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17 Apr
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अफ़ीम की खेती के लिए लाइसेंस क्यों ज़रूरी है? (Why is license necessary for opium cultivation?)


अफीम की खेती बिना लाइसेंस के कोई भी किसान नहीं कर सकता है। इसके बढ़ते दुरुपयोग को देखते हुए सरकार ने अफीम की खेती के लिए लाइसेंस (License for opium cultivation) लेना अनिवार्य कर दिया है। अफीम के लिए सरकार अफीम नीति के तहत लाइसेंस जारी करती है ताकि सरकार की नजर में रहे कि कौनसे किसान अफीम की खेती कर रहे हैं। साथ ही अफीम की सरकारी खरीद की जाती है जिससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शारीरिक दर्द कम करने संबंधी देखभाल और अन्य चिकित्सा उद्देश्यों के लिए औषधी तैयारियों की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके। साथ भी यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि अल्केलॉइड उत्पादन घरेलू मांग के साथ-साथ भारतीय निर्यात उद्योग की जरूरतों को भी पूरा कर सके।

अफ़ीम की खेती के लिए नियम और शर्तें (Terms and conditions for opium cultivation)

  • किसान तरह तरह की फसलों की खेती करके अपनी आय में बढ़ोतरी कर रहे हैं और सरकार भी चाहती है कि किसान अधिक मुनाफा देने वाली फसलों की खेती करके अपनी आय बढ़ाएं। ऐसे में अफीम की खेती (opium cultivation) किसानों के लिए काफी मुनाफा देने वाली साबित हो सकती है, लेकिन अफीम की खेती भारत सरकार की अनुमति के बिना नहीं की जा सकती है। इसके लिए भारत सरकार लाइसेंस जारी करती है, उसी के बाद किसान अफीम की खेती कर सकते हैं।
  • इस बार सरकार ने एक लाख से अधिक किसानों को अफीम की खेती के लिए लाइसेंस (License for opium cultivation) देने की घोषणा की है। यह घोषणा नई अफीम नीति के तहत दी गई है। इससे अब पहले से अधिक किसान अफीम की खेती करके अपनी आय में इजाफा कर पाएंगे।
  • वहीं अफीम की खेती से सरकार को भी लाभ होगा, सरकार इसका निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकेंगी जो देश के विकास में काम आएगी। इस तरह अफीम की खेती से किसान और सरकार दोनों को फायदा हो रहा है।
  • हालांकि अफीम की खेती के लिए सरकार की ओर से सीमित संख्या में ही लाइसेंस जारी किए जाते हैं क्योंकि अफीम का गलत इस्तेमाल भी लोग करते हैं। लोग इसे नशे के रूप में इसका इस्तेमाल करते हैं जो गलत है। जबकि अफीम का इस्तेमाल खास तौर पर कैंसर की दर्द निवारक दवा बनाने और खांसी सिरप जैसी दवाईयां बनाने के लिए किया जाता है।
  • सरकार भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए देश में अफीम की खेती के लिए लाइसेंस जारी करती है ताकि किसान की इनकम बढ़ने के साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र में इसका औषधीय प्रयोग किया जा सके।
  • भारत में मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसान इसकी खेती करते हैं। ऐसे में इन राज्यों के किसानों के लिए यह खबर काफी महत्वपूर्ण हो जाती है।
  • हाल ही में केंद्र सरकार की ओर से मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए वर्ष 2023-24 में अफीम की खेती के संबंध में वार्षिक लाइसेंसिंग नीति घोषित की गई है। इसके तहत इन राज्यों के करीब 1.12 लाख किसानों को अफीम की खेती के लिए लाइसेंस दिए जाने की संभावना है। इसमें पिछले साल की तुलना में इस साल 27,000 नए किसान शामिल हैं।
  • अफीम की खेती का लाइसेंस देने के लिए तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को शामिल किया गया है। इसमें मध्यप्रदेश के 54,500, राजस्थान के करीब 47,000 और उत्तर प्रदेश के 10,500 किसानों को अफीम की खेती के योग्य माना गया है।
  • यह आंकड़ा वर्ष 2014-15 को समाप्त होने वाली पांच साल की अवधि के दौरान लाइसेंस दिए किसानों की औसत संख्या का करीब 2.5 गुना है।

कैसे मिलता है लाइसेंस और बीज?

  • अफीम की खेती के लिए लाइसेंस वित्त मंत्रालय की ओर से जारी किया जाता है।
  • यह लाइसेंस हर जगह के लिए नहीं मिलता है, बल्कि इसकी खेती कुछ ही जगहों पर की जाती है। किसान कितनी जमीन पर इसकी खेती कर सकता है यह भी सरकार ही तय करती है।
  • लाइसेंस और इसकी खेती से जुड़ी शर्तों को जानने के लिए आप क्राइम ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। एक बार जब आपको लाईसेंस मिल जाता है तो फिर आप नारकोटिक्स विभाग के इंस्टीट्यूट्स से अफीम का बीज ले सकते हैं।

खेती की शुरुआत कैसे करें?

  • अफीम की खेती रबी सीजन में यानी सर्दियों में की जाती है। इसकी फसल की बुवाई अक्टूबर-नवंबर महीने में कई जा जाती है।
  • बुवाई से पहले जमीन को 3-4 बार अच्छे से जोतना पड़ता है। इसके साथ ही, खेत में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट भी डालनी होती है, ताकि पौधों का अच्छे से विकास हो सके।
  • आपको एक हेक्टेयर में इसकी खेती करने के लिए करीब 7-8 किलो बीज की जरूरत पड़ती है. यहां आपको यह ध्यान रखना जरूरी है कि अगर आप अफीम की खेती के लिए लाइसेंस ले लेते हैं तो आपको एक न्यूनतम सीमा तक पैदावार करनी जरूरी होती है। इसलिए आपको अपनी तरफ से इसकी खेती में कोई कमी नहीं रखनी चाहिए।

फसल की बिक्री कैसे करें?

  • अफीम की बुवाई के 100-120 दिन बाद इसके पौधों में फूल आने लगते हैं। इन फूलों के झड़ने के बाद उसमें डोडे लग जाते हैं। अफीम की हार्वेस्टिंग रोज थोड़ी-थोड़ी की जाती है।
  • इसके लिए इन डोडों पर चीरा लगाकर रात भर के लिए छोड़ दिया जाता है और अगले दिन सुबह उसमें से निकले तरल पदार्थ को इकठ्ठा कर लिया जाता है। जब तरल निकलना बंद हो जाता है तो फिर उन्हें को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है।
  • फसल सूखने के बाद उसके डोडे तोड़कर उससे बीज निकाल लिए जाते हैं। हर साल अप्रैल के महीने में नार्कोटिक्स विभाग किसानों से अफीम की फसल की खरीदारी करते हैं।

क्या आप अफीम की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs )

Q: अफीम की खेती के लिए पट्टा कौन जारी करता है?

A: नारकोटिक्स आयुक्त के तहत नारकोटिक्स की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीएन), ग्वालियर (मध्य प्रदेश) अफीम की खेती करने के लिए किसानों को लाइसेंस जारी करता है।

Q: 1 एकड़ में अफीम कितनी होती है?

A: एक एकड़ में करीब 30 से 40 किलो अफीम की पैदावार होती है।

Q: एक पौधे से कितनी अफीम मिलती है?

A: अफीम के एक पौधे में चीरा लगाने के बाद 5 से 10 ग्राम अफीम का दूध मिल जाता है, जिसे बाद में तस्कर पांच से दस गुना अफीम तैयार करते हैं।

Q: भारत में सबसे ज्यादा अफीम की खेती कहाँ होती है?

A: भारत में बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में अफीम का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है।

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