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मेंथा / पुदीना
खरपतवार जुगाड़
17 Mar
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मेंथा: खरपतवारों से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण के उपाय

मेंथा: खरपतवारों से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण के उपाय

औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण मेंथा यानी पिपरमिंट की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है। मेंथा की खेती इसकी पत्तियों से प्राप्त होने वाले तेल के लिए की जाती है। लेकिन अन्य फसलों की तरह खरपतवार मेंथा की फसल को भी नुकसान पहुंचाते हैं। मेंथा की फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के से सकरी पत्ती वाले खरपतवारों की भी समस्या होती है। जिससे फसल में तेल की मात्रा कम हो जाती है और किसानों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है। मेंथा की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान और इन पर नियंत्रण के तरीकों की जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

मेंथा की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान

  • तेल की मात्रा में कमी: मेंथा की फसल में खरपतवारों के कारण फसल की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है। इसके साथ ही मेंथा की पत्तियों में मौजूद तेल की मात्रा में कमी आती है।
  • पोषक तत्वों की कमी: खेत में पनपने वाले खरपतवार मिट्टी से पोषक तत्वों को ग्रहण कर लेते हैं, जिससे परवल के पौधों को सही मात्रा में पोषण नहीं मिलता है।
  • रोग एवं कीटों का प्रकोप: खरपतवार कई तरह के फफूंद जनित रोगों एवं कीटों को दावत देते हैं। जिससे फसल पर नकारात्मक प्रभाव होता है।
  • फसल की उपज में कमी: खरपतवार से होने वाले नुकसान के कारण मेंथा की उपज में कमी हो सकती है, जिससे किसानों को मुनाफे की जगह नुकसान का सामना करना पड़ता है।
  • लागत में वृद्धि: खरपतवार नाशक का उपयोग करने पर कृषि में होने वाली लागत में वृद्धि होती है। इसके साथ कीट एवं रोगों पर नियंत्रण के लिए भी विभिन्न दवाओं के प्रयोग से लागत बढ़ती है।

खरपतवारों पर नियंत्रण के विभिन्न तरीके | Different methods of weed control

निराई-गुड़ाई के द्वारा खरपतवारों पर नियंत्रण

  • खरपतवार पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करना सबसे आसान तरीका है।
  • खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए कुछ समय के अंतराल पर आवश्यकता के अनुसार 2 से 4 बार निराई-गुड़ाई करें।

रासायनिक विधि के द्वारा खरपतवारों पर नियंत्रण

सकरी पत्ती के खरपतवार पर नियंत्रण

  • दूब, सवां, मकड़ा घास, सुनहरी घास, गुज घास, बंचरी, चिनियारी आदि सकरी पत्ती वाले खरपतवारों में शामिल हैं।
  • इस तरह के खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 150 से 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर प्रोपक्विज़ाफॉप 10% ईसी (अदामा एगिल) मिला कर छिड़काव करें।

चौड़ी पत्ती के खरपतवार पर नियंत्रण

  • मेंथा की फसल में चौड़ी पत्ती के खरपतवारों में मोथा घास की समस्या अधिक होती है।
  • इसके अलावा बथुआ, सत्यानाशी, मकोय, जंगली पालक, जैसे खरपतवारों की भी समस्या भी होती है।
  • इस पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 800 मिलीलीटर बेंटाज़ोन 480 जी/एल एसएल (बीएएसएफ बासाग्रान) का प्रयोग करें।

खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव के समय रखें इन बातों का ध्यान

  • ऊपर बताई गई दवाओं के प्रयोग से मेंथा के पौधों में किसी तरह की हानि नहीं होती।
  • खरपतवार नाशक के प्रयोग के समय खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी होना आवश्यक है।
  • दवाओं के प्रयोग के 8 से 10 दिनों के अंदर खरपतवार नष्ट हो जाएंगे।
  • दवाओं के छिड़काव के बाद खेत में चलने (घूमने) से बचें।
  • दवाओं के छिड़काव के समय हाथ और मुंह को ढक कर रखें।
  • यदि संभव हो तो पूरे कपड़े पहन कर छिड़काव करें।
  • दवाओं के छिड़काव के समय बच्चों एवं पशुओं को खेत से दूर रखें।
  • खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव के बाद हाथ को अच्छी तरह साफ करें।
  • आंख या मुंह में दवा जाने पर तुरंत पानी से साफ करें और नजदीकी चिकित्सक से परामर्श करें।

मेंथा की फसल में  खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आप किन दवाओं का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। खरपतवार प्रबंधन में सहायता प्राप्त करने के लिए आप टोल-फ्री नंबर 1800-1036-110 पर संपर्क कर सकते हैं और अपनी समस्या का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'खरपतवार जुगाड़' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें। जिससे विभिन्न किसान अपने अनुभवों को साझा कर सकें और एक दूसरे को सहायता कर सकें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: खरपतवार की सबसे बेस्ट दवाई कौन सी है?

A: खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए बाजार में कई तरह की दवाएं उपलब्ध हैं। विभिन्न फसलों में अलग-अलग दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए भी अलग दवाएं होती हैं। इसलिए हमेशा अपनी फसलों के अनुसार ही दवाओं का प्रयोग करें।

Q: खरपतवार नाशक का छिड़काव कब करना चाहिए?

A: बाजार में कई तरह की खरपतवार नाशक दवाएं उपलब्ध हैं। कुछ दवाओं को फसल को लगाने के 2 से 3 दिनों के अंदर किया जाता है। वहीं कई ऐसी दवाएं भी हैं जिनका छिड़काव फसल के विकास के दौरान खरपतवारों के पनपने पर किया जाता है। खरपतवारों पर नियंत्रण से पहले उसके पैकेट पर दिए गए निर्देशों को ध्यान से पढ़ें और उसका पालन करें। खरपतवारों का छिड़काव सुबह या शाम के समय करना चाहिए। शाकनाशकों के छिड़काव के समय मिट्टी में उपयुक्त नमी होनी चाहिए। यदि वर्षा होने की संभावना है तो वर्षा के बाद दवाओं का छिड़काव करें। इससे दवाओं का प्रभाव बेहतर होता है।

Q: खरपतवारनाशी का छिड़काव करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

A: खरपतवारनाशी में कई तरह के हानिकारक रसायन मौजूद होते हैं, जो मनुष्यों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डालते हैं। इसलिए खरपतवारनाशी का छिड़काव करते समय अपने चेहरे को किसी कपड़े से अच्छी तरह ढकें। हाथों में भी दस्ताने पहन कर छिड़काव करें। दवाओं के छिड़काव के बाद हाथों को अच्छी तरह साफ करें। शाकनाशक के खाली पैकेट पशुओं के हानिकारक हो सकते हैं। इसलिए दवाओं के पैकेट को इधर-उधर न फेकें।

Q: खरपतवार नियंत्रण क्यों आवश्यक है?

A: मेंथा की फसल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए खरपतवारों पर नियंत्रण करना जरूरी है। खरपतवारों के कारण उपज में भी कमी होती है। केवल इतना ही नहीं खरपतवार कई रोग एवं कीटों के पनपने का कारण भी बनते हैं। इसलिए खरपतवारों पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है।

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