के समय इसका इस्तेमाल करने से मिट्टी में पहले से मौजूद हानिकारक कवक नष्ट हो जाते हैं।
  • पौधों का विकास: रोग मुक्त होने के कारण पौधों का विकास तेजी से होता है।
  • रसायनों के इस्तेमाल में कमी: रसायनों से मुक्त होने के कारण ट्राइकोडर्मा के इस्तेमाल से हानिकारक रसायनों के इस्तेमाल में कमी होती है।
  • मिट्टी की उर्वरता: यह लाभदायक फफूंदों की संख्या में वृद्धि करते हुए मिट्टी को स्वस्थ बनाए रखता है। इस तरह यह मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बेहतर बनाने में सहायक है।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: हानिकारक रसायनों के उपयोग को कम करने में मदद करता है। ट्राइकोडर्मा के इस्तेमाल से पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर किसी तरह का नकारात्मक प्रभाव नहीं होता है।
  • लागत में कमी: फफूंद जनित रोगों से बचाव होने के कारण विभिन्न फफूंदनाशक दवाओं पर होने वाली लागत में कमी आती है।

फसलों में ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल करने के नुकसान | Disadvantages of Applying Trichoderma

  • फसलों में ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल करने के कई फायदे होते हैं, लेकिन इसके कुछ संभावित नुकसान भी हो सकते हैं।
  • ट्राइकोडर्मा पौधों के सभी तरह के रोगजनकों के खिलाफ प्रभावी नहीं होता है। कुछ कवक ट्राइकोडर्मा के प्रतिरोधी हो सकते हैं।
  • ट्राइकोडर्मा कुछ रासायनिक कीटनाशकों या उर्वरकों के साथ ताल-मेल नहीं बना सकते हैं। कई बार ये रासायनिक कीटनाशकों के असर को कम कर सकते हैं।
  • आवश्यकता से अधिक मात्रा में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग या कम गुणवत्ता वाले ट्राइकोडर्मा के इस्तेमाल से पौधे की वृद्धि और मिट्टी के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • उचित भंडारण नहीं करने से ट्राइकोडर्मा उत्पादों की प्रभावशीलता में कमी हो सकती है।

बुवाई से पहले ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल करने की विधि | Method of Using Trichoderma Before Sowing

  • ट्राइकोडर्मा के द्वारा बीज उपचार: बीज की बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज में 2 से 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को समान रूप से मिलाएं। यदि आप बीज उपचार के लिए कीटनाशक का प्रयोग कर रहे हैं तो पहले कीटनाशक का प्रयोग करें। इसके बाद ट्राइकोडर्मा प्रयोग करें।
  • ट्राइकोडर्मा के द्वारा मिट्टी का उपचार: ट्राइकोडर्मा से मिट्टी उपचारित करने के लिए खेत तैयार करते समय गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद या वर्मी कम्पोस्ट में 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर प्रति एकड़ खेत में समान रूप से मिलाएं। इस विधि से नर्सरी की मिट्टी भी उपचारित की जा सकती है।
  • ट्राइकोडर्मा के द्वारा जड़ों का उपचार: यदि बुवाई से पहले बीज उपचारित नहीं की गई है तो मुख्य खेत में पौधों की रोपाई से पहले ट्राइकोडर्मा से जड़ों का उपचार किया जा सकता है। इसके लिए 15 लीटर पानी में 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिला कर घोल तैयार करें। पौधों की जड़ों को इस घोल में करीब 30 मिनट तक डूबो कर रखें। इसके बाद मुख्य खेत में पौधों की रोपाई करें।

बुवाई के बाद ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल करने की विधि | Method of Using Trichoderma After Sowing

  • फसलों पर छिड़काव: फसलों में मृदा जनित या फफूंद जनित रोगों के लक्षण नजर आने पर प्रति लीटर पानी में 2 से 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिला कर छिड़काव करें।

ट्राइकोडर्मा इस्तेमाल करते समय रखें इन बातों का ध्यान | Factors to Consider while Using Trichoderma

  • ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीज को धूप में न रखें। उपचारित बीज को छांव में सूखाएं। तेज धूप से इसमें मौजूद लाभदायक फफूंद नष्ट हो सकते हैं।
  • ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीज को किसी तरह के फफूंदनाशक एवं कीटनाशक से उपचारित नहीं करना चाहिए।
  • यदि बीज को फफूंदनाशक या कीटनाशक से उपचारित कर रहे हैं तो बीज उपचारित करने के कुछ समय बाद ही ट्राइकोडर्मा का उपयोग करें।
  • ट्राइकोडर्मा में मौजूद फफूंद के विकास के लिए नमी की आवश्यकता होती है। इसलिए यदि मिट्टी सूखी है तो नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करें। सूखी मिट्टी में इसका प्रयोग करने से बचें।
  • ट्राइकोडर्मा प्रयोग करने के करीब 4-5 दिनों बाद तक खेत में रासायनिक कवकनाशक का प्रयोग करने से बचें।
  • गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद या वर्मी कम्पोस्ट में ट्राइकोडर्मा मिलाने के बाद इसे लम्बे समय तक न रखें।

आप अपने फसलों में ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल किस अवस्था में करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'देसी जुगाड़' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: ट्राइकोडर्मा का उपयोग कब करें?

A: ट्राइकोडर्मा का उपयोग खेत की तैयारी के समय, बीज की बुवाई से पहले, मुख्य खेत में पौधों की रोपाई से पहले एवं पौधों के विकास की अवस्था में किया जा सकता है।

Q: ट्राइकोडर्मा कितने समय तक जीवित रह सकता है?

A: ट्राइकोडर्मा एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला कवक है जो मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रह सकता है। ट्राइकोडर्मा के जीवित रहने की अवधि मिट्टी के प्रकार, तापमान, नमी और अन्य सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। सामान्य तौर पर, ट्राइकोडर्मा मिट्टी में 2-3 साल तक बना रह सकता है, लेकिन यदि परिस्थितियां इसके विकास के लिए अनुकूल नहीं है तो समय के साथ इसकी संख्या में कमी हो सकती है।

Q: ट्राइकोडर्मा पौधों में कैसे कार्य करता है?

A: ट्राइकोडर्मा फसलों के लिए हानिकारक फफूंदों को नष्ट कर के विभिन्न रोगों पर नियंत्रण में सहायक हैं। इसके साथ ही या फसलों के लिए लाभदायक फफूंदों के निर्माण में भी सहायक है। जिससे हम उच्च गुणवत्ता युक्त फसल प्राप्त कर सकते हैं।

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