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खरपतवार जुगाड़
1 July
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ज्वार की फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Jowar Crop)


ज्वार गर्म मौसम की फसल है, लेकिन इसे विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। यह समशीतोष्ण इलाकों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 2300 मीटर तक की ऊंचाई पर भी पनपता है। उच्च तापमान सहन करने की इसकी क्षमता अन्य फसलों से बेहतर होती है। ज्वार की अच्छी वृद्धि के लिए 26-30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। विभिन्न खरपतवार ज्वार की फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये पोषक तत्वों, पानी और धूप के लिए ज्वार के पौधों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे फसल की उपज और गुणवत्ता कम हो जाती है। इसलिए, ज्वार की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खरपतवारों पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है।

ज्वार की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान | Impact of Weeds on Jowar Crop

  • अंकुरण में कठिनाई: ज्वार की फसल में खरपतवारों के कारण बीज के अंकुरण में कठिनाई होती है। खरपतवारों की समस्या बढ़ने पर कई बार बीज अंकुरित नहीं हो पाते हैं।
  • कमजोर पौधे: खरपतवार मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को ग्रहण कर लेते हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं।
  • बढ़वार में कमी: ज्वार की फसल में खरपतवारों के प्रकोप से फसल की बढ़वार धीमी हो जाती है।
  • उपज में कमी: ज्वार की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान के कारण इसकी पैदावार में 40 प्रतिशत तक कमी हो सकती है।
  • रोग और कीट प्रकोप: खरपतवार कई तरह के रोगों एवं कीटों के पनपने का कारण बनते हैं।
  • लागत में वृद्धि: खरपतवार नाशक का उपयोग करने पर कृषि में होने वाली लागत में बढ़ोतरी होती है। इसके साथ कीट एवं रोगों पर नियंत्रण के लिए भी विभिन्न दवाओं के प्रयोग से लागत बढ़ती है।
  • आर्थिक नुकसान: उपज एवं गुणवत्ता में कमी किसानों के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बन सकती है।
  • पोषक तत्वों की कमी: खरपतवार भूमि में मौजूद आवश्यक पोषक तत्व एवं नमी का बड़ा हिस्सा अवशोषित कर लेती हैं, जिससे पौधों को उचित पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं।
  • प्रकाश और स्थान की कमी: खरपतवार आवश्यक प्रकाश एवं स्थान से फसल को वंचित कर देते हैं, जिससे पौधों के विकास में बाधा आती है।
  • रोग और कीट: खेत में विभिन्न घास के पनपने के कारण कई तरह के रोगों और कीटों के होने का खतरा बना रहता है।

ज्वार की फसल में खरपतवारों पर नियंत्रण के विभिन्न तरीके | Various methods of controlling weeds in Jowar crop

  • फसल चक्र: विभिन्न फसलों को बदल-बदल कर उगाने से खरपतवारों के दबाव को कम किया जा सकता है।
  • इंटरक्रॉपिंग: ज्वार के साथ अन्य फसलों को मिलाकर उगाने से खरपतवार नियंत्रण में मदद मिलती है।
  • समय पर रोपण: सही समय पर रोपण करने से ज्वार के पौधे खरपतवारों से पहले ही बढ़ जाते हैं, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है।
  • एकीकृत खरपतवार प्रबंधन: उपरोक्त विधियों में से दो या अधिक के संयोजन का उपयोग करके अधिक प्रभावी खरपतवार नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण को एकीकृत खरपतवार प्रबंधन कहा जाता है।
  • गहरी जुताई: खेत में पहले से मौजूद खरपतवारों को नष्ट करने के लिए 1-2 बार गहरी जुताई करना। इससे घास की जड़ें ऊपर आकर तेज धूप में नष्ट हो जाएंगी।
  • निराई-गुड़ाई: खेत में समय-समय पर हाथ से खरपतवारों को निकालना। पहली बुवाई के 20-25 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 40-45 दिनों के बाद दूसरी बार निराई-गुड़ाई करें और खरपतवार को नष्ट करें।

रासायनिक नियंत्रण

  • ज्वार की फसल में खरपतवारों का संक्रमण ज्यादा होने पर धानुज़ाइन (एट्राज़िन 50% डब्ल्यू पी) दवा का छिड़काव 300-400 ग्राम / एकड़ की दर से करने से इनका प्रकोप काम हो जाता है।

खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव के समय रखें इन बातों का ध्यान (Things to keep in mind while applying weedicides)

  • एक ही खरपतवारनाशी का बार-बार प्रयोग न करें। बार-बार एक ही दवा इस्तेमाल करने से खरपतवार इसके प्रति सहनशील/प्रतिरोधी हो सकते हैं।
  • एक फसल में केवल एक बार रासायनिक खरपतवार नाशक का प्रयोग करना चाहिए।
  • खरपतवार नाशक दवाओं के पैकेट पर दिए गए निर्देशों को पढ़ें और उनका पालन करें।
  • खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग करते समय, मिट्टी में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए, जिससे दवा सही तरीके से फसल तक पहुंच सके।
  • खरपतवार नाशक दवाओं का छिड़काव करते समय मात्रा का विशेष ध्यान रखें, इससे फसलों को किसी भी तरह के बुरे प्रभावों से बचा सकते हैं।
  • खरपतवार नाशक दवाओं में कई तरह के हानिकारक रसायन मौजूद होते हैं। इसलिए छिड़काव के समय आंख, नाक, मुंह, कान, आदि को अच्छी तरह ढकें।

आप ज्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए क्या जुगाड़ करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'खरपतवार जुगाड़' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: ज्वार की फसल की बीज दर कितनी होती है?

A: ज्वार की फसल में बीज दर कई कारणों पर निर्भर करता है जैसे कि किस्म, मिट्टी, जलवायु और बुवाई की विधि। सामान्य तौर पर, अनुशंसित बीज दर 15-20 किलोग्राम प्रति एकड़ है जब प्रसारण विधि द्वारा बोया जाता है और 8-10 किलोग्राम प्रति एकड़ जब लाइन बुवाई विधि द्वारा बोया जाता है।

Q: ज्वार की बुवाई कब की जाती है?

A: सिंचित इलाकों में ज्वार की फसल 20 मार्च से 1- जुलाई तक बो देनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में सिंचाई उपलब्ध नहीं हैं वहां बरसात की फसल मानसून में पहला मौका मिलते ही बो देनी चाहिए। अनेक कटाई वाली किस्मों/संकर किस्मों की बीजाई अप्रैल के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए।

Q: ज्वार कितने दिन में उगती है?

A: हरे चारे की सबसे उन्नत किस्मों में से एक एमपी चरी भी है, ये दूसरा सबसे उन्नत ज्वार किस्म है जो हरे चारे की पैदावार के लिए उपयुक्त है। इस किस्म के ज्वार की पहली कटाई 55 से 60 दिन बाद ले सकते हैं। इसके बाद दूसरी कटाई के लिए 35 से 40 दिन का इंतजार कर सकते हैं।

Q: ज्वार 1 एकड़ में कितनी होती है?

A: ज्वार की उपज मिट्टी के प्रकार, जलवायु, सिंचाई और खेती के तरीकों जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर भिन्न होती है। भारत में ज्वार की उपज लगभग 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। हालांकि, अच्छी कृषि पद्धतियों और उचित प्रबंधन के साथ, उपज प्रति एकड़ 25 से 30 क्विंटल तक बढ़ाई जा सकती है।

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