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किसान डॉक्टर
17 July
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रजनीगंधा: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Tuberose: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment

रजनीगंधा अपने मोहक खुशबू और सुंदरता के कारण बहुत लोकप्रिय है। इसकी ताजगी भरी खुशबू के कारण इसे परफ्यूम और इत्र बनाने में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, इसका उपयोग अरोमा थेरेपी, सौंदर्य प्रसाधनों और अगरबत्तियों आदि के निर्माण में भी किया जाता है। भारतीय संस्कृति में रजनीगंधा का फूल धार्मिक और सामाजिक समारोहों में विशेष स्थान रखता है। रजनीगंधा की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय साबित हो सकती है। रजनीगंधा के फूलों से प्राप्त तेल का मूल्य भी उच्च होता है, जो किसानों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत बनता है। लेकिन इसके पौधे कुछ रोगों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। आसानी से कुछ रोगों की चपेट में आने के कारण रजनीगंधा के फूलों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर होता है। इस पोस्ट के माध्यम से आप रजनीगंधा के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग एवं इन पर नियंत्रण की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

रजनीगंधा के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases affecting tuberose plants

खस्ता फफूंदी रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को चूर्णिल आसिता रोग या पाउडरी मिल्ड्यू रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्तों और फूलों पर सफेद रंग के पाउडर की तरह पदार्थ उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने पर प्रभावित पत्ते पीले हो कर गिरने लगते हैं। पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।

खस्ता फफूंदी रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पत्तों को तोड़ कर नष्ट कर दें।
  • चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण के लिए नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम टाटा ताकत (कैप्टन 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% WP) का प्रयोग करें।

बोट्रीटिस ब्लाइट रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे फूलों पर भी नजर आने लगते हैं, जिससे फूल भूरे हो कर सड़ने लगते हैं। पौधों के प्रभावित हिस्सों पर फजी ग्रे मोल्ड देखे जा सकते हैं। इस रोग के कारण पौधों की वृद्धि में कमी आती है।

बोट्रीटिस ब्लाइट पर नियंत्रण के तरीके:

  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर क्रेसोक्सिम मिथाइल 44.3% एससी (टाटा रैलिस एर्गन, पारिजात इंडस्ट्रीज एलोना) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% डब्लूपी (बीएसीएफ कारमैन, यूपीएल साफिलाइजर, धानुका सिक्सर) का प्रयोग करें।

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को लीफ स्पॉट रोग के नाम से भी जाना जाता है। कवक जनित रोग है। इस रोग के होने पर पौधों के पत्तों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। ये धब्बे आकार में गोल होते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है। ये धब्बे आपस में मिल जाते हैं, जिससे पत्ते सूखे हुए से नजर आते हैं। प्रभावित पत्ते झड़ने लगते हैं। जिससे पौधे भी धीरे-धीरे नष्ट होने होने लगते हैं।

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • प्रति एकड़ खेत में 1 किलोग्राम मेटिरम 70% डब्लूजी (बीएएसएफ पॉलीराम) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 ग्राम प्रोपिकोनाज़ोल 25% इसी (क्रिस्टल टिल्ट, अदामा बम्पर) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग

मोजैक वायरस रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग के कारण किसी भी अवस्था के पौधे प्रभावित हो सकते हैं। पौधों की नई पत्तियों पर इस रोग के लक्षण सबसे पहले नजर आते हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां मुड़ने और सिकुड़ने लगती हैं। पत्ते हरे-पीले रंग में चितकबरे होने लगते हैं। कभी-कभी पत्तों पर गहरे हरे रंग के फफोले भी देखे जा सकते हैं। रोग बढ़ने पर पौधों का विकास प्रभावित हो सकता है। सफेद मक्खियां इस रोग को फैलाने का काम करती हैं।

मोजैक वायरस रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • रोपाई के लिए रोग रहित एवं उपचारित कंदों का ही प्रयोग करें।
  • रोग की प्रारंभिक अवस्था में प्रति लीटर पानी में 2 से 3 मिलीलीटर नीम का तेल मिलाकर छिड़काव करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल (कॉन्फिडोर) 100 मिली प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 100 मिलीलीटर फ्लूबेंडामाइड 19.92% + थायक्लोप्रीड 19.92% (बेल्ट एक्स्पर्ट बायर) का प्रयोग करें।
  • सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए फेनप्रोपॅथ्रीन 30 ईसी (सुमिटोमो मेथ्रिन) की 100 मिलीलीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

फ्यूजेरियम विल्ट से होने वाले नुकसान: इस रोग के होने का मुख्य कारण कवक है, जो लम्बे समय तक मिट्टी में जीवित रह सकते हैं। इसके अलावा रोपाई के लिए इस रोग से प्रभावित पौधों के कंदों का इस्तेमाल करने पर यह रोग हो सकता है। इस रोग से प्रभावित पौधे मुरझाने लगते हैं। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है एवं पौधा सूखने लगता है। पौधों के तने पीलेपड़ने लगती है और फटने लगते हैं। कुछ समय बाद पौधे गिर जाते हैं।

फ्यूजेरियम विल्ट पर नियंत्रण के तरीके:

  • पौधों को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
  • इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लूपी (क्रिस्टल ब्लू कॉपर, बीएसीएफ बीकॉपर) का प्रयोग करें।

रजनीगंधा की फसल में रोगों पर नियंत्रण के लिए क्या आप लगातार खेत की निगरानी करते हैं और रोगों के लक्षण नजर आने पर आप क्या तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इस जानकारी को अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: क्या रजनीगंधा गमलों में उग सकता है?

A: हां, रजनीगंधा के पौधों को गमलों में उगाया जा सकता है। यह उन लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प है जिनके पास सीमित स्थान है। इसके लिए कम से कम 8-10 इंच गहरे गमले का प्रयोग करें। गमले को धूप वाली जगह पर रखें। पौधे को नियमित रूप से पानी दें।

Q: रजनीगंधा का पौधा कब लगाना चाहिए?

A: भारत में रजनीगंधा को आमतौर पर वर्षा के मौसम में यानी जून से अगस्त के महीनों के दौरान लगाया जाता है। इसके पौधों को विकास के लिए अधिक नमी एवं आर्द्रता की आवश्यकता होती है।

Q: रजनीगंधा का फूल किस मौसम में होता है?

A: भारत में रजनीगंधा गर्मी के मौसम में खिलने वाला फूल है। इसके पौधों में आमतौर पर जून से सितंबर तक फूल खिलते हैं।

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