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31 Mar
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पपीता में खरपतवार प्रबंधन | Weed Management in Papaya

पपीता खाने में जितना स्वादिष्ट है उतना ही सेहत के लिए लाभदायक भी होता है। इसलिए देश के लगभग सभी क्षेत्रों में इसकी मांग होती है। अगर आप पारम्परिक फसलों की खेती जगह बागवानी करने का मन बना रहे हैं तो पपीता की खेती आपके लिए लाभदायक साबित होगी। लेकिन इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए पपीता के बाग को खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है। खरपतवारों से होने वाले नुकसान एवं इस पर नियंत्रण की विस्तृत जानकारी यहां से प्राप्त करें।

पपीता की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान | Damage from weeds in Papaya

  • पौधों के विकास में बाधा: पपीपा के बाग में खरपतवारों की समस्या होने पर पौधों की बढ़वार धीमी हो जाती है।
  • मिठास में कमी: खरपतवारों के कारण पपीता की मिठास में कमी हो सकती है।
  • उपज में कमी: पपीता के बाग में खरपतवारों की अधिकता होने से इसकी उपज में 40 प्रतिशत तक कमी हो सकती है।
  • रोग और कीटों का खतरा: खरपतवारों के कारण पपीता के पौधों में कई तरह के रोगों और कीटों के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है, जिससे फसल की सुरक्षा में कठिनाई हो सकती है।
  • आर्थिक नुकसान: पपीता की उपज एवं गुणवत्ता में कमी होने के कारण किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
  • लागत में वृद्धि: खरपतवार नाशक का उपयोग करने पर कृषि में होने वाली लागत में वृद्धि होती है। इसके साथ कीट एवं रोगों पर नियंत्रण के लिए भी कई तरह के दवाओं के प्रयोग से भी लागत बढ़ती है।

पपीता की फसल में खरपतवारों पर नियंत्रण के विभिन्न तरीके | Various methods of weed control in papaya

गहरी जुताई

  • पपीता के पौधों को लगाने से पहले खेत की गहरी जुताई करें। इससे खेत में पहले से मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाएंगे।
  • बुवाई से पहले खेत में निकलने वाले खरपतवारों की जुताई कर उसे खेत में मिला सकते हैं। यह हरी खाद का काम करेगी। इससे खरपतवार नष्ट भी हो जाएंगे और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ेगी।

पौधों के बीच की दूरी

  • बीज की बुवाई या पौधों की रोपाई के समय दूरी का विशेष ध्यान रखें।
  • पौधों के बीच अधिक दूरी होने से खरपतवारों को पनपने के लिए जगह मिलती है।

निराई-गुड़ाई

  • छोटे पौधों को खरपतवारों से अधिक नुकसान होता है। इसलिए पौधों के विकास के दौरान 20 से 25 दिनों के अंतराल पर या आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करें।
  • निराई-गुड़ाई करने से मिट्टी में हवा का संचार भी सुचारु रूप से होता है और पौधों को भी उचित मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

  • प्रति एकड़ खेत में 800-1200 मिलीलीटर ग्लाइफोसेट 41% एस.एल. (देहात मैक 7) का प्रयोग करें।
  • इसके अलावा आप प्रति एकड़ खेत में 340-1700 मिलीलीटर पैराक्वाट डाइक्लोराइड 24% एस.एल. (देहात चौपऑफ) का भी प्रयोग कर सकते हैं।

खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न कृषि यंत्र | Various agricultural machinery to control weeds

  • खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आप खुरपी, कुदाल जैसे छोटे कृषि यंत्रों का सहारा ले सकते हैं। खुरपी एवं कुदाल को हाथों से चलाया जाता है। जिसके कारण इसमें समय एवं श्रम दोनों अधिक लगते हैं। इसलिए आप नर्सरी या छोटे क्षेत्रों में इस विधि का प्रयोग कर सकते हैं।
  • इन दिनों बाजार में कई तरह के छोटे एवं बड़े आधुनिक कृषि यंत्र उपलब्ध हैं। जिनमें ड्राईलैंड पेग वीडर,व्हील हैंड हो, कोनो वीडर, पावर टिलर स्वीप टाईन, कल्टीवेटर, स्वचालित रोटरी पावर वीडर, जैसे यंत्र शामिल हैं। आप अपनी आवश्यकता के अनुसार इन कृषि यंत्रों का प्रयोग कर सकते हैं।

दवाओं के छिड़काव के समय रखें इन बातों का ध्यान | Things to keep in mind while applying weedicides

  • खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव के समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
  • खेत में बार-बार एक ही खरपतवार नाशक का प्रयोग करने से बचें। बार-बार एक ही दवा इस्तेमाल करने से खरपतवार इसके प्रति सहनशील/प्रतिरोधी हो सकते हैं।
  • एक फसल में केवल एक बार ही रासायनिक खरपतवार नाशक का प्रयोग करें।
  • खरपतवार नाशक दवाओं के पैकेट पर दिए गए निर्देशों को पढ़ें और उनका पालन करें।
  • खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग करते समय मिट्टी में नमी की मात्रा का विशेष ध्यान रखें। मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नमी होने से दवा सुचारु रूप से काम करता है।
  • दवाओं के छिड़काव के समय खरपतवार नाशक दवा का सही मात्रा में छिड़काव करना चाहिए। जिससे पौधों में किसी तरह का बुरा प्रभाव ना हो।
  • खरपतवार नाशक दवा के साथ किसी भी तरह के कीटनाशक या फफूंदनाशक को मिलाना नहीं चाहिए। इससे खरपतवार नाशक दवा का असर कम हो सकता है।
  • खरपतवार नाशक दवाओं में कई तरह के हानिकारक रसायन होते हैं। इसका अधिक प्रयोग खेत की मिट्टी एवं पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
  • हानिकारक रसायनों के कुप्रभाव से बचने के लिए दवाओं के छिड़काव के समय मूंह-नाक को अच्छी तरह ढकें।
  • दवाओं के संपर्क में आने पर सबसे पहले उसे अच्छी तरह पानी से साफ करें और आवश्यकता होने पर डॉक्टर से संपर्क करें।

पपीता के पौधों में  खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आप किस विधि का प्रयोग करते हैं? खरपतवार प्रबंधन में सहायता प्राप्त करने के लिए आप टोल-फ्री नंबर 1800-1036-110 पर संपर्क कर सकते हैं और अपनी समस्या का समाधान पा सकते हैं। आप कमेंट के द्वारा भी कृषि सम्बन्धी समस्याओं के समाधान प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें। जिससे विभिन्न किसान अपने अनुभवों को साझा कर सकें और एक दूसरे को सहायता कर सकें।  तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'खरपतवार जुगाड़' चैनल को फॉलो करें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: खरपतवार का प्रबंधन कैसे किया जाता है?

A: खरपतवारों का प्रबंधन कई विधियों के द्वारा किया जा सकता है। जिनमें निराई-गुड़ाई, मल्चिंग, यांत्रिक नियंत्रण, रासायनिक नियंत्रण, फसल चक्र, इंटरक्रॉपिंग, फसलों के बीच दूरी, आदि कई बातें शामिल हैं। आप अपनी आवश्यकता के अनुसार किसी भी विधि के द्वारा खरपतवारों का प्रबंधन कर सकते हैं।

Q: खरपतवार नियंत्रण की कितनी विधियां हैं?

A: खरपतवार नियंत्रण के कई तरीके हैं जिनका उपयोग कृषि में किया जा सकता है। सबसे आम तरीकों में सांस्कृतिक, यांत्रिक, रासायनिक और जैविक नियंत्रण शामिल हैं। सांस्कृतिक नियंत्रण में खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए फसल चक्र अपनाया जाता है, इंटरक्रॉपिंग और मल्चिंग जैसी प्रक्रियाएं भी की जाती हैं। यांत्रिक नियंत्रण में हाथ से निराई-गुड़ाई और घास की कटाई के द्वारा खरपतवारों को हटाया जाता है। रासायनिक नियंत्रण में खरपतवारों को मारने के लिए शाकनाशी का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा जैविक उत्पादों का प्रयोग करके भी खरपतवारों से छुटकारा मिल सकता है।

Q: खरपतवार नाशक कितने दिन तक काम करता है?

A: खेत में खरपतवार नाशक के असर की अवधि फसल, मिट्टी की गुणवत्ता, नमी की मात्रा, वातावरण में आर्द्रता, आदि कई बातों पर निर्भर करती है। इसकी अवधि 15 दिनों से ले कर 30 दिनों तक हो सकती है।

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