तपशील
ऐका
भाज्या
कीटक
किसान डॉक्टर
5 Apr
Follow

जुकिनी: कीट, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Zucchini Pests, Symptoms, Prevention and Treatment

जुकिनी कद्दू वर्गीय फसलों में शामिल है। कुछ क्षेत्रों में इसे चप्पन कद्दू के नाम से भी जाना जाता है। विदेशों में इसकी खेती काफी प्रचलित है। लेकिन अब भारत के किसान भी जुकिनी की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। विटामिन, फाइबर, पोटैशियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर जुकिनी का उपयोग सब्जी एवं सलाद के तौर पर किया जाता है। लेकिन कई बार कुछ कीटों के प्रकोप के कारण फसल की उपज में भारी कमी आती है। जुकिनी की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीटों से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण की जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

जुकिनी की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Major pests affecting the Zucchini plants

फल मक्खी से होने वाले नुकसान: इस कीट की सूंडी फसल को अधिक हानि पहुंचाती है। व्यस्क फल मक्खी गहरे भूरे रंग की होती है। मादा कीट छोटे मुलायम फलों में छेद करती हैं और उसके अंदर अंडे देती है। कुछ दिनों बाद अंडों से सूंडी निकलकर फलों के अंदर के भाग को खा कर फसल को खराब कर देती है। कई बार प्रभावित फल टेढ़े हो कर सड़ने लगते हैं।

फल मक्खी पर नियंत्रण के तरीके

  • इस कीट पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 10 -12 हरे या पीले स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करें।
  • इस कीट पर नियंत्रण के लिए नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
  • 200 लीटर पानी में 150 मिलीलीटर डेल्टामेथ्रिन 2.8% ईसी (बायर डेसीस 2.8) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर सायनट्रानिलिप्रोल 10.26% डब्ल्यू/डब्ल्यू ओडी (एफएमसी बेनेविया) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा टैफगोर) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 60 मिलीलीटर क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% डब्ल्यू/डब्ल्यू एससी (एफएमसी कोराजन) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

रस चूसक कीट से होने वाले नुकसान: इनमें माहू, सफेद मक्खी, थ्रिप्स जैसे कीट शामिल हैं। इस तरह के कीट पौधों की कोमल पत्तियों का रस चूस कर पौधों को कमजोर कर देते हैं। जिससे पत्तियां ऊपर या नीचे की तरफ मुड़ने लगती हैं। इन कीटों का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा आती है।

रस चूसक कीट पर नियंत्रण के तरीके

  • इन कीटों पर नियंत्रण के नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
  • इस कीट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 80 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा रैलिस माणिक) का प्रयोग करें।
  • 80 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एंटोकिल) 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर क्लोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी  (देहात सी-स्क्वायर) का घोल बना कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (यूपीएल लांसर गोल्ड) मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

लीफ माइनर से होने वाले नुकसान: यह कीट पत्तियों में मौजूद हरे पदार्थ को खुरच कर खाते हैं। जिससे पत्तियों के अंदर सुरंग बन जाती है। इससे पत्तियों पर सफेद रंग की टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें नजर आने लगती हैं। इस कीट के कारण पौधों के विकास में भी बाधा आती है।

लीफ माइनर पर नियंत्रण के तरीके

  • इस कीट पर नियंत्रण के लिए नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर अजाडिराक्टिन 01.00% ईसी 10000 पीपीएम (मार्गो इकोनीम प्लस) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर सायनट्रानिलिप्रोल 10.26% डब्ल्यू/डब्ल्यू ओडी (एफएमसी बेनेविया) मिला कर छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा टैफगोर) मिला कर छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 ग्राम कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 50% एसपी (धानुका कैल्डन) मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।

ब्लिस्टर बिटिल से होने वाले नुकसान: व्यस्क कीट जुकिनी के फूल एवं फलों को खा कर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट का प्रकोप बढ़ने पर पौधों में फल नहीं बन पाते हैं, जिससे पैदावार में कमी आती है। अगस्त-नवंबर महीने में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।

ब्लिस्टर बिटिल पर नियंत्रण के तरीके

  • यदि संभव हो तो व्यस्क कीटों को हाथों से नष्ट करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 10 फेरोमोन ट्रैप लगाएं।
  • रासायनिक नियंत्रण के लिए निम्नलिखित में से किसी एक दवा का छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर अजाडिराक्टिन 01.00% ईसी 10000 पीपीएम (मार्गो इकोनीम प्लस) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस जी (देहात इल्लीगो) का 100 ग्राम दवा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • 200 लीटर पानी में 80 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एंटोकिल) मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर फेनप्रोपेथ्रिन 10% ईसी (सुमिटोमो डेनिटोल) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी 400 मिलीलीटर फेनवेलरेट 10% ईसी (टाटा रैलिस फेन) मिला कर छिड़काव करें।

नीमाटोड से होने वाले नुकसान: इस कीट को मूल ग्रंथि के नाम से भी जाना जाता है। इस कीट से प्रभावित पौधों की जड़ों में गांठ बनने लगती है। जिस कारण पौधे पोषक तत्वों को ग्रहण नहीं कर पाते हैं। इससे पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है।

नीमाटोड पर नियंत्रण के तरीके

  • फसल को इससे बचने के लिए खेत तैयार करते समय गोबर की खाद में 3-4 किलोग्राम वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम (आईपीएल नेमाटोफ्री प्लस) मिला कर प्रयोग करें।
  • इसके अलावा प्रत्येक पौधे में 2 ग्राम फ़्लुएनसल्फोन 2% जीआर (अडामा निमित्ज़) का प्रयोग करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: जुकिनी की अधिक पैदावार के लिए क्या करें?

A: जुकिनी की अच्छी पैदावार के लिए सही समय पर सिंचाई, उचित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग और खरपतवारों पर नियंत्रण करना आवश्यक है। इसके साथ ही फसल को रोग एवं कीटों से बचा कर भी जुकिनी की बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं।

Q: जुकिनी के कौन-कौन से कीट लगते हैं?

A: जुकीनी की फसल में मुख्य रूप से रेड पम्पकिन बिटिल, फल मक्खी, रस चूसक कीट, लीफ माइनर,एपीलेकना बीटिल, ब्लिस्टर बिटिल, नीमाटोड जैसे कीटों प्रकोप होता है।

Q: जुकिनी में कौन सा खाद डालना चाहिए?

A: खेत की तैयारी के समय 08-10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें। इसके साथ ही प्रति एकड़ खेत में 50 किलोग्राम डी.ए.पी, 35-40 किलोग्राम एम.ओ.पी, 04 किलोग्राम देहात स्टार्टर का भी प्रयोग करें।

35 Likes
1 Comment
Like
Comment
Share
Get free advice from a crop doctor

Get free advice from a crop doctor