अखरोट की खेती (Walnut Farming)
अखरोट की खेती भारत के पहाड़ी क्षेत्रों, जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, और अरुणाचल प्रदेश में प्रमुख रूप से की जाती है। इन क्षेत्रों में समुद्र तल से 1200 से 2150 मीटर की ऊंचाई पर अखरोट के पौधे अच्छी तरह उगते हैं। जम्मू-कश्मीर सबसे अधिक अखरोट उत्पादन करने वाला राज्य है। अखरोट में 100 ग्राम में 14.8 ग्राम प्रोटीन, 64 ग्राम वसा, 15.80 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 99 मिलीग्राम कैल्शियम, 380 मिली ग्राम फास्फोरस, और 450 मिलीग्राम पोटेशियम होता है। 50 ग्राम अखरोट में 392 कैलोरी ऊर्जा, 9 ग्राम प्रोटीन, 39 ग्राम वसा, और 8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है, साथ ही यह विटामिन ई, बी 6, और मिनरल्स से भरपूर होता है।
कैसे करें अखरोट की खेती? (How to cultivate walnut?)
- मिट्टी: अखरोट की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली भुरभुरी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है। रेतीली और सख्त मिट्टी इसके लिए ठीक नहीं होती। मिट्टी बंजर या क्षारीय नहीं होनी चाहिए।
- जलवायु: अखरोट की खेती के लिए न तो बहुत गर्म और न ही बहुत ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है। अधिक गर्मी में फल और पौधे खराब हो जाते हैं, ज्यादा ठंड और पाले की वजह से पौधों का विकास रुक जाता है। अखरोट की खेती के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा माना जाता है। फलों के बढ़ते समय ठंडी जलवायु बेहतर होती है।
- बुवाई का सही समय: अखरोट की खेती के लिए दिसंबर से मार्च का महीना सबसे उपयुक्त होता है। कुछ क्षेत्रों में अखरोट की खेती बारिश के मौसम में भी की जाती है, लेकिन दिसंबर में खेती करने से पौधों को अधिक समय तक अनुकूल मौसम मिलता है, जिससे उनका विकास बेहतर होता है।
- उन्नत किस्में: भारत में, अखरोट की कुछ प्रमुख उन्नत किस्मों में पूसा अखरोट, पूसा खोड़, प्लेसेंटिया, विल्सन, फ्रेनक्वेट, प्रताप, गोबिंद, कश्मीर बुदिद, यूरेका, सोल्डरिंग सिलेक्शन और कोटखाई सिलेक्शन शामिल हैं।
- खेत की तैयारी: अखरोट की खेती में पौधों को गड्ढे बनाकर लगाया जाता है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई ट्रैक्टर, मिट्टी पलटने वाले हल, या कल्टीवेटर से करें और कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें। इसके बाद, खेत की मिट्टी को भुरभुरी करने के लिए रोटावेटर चलाएं और फिर पाटा लगाकर भूमि को समतल बनाएं। इसके बाद, खेत में उचित दूरी रखते हुए दो फीट चौड़े और एक से डेढ़ फीट गहरे गड्ढे तैयार करें। गड्ढों और पंक्तियों के बीच की दूरी पांच मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- नर्सरी की तैयारी: अखरोट के पौधों की रोपाई से लगभग एक साल पहले, मई और जून के महीने में नर्सरी तैयार की जाती है। नर्सरी में पौधों को ग्राफ्टिंग विधि से तैयार किया जाता है, जिससे मुख्य पौधे के सभी गुण नए पौधों में भी पाये जाते हैं। बीज से तैयार पौधे 20 से 25 साल बाद फल देना शुरू करते हैं, जबकि ग्राफ्टिंग विधि से तैयार पौधे कुछ साल बाद ही उपज देने लगते हैं।
- खाद एवं उर्वरक: अखरोट के पौधों की रोपाई से पहले, प्रत्येक गड्ढे में 10 से 12 किलो गोबर की खाद और 100 से 150 ग्राम रासायनिक उर्वरक अच्छी तरह से मिट्टी में मिलाकर भर देना चाहिए। यदि खेत की मिट्टी में जिंक की कमी हो, तो हल्की मात्रा में जिंक भी मिलाएं। अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करें, जिससे पौधों का विकास बेहतर होता है।
- सिंचाई: अखरोट की फसल में मौसम के अनुसार सिंचाई की जाती है। अखरोट के पौधों को ठंड के मौसम में 20 से 30 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए और अधिक पाले की स्थिति में हल्का पानी देना होता है। पौधरोपण के तुरंत बाद सिंचाई करें और शुरुआती गर्मियों में सप्ताह में एक बार पानी देना आवश्यक है। पूर्ण विकसित पेड़ों को साल भर में 7 से 8 बार ही सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- खरपतवार नियंत्रण: अखरोट के बगीचे में खरपतवारों की रोकथाम करने के लिए आवश्यकतानुसार समय-समय पर पौधों के आसपास निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
- अंतर फसलें: अखरोट के पौधे खेत में लगाने के चार साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं। इस दौरान किसान भाई पेड़ो के बीच खाली पड़ी जमीन में कम समय की बागवानी फसल (पपीता), सब्जी, औषधि और मसाला फसलों को आसानी से उगा सकते हैं, जिससे किसान भाइयों को उनकी खेत से लगातार पैदावार भी मिलती रहती है।
- तुड़ाई: अखरोट के पौधे रोपाई के लगभग 4 साल बाद फल देना शुरू करते हैं। फलों की ऊपरी छाल फटने पर तुड़ाई करनी चाहिए। जब फल पककर खुद ही गिरने लगे, तो जब पौधे से लगभग 20 प्रतिशत फल गिर जाए, तब एक लंबे बांस से शेष फल गिरा लें। नीचे गिरे हुए फलों को एकत्रित कर उन्हें पौधे की पत्तियों से ढक दें।
- भंडारण: अखरोट को सही तरीके से संगठित और स्टोर करना बहुत जरूरी है, क्योंकि गलत भंडारण से कीट और फफूंदी लग सकती है जिससे अखरोट खराब हो जाता है। अखरोट को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए तापमान -3 से 0 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। इसके साथ ही, भंडारण में नमी कम होनी चाहिए ताकि अखरोट ताजगी और गुणवत्ता बनाए रख सके।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)
Q: अखरोट का पौधा कब लगाएं?
A: अखरोट के पेड़ नवंबर से अप्रैल तक किसी भी समय लगाए जा सकते हैं, क्योंकि इस दौरान पेड़ सुप्त अवस्था में होते हैं। दिसंबर से मार्च तक का समय पौधों की रोपाई के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। दिसंबर में पौधे लगाने से उन्हें उचित मौसम मिलता है, जिससे उनका विकास अच्छा होता है। पाले से पौधों को बचाना जरूरी है।
Q: अखरोट कितने साल में फल देता है?
A: अखरोट के पौधे आमतौर पर 20 से 25 साल बाद फल देना शुरू करते हैं। हालांकि, पूसा अखरोट की कागजी किस्म तीन से चार साल में फल देना शुरू कर देती है। नई किस्मों के पौधे भी तीन से चार साल में फल देने लगते हैं।
Q: अखरोट की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है?
A: अखरोट के पेड़ मुख्य रूप से भारत के जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, और हिमाचल प्रदेश राज्यों में पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में ठंडे जलवायु की उपयुक्तता के कारण अखरोट की खेती सफल रहती है। समतल क्षेत्रों में अखरोट की खेती उतनी प्रभावी नहीं होती है। इसके लिए आदर्श तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस माना जाता है, जो पेड़ों के स्वस्थ विकास और अच्छे उत्पादन के लिए उपयुक्त होता है।
Q: अखरोट के पेड़ कौन से राज्य में पाए जाते हैं?
A: अखरोट के पेड़ मुख्य रूप से भारत के जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, और हिमाचल प्रदेश राज्यों में पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में ठंडे जलवायु की उपयुक्तता के कारण अखरोट की खेती सफल रहती है। समतल क्षेत्रों में अखरोट की खेती उतनी प्रभावी नहीं होती है। इसके लिए आदर्श तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस माना जाता है, जो पेड़ों के स्वस्थ विकास और अच्छे उत्पादन के लिए उपयुक्त होता है।
Q: अखरोट की खेती के लिए भूमि का चुनाव कैसे करें?
A: अखरोट की खेती के लिए भूमि का चुनाव करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। इसके लिए उचित जल निकासी वाली दोमट भूमि सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें पर्याप्त जैविक पदार्थ मौजूद हो। इस प्रकार की मिट्टी अखरोट के पौधों को स्वस्थ विकास और अच्छे उत्पादन के लिए आवश्यक पोषक तत्व और जल प्रदान करती है। इसके विपरीत, रेतीली और सख्त सतह वाली मिट्टी अखरोट की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती, क्योंकि ऐसी मिट्टी में जल की अच्छी निकासी नहीं होती और पौधों की वृद्धि में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
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