तरबूज में झुलसा रोग: कारण, लक्षण और नियंत्रण (Watermelon Blight: Causes, Symptoms, and Management)

तरबूज एक लोकप्रिय फसल है, लेकिन इसकी खेती के दौरान कई रोग और कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। उन्हीं में से एक प्रमुख रोग अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट है, जिसे अल्टरनेरिया ब्लाइट भी कहा जाता है। यह फफूंद जनित रोग है, जो तरबूज की पत्तियों, तनों और फलों को प्रभावित करता है। यदि समय पर इसका उचित प्रबंधन न किया जाए, तो यह रोग पैदावार को 30-40% तक कम कर सकता है। इस लेख में हम इस रोग के कारण, लक्षण और जैविक व रासायनिक प्रबंधन के प्रभावी तरीकों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
तरबूज में झुलसा रोग के कारण (Causes of Blight Disease in Watermelon)
- फफूंद जनित रोग जो हवा, मिट्टी और संक्रमित पौधों के अवशेषों के माध्यम से फैलता है।
- खराब जल निकासी और अत्यधिक नमी फफूंद के विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं।
- गर्म और आर्द्र मौसम (25-35°C तापमान और 80% से अधिक नमी) रोग के प्रसार को तेज करता है।
- संक्रमित बीजों का उपयोग करने से पौधे शुरुआत से ही प्रभावित हो सकते हैं।
- पुराने रोगग्रस्त पौधों के अवशेष खेत में रहने से फफूंद के बीजाणु अगली फसल को संक्रमित कर सकते हैं।
- कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले पौधे रोग का शिकार जल्दी बनते हैं, जो पोषण की कमी और अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से होता है।
- फव्वारे (स्प्रिंकलर) सिंचाई से पत्तियों पर नमी बनी रहती है, जिससे फफूंद तेजी से फैलती है।
- अनुचित फसल चक्र (हर साल एक ही खेत में तरबूज या अन्य कद्दू वर्गीय फसलें उगाना) मिट्टी में फफूंद के बीजाणु सक्रिय बनाए रखता है।
- बहुत ज्यादा घने पौधे होने से हवा ठीक से नहीं पहुंचती, जिससे नमी ज्यादा समय तक बनी रहती है और रोग फैलने लगता है।
- खरपतवार और कीट संक्रमण रोग के प्रसार को बढ़ावा देते हैं, जिससे फसल जल्दी प्रभावित होती है।
तरबूज में झुलसा रोग के लक्षण (Symptoms of Blight Disease in Watermelon)
- पत्तियों पर धब्बे (Leaf Spots): रोग की शुरुआत पत्तियों पर छोटे, गोल या अनियमित आकार के पानी से भीगे हुए धब्बों के रूप में होती है।
- धब्बों का रंग बदलना (Color Change of Spots): समय के साथ ये धब्बे गहरे भूरे या काले हो जाते हैं और धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं।
- पीले घेरे का बनना (Formation of Yellow Halo): प्रभावित धब्बों के चारों ओर हल्का पीला घेरा बन सकता है, जो इस रोग की खास पहचान होती है।
- धब्बों का जुड़ना (Merging of Spots): यदि संक्रमण बढ़ जाए, तो छोटे-छोटे धब्बे आपस में मिलकर बड़े धब्बे बना लेते हैं, जिससे पत्तियों की खाद्य निर्माण (Photosynthesis) क्षमता कम हो जाती है।
- पत्तियों का मुरझाना और गिरना (Wilting and Defoliation): गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां सूखने लगती हैं और धीरे-धीरे झड़ जाती हैं, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है।
- फलों पर गहरे धब्बे (Sunken Spots on Fruits): यदि रोग बढ़ जाए, तो तरबूज के फलों की सतह पर भूरे रंग के धंसे हुए धब्बे बनने लगते हैं, जिससे उनकी गुणवत्ता खराब हो जाती है।
- बेलों का सूखना (Drying of Vines): अत्यधिक संक्रमण होने पर पूरा पौधा प्रभावित होता है और बेलें धीरे-धीरे सूखने लगती हैं।
- उत्पादन में गिरावट (Reduction in Yield): झुलसा रोग से प्रभावित पौधे कमजोर हो जाते हैं, जिससे फूल और फल बनने की प्रक्रिया रुक जाती है और कुल उत्पादन घट जाता है।
तरबूज फसल में झुलसा रोग प्रबंधन (Blight Management in Watermelon):
- गहरी जुताई करें: खेत की गहरी जुताई करने से मिट्टी में मौजूद रोगजनक दब जाते हैं और अगले सीजन में रोग फैलने की संभावना कम होती है।
- फसल चक्र अपनाएं: हर फसल चक्र में अलग फसल उगाए, जैसे दलहन या तिलहन, जिससे मिट्टी में रोगजनकों की संख्या कम हो जाए।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें: ऐसी तरबूज किस्मों को उगाए जो झुलसा रोग के प्रति सहनशील हो, ताकि फसल को नुकसान न पहुंचे।
- खेत की सफाई करें: संक्रमित पौधों के अवशेषों को खेत से बाहर निकालकर जला दें या नष्ट करें, जिससे रोगजनक फैल न सके।
- संक्रमित पौधों को तुरंत हटाएं: अगर किसी पौधे में झुलसा रोग दिखे, तो उसे तुरंत उखाड़ कर खेत से बाहर करें ताकि संक्रमण बाकी पौधों तक न पहुंचे।
- नियमित निगरानी करें: खेत का समय-समय पर निरीक्षण करें और अगर रोग के लक्षण दिखें, तो तुरंत उपचार करें।
- संतुलित सिंचाई करें: खेत में जलभराव न होने दें, क्योंकि अधिक नमी रोग फैलाने में मदद करती है। ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें ताकि पानी संतुलित मात्रा में मिले।
- उर्वरकों का सही उपयोग करें: नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्व संतुलित मात्रा में दें, जिससे पौधे स्वस्थ और मजबूत रहें।
- टेबुकोनाज़ोल 75% WG (बायर बूनोस) प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर मिलाकर स्प्रे करें।
- प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी (क्रिस्टल टिल्ट, बम्पर, ईबीएस प्रोपी-25) 600 मिलीलीटर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- हेक्साकोनाज़ोल 4% + ज़िनेब 68% WP (अवतार, निश्चित) 400-500 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- पाइराक्लोस्ट्रोबिन 20% WG (BASF-हेड लाइन) दवा को 200 ग्राम प्रति एकड़ तरबूज में छिड़काव करें।
- पाइराक्लोस्ट्रोबिन 13.3% + एपॉक्सीकोनाज़ोल 5% एसई (बीएएसएफ ओपेरा) दवा को 300 मिली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- क्रेसोक्सिम-मिथाइल 44.3% w/w (टाटा रैलिस एर्गन) 200 मि.ली तरबूज में स्प्रे करें।
- एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डिफेनोकोनाज़ोल 11.4% SC (देहात सिनपैक्ट, अमिस्टार टॉप) 200 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यू पी (टाटा ईशान, कवच) दवा को 400 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- टेबुकोनाज़ोल + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 75 डब्ल्यू जी (नेटिवो, एफएमसी गेज़ेको) 80 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।
क्या आपके तरबूज की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप सबसे ज्यादा होता है? हमें कमेंट में बताएं! फसल की सही देखभाल और सुरक्षा की पूरी जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करें। इस पोस्ट को लाइक और शेयर करें ताकि यह जानकारी अन्य किसानों तक भी पहुंचे और वे भी अपनी फसल को सुरक्षित रख सकें!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: तरबूज में कौन कौन से रोग लगते हैं?
A: तरबूज की फसल में कई तरह के रोग होते हैं। जिमनें चूर्णिल आसिता रोग, मृदुरोमिल आसिता रोग, बड नेक्रोसिस, लीफ कर्ल वायरस, जड़ गलन रोग, झुलसा रोग, मोजैक वायरस रोग आदि प्रमुख हैं।
Q: झुलसा रोग के लक्षण क्या हैं?
A: इस रोग के लक्षण पत्तियों पर भूरे या काले धब्बों के रूप में नजर आते हैं, जो बाद में बढ़कर सूखी और जली हुई दिखने लगती हैं। प्रभावित पत्तियां मुरझाने लगती हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं। गंभीर संक्रमण की स्थिति में तने और फलों पर भी धब्बे दिख सकते हैं, जिससे तरबूज का आकार छोटा रह जाता है और उसका स्वाद भी खराब हो सकता है। नमी और गर्म मौसम इस रोग को तेजी से फैलाने का काम करते हैं।
Q: झुलसा रोग क्यों होता है और यह कैसे फैलता है?
A: झुलसा रोग आमतौर पर अधिक नमी, गर्म तापमान और हवा के जरिए फैलने वाले फफूंद बीजाणु के कारण होता है। यदि खेत में जलभराव है, पौधों के बीच पर्याप्त दूरी नहीं रखी गई है, या लगातार एक ही स्थान पर तरबूज लगाया जा रहा है, तो इस रोग का खतरा और भी बढ़ जाता है। पुराने संक्रमित पौधों के अवशेष भी इस रोग के फैलने का एक बड़ा कारण हो सकते हैं।
Q: झुलसा रोग से बचाव के लिए क्या करें?
A: इस रोग से बचाव के लिए खेत में जल निकासी की सही व्यवस्था करें और पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखें ताकि हवा का सही संचार हो सके। संक्रमित पत्तियों और पुराने पौधों के अवशेषों को तुरंत नष्ट कर दें। तरबूज की फसल चक्र अपनाकर हर साल एक ही जगह इसकी खेती करने से बचें। बीज को थायरम या कैप्टान जैसे फफूंदनाशकों से उपचारित करके ही बोएं, ताकि शुरुआती संक्रमण से बचा जा सके।
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